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अगले पन्ने पर मौली बांधने के नियम...
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अगले पन्ने पर कब बांधी जाती है मौली...?
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अगले पन्ने पर क्यों बांधते हैं मौली...?
क्यों बांधते हैं मौली? :
* मौली को धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता है।
* किसी अच्छे कार्य की शुरुआत में संकल्प के लिए भी बांधते हैं।
* किसी देवी या देवता के मंदिर में मन्नत के लिए भी बांधते हैं।
* मौली बांधने के 3 कारण हैं- पहला आध्यात्मिक, दूसरा चिकित्सीय और तीसरा मनोवैज्ञानिक।
* किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे मौली बांधते हैं ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे।
* हिन्दू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानी पूजा-पाठ, उद्घाटन, यज्ञ, हवन, संस्कार आदि के पूर्व पुरोहितों द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधी जाती है।
* इसके अलावा पालतू पशुओं में हमारे गाय, बैल और भैंस को भी पड़वा, गोवर्धन और होली के दिन मौली बांधी जाती है।
अगले पन्ने पर संकटों से रक्षा करती है मौली...
मौली करती है रक्षा : मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध करते हैं। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है।
इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है। इस रक्षा-सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता।
मौली बांधने का आध्यात्मिक रहस्य...
आध्यात्मिक पक्ष :
*शास्त्रों का ऐसा मत है कि मौली बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से रक्षा तथा शिव की कृपा से दुर्गुणों का नाश होता है। इसी प्रकार लक्ष्मी से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती है।
*यह मौली किसी देवी या देवता के नाम पर भी बांधी जाती है जिससे संकटों और विपत्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। यह मंदिरों में मन्नत के लिए भी बांधी जाती है।
*इसमें संकल्प निहित होता है। मौली बांधकर किए गए संकल्प का उल्लंघन करना अनुचित और संकट में डालने वाला सिद्ध हो सकता है। यदि आपने किसी देवी या देवता के नाम की यह मौली बांधी है तो उसकी पवित्रता का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है।
*कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वान लोग कहते हैं कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है और कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है। बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती है। यह काला धागा भी होता है। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।
अगले पन्ने पर मौली बांधने के स्वास्थ्य लाभ...
चिकित्सीय पक्ष : प्राचीनकाल से ही कलाई, पैर, कमर और गले में भी मौली बांधे जाने की परंपरा के चिकित्सीय लाभ भी हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार इससे त्रिदोष अर्थात वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। पुराने वैद्य और घर-परिवार के बुजुर्ग लोग हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में मौली का उपयोग करते थे, जो शरीर के लिए लाभकारी था। ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिए मौली बांधना हितकर बताया गया है।
हाथ में बांधे जाने का लाभ : शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है अतः यहां मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। उसकी ऊर्जा का ज्यादा क्षय नहीं होता है। शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं। कलाई पर कलावा बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है।
कमर पर बांधी गई मौली : कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वान लोग कहते हैं कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है और कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है। बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती है। यह काला धागा भी होता है। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।
मनोवैज्ञानिक लाभ : मौली बांधने से उसके पवित्र और शक्तिशाली बंधन होने का अहसास होता रहता है और इससे मन में शांति और पवित्रता बनी रहती है। व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में बुरे विचार नहीं आते और वह गलत रास्तों पर नहीं भटकता है। कई मौकों पर इससे व्यक्ति गलत कार्य करने से बच जाता है।
संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'