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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 21 मई 2024 (11:07 IST)

जगतगुरु भद्राचार्य ने हनुमान चालीसा में निकाली गलतियां, सही क्या है?

जगतगुरु भद्राचार्य ने हनुमान चालीसा में निकाली गलतियां, सही क्या है? - What did Jagatguru Swami Bhadracharya Maharaj say on Hanuman Chalisa
Hanuman Chalisa : तुलसी पीठाधीश्वर कथावाचक जगतगुरु भद्राचार्य का एक वीडियो इस समय वायरल हो रहा है जिसमें वे कह रहे हैं कि लोग हनुमान चालीसा पढ़ते वक्त कुछ बातों का ध्यान रखें। भद्राचार्यजी ने हनुमान चालीसा की कुछ चौपाई को गलत पढ़े जाने को लेकर टिप्पणी की। उनके द्वारा बताई गई गलतियों से कुछ लोग सहमत हैं और कुछ लोग नहीं। आओ जानते हैं कि उन्होंने कहां पर निकाली गलतियां।
 
उनका कहना है कि पब्लिशिंग की इस वजह से लोग गलत शब्दों का उच्चारण कर रहे हैं। रामभद्राचार्य जी 3 अप्रैल से आगरा में हैं। इस दौरान उन्होंने हनुमान चालीसा की 4 अशुद्धियों के बारे में बताया।
 
1. हनुमान चालीसा की एक चौपाई है- 'शंकर सुमन केसरी नंदन...।' भद्राचार्य जी ने कहा कि हनुमान को सुमन यानी शंकरजी का पुत्र बोला जा रहा है, जो कि गलत है। शंकर स्वयं ही हनुमान हैं। इसलिए कहना चाहिए 'शंकर स्वयं केसरी नंदन...।'  
 
खंडन : कई विद्वानों का मानना है कि सुमन का अर्थ सिर्फ पुत्र से नहीं लगाया जा सकता। यदि सुमन है तो इसका अर्थ है समान या उनके जैसा। अर्थात भगवान शंकर के समान है केसरी नंदन। दूसरा यदि सुवन है तो इसके कई अर्थ होते हैं। हालांकि हमारा मानना है कि रामभद्राचार्य जी यहां पर सही हो सकते हैं।
 
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥
अर्थ- शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वन्दना होती है।
  
2. भद्राचार्य ने आगे कहा कि हनुमान चालीसा की 27वीं चौपाई बोली जा रही है- 'सब पर राम तपस्वी राजा', जो कि गलत है. उन्होंने बताया कि तपस्वी राजा नहीं है सही शब्द 'सब पर राम राज फिर ताजा' है।
 
खंडन : कई विद्वानों का मानना है कि प्रभु श्रीराम एक तपस्वी थे। तुलसी दासजी ने सोच समझकर लिखा है।
 
सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥
अर्थ- तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।
3. भद्राचार्यजी ने 32वीं चौपाई को लेकर कहा कि 'राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा...' यह नहीं होना चाहिए। जबकि बोला जाना चाहिए- 'राम रसायन तुम्हरे पासा, सादर रहो रघुपति के दासा'।
 
खंडन : इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है दोनों ही सही है।
 
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
अर्थ- आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
 
4. भद्राचार्यजी ने बताया कि हनुमान चालीसा की 38वीं चौपाई में लिखा है- 'जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई ' जबकि होना चाहिए- 'यह सत बार पाठ कर जोही, छूटहि बंदि महा सुख होई'
 
खंडन : यह सिर्फ शब्दों का हेरफेर है। इससे कोई फर्क नहीं पढ़ता है। 
 
जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥38॥
अर्थ- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा।
 
सैंकड़ों वर्षों से यही कहते आए हैं लेकिन आज ही यह गलतियां क्यों नज़र आई? क्या तुलसीदासजी ने गलत लिखा या प्रकाशन की गलती हुई? प्रकाशन की गलती थी तो किस प्रकाशन ने सबसे पहले गलती की? क्या गोरखपुर प्रकाशन इसे पहले ही सुधार नहीं लेता?