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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

वानर राज बाली को कैसे मिल गई अप्सरा?

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वानर राज बाली किष्किंधा का राजा और सुग्रीव का बड़ा भाई था। बाली का विवाह वानर वैद्यराज सुषेण की पुत्री तारा के साथ संपन्न हुआ था। तारा एक अप्सरा थी। बाली को तारा किस्मत से ही मिली थी, लेकिइसकपीछरहस्क्यै?

बाली के पिता का नाम वानरश्रेष्ठ 'ऋक्ष' था। बाली के धर्मपिता देवराज इन्द्र थे। बालि का एक पु‍त्र था जिसका नाम अंगद था। बाली गदा और मल्ल युद्ध में पारंगत था। उसमें उड़ने की शक्ति भी थी। धरती पर उसे सबसे शक्तिशाली माना जाता था, लेकिन उसमें साम्राज्य विस्तार की भावना नहीं थी। वह भगवान सूर्य का उपासक और धर्मपरायण था। हालांकि उसमें दूसरे कई दुर्गुण थे जिसके चलते उसको दुख झेलना पड़ा।

 

अगले पन्ने पर इस तरह मिली बाली को अप्सरा...

 


आज से हजारों वर्षों पूर्व देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन के दौरान 14 मणियों में से एक अप्सराएं भी थीं। उन्हीं अप्सराओं में से एक तारा थी। बाली और सुषेण दोनों समुद्र मंथन में देवतागण की मदद कर रहे थे। जब उन्होंने तारा को देखा तो दोनों में उसे पत्नी बनाने की होड़ लगी।

तारा को लेकर दोनों में युद्ध की स्थिति निर्मित हो चली तब भगवाण विष्णु ने कहा कि अच्छा दोनों तारा के पास खड़े हो जाओ। बाली तारा के दाहिनी तरफ तथा सुषेण उसके बाईं तरफ़ खड़े हो गए। तब श्रीविष्णु ने कुछ देर दोनों को देखने के बाद फैसला सुनाया कि धर्म नीति अनुसार विवाह के समय कन्या के दाहिनी तरफ उसका होने वाला पति तथा बाईं तरफ कन्यादान करने वाला पिता खड़ा होता है। अतः बाली तारा का पति तथा सुषेण उसका पिता घोषित किया जाता है। इस तरह इस फैसले के तहत बाली ने सुंदर अप्सरा से विवाह किया