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हिन्दी कविता : ख्याल

हिन्दी कविता : ख्याल - Prem Geet
कभी-कभी मुझे ख्याल आता है


 
गैरों की बातों पर मुझे अपना ख्याल किया नहीं आता है
जिस बात पर छिड़ी थी जंग वो सवाल याद किया नहीं आता है
 
जब तेरा आना मेरी जिंदगी में मुनासिब नहीं
तो तेरा ख्याल बार-बार क्यों आता है
 
जब मेरा जीत जाना तय है तो भी इस बात पर मुझे ऐतबार किया नहीं आता है
किस उलझन में हूं गुम याद नहीं आता है
 
जब थोड़ी-सी है प्यास मेरी फिर भी समंदर किया नजर आता है
पाना है सब कुछ मगर दुनिया से छीनना क्यों नहीं आता है
 
तेरे जाने का गम है मुझे बहुत मगर मना किया नहीं आता है
हमदर्द हैं सभी मगर दर्द बांटना नहीं आता है
 
यारों के चले जाने का रंज है मुझे पर बेमानी शर्तों पर जीना नहीं आता है
उसूलों पर जीना है मुझे अपने बस यही सवाल बार-बार याद आता है
 
कभी-कभी मुझे ख्याल आता है। 
 
 
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