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Written By WD

युधिष्ठिर के उत्तर आज भी प्रासंगिक

युधिष्ठिर उत्तर प्रासंगिक
महाभारत के वनपर्व में कथा आती है कि एक बार पांडव जंगल में भटक गए थे और बहुत प्यास लगने पर वे एक जलाशय के पास पहुँचे। यह किसी यक्ष का जलाशय था, जो जल लेने के बदले में कुछ प्रश्न पूछता था।

युधिष्ठिर को छोड़ सभी भाई यक्ष के प्रश्नों का समुचित उत्तर नहीं देपाने के कारण एक के बाद एक मरते गए। अंत में धर्मराज युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों के उत्तर दिए। उन उत्तरों का जो दार्शनिक सार निकलता है, वह आज भी पूरी तरह प्रासंगिक है। इन उत्तरों से संतुष्ट होकर यक्ष ने पांडवों को पुनजीर्वित कर दिया था। देखते हैं क्या था वहदर्शन :

* धैर्य रखने से दूसरे सहायक बन जाते हैं।
* वृद्धों की सेवा करने से मनुष्य बुद्धिमान होता है।
* मन को वश में रखने से मनुष्य को कभी शोक का शिकार नहीं होना पड़ता।
* सत्पुरुषों के साथ की गई मित्रता कभी जीर्ण नहीं होती।
* मान के त्याग से मनुष्य सबका प्रिय होता है।
* क्रोध के त्याग से शोक रहित होता है।
* कामना के त्याग से उसे अर्थ की सिद्धी होती है।
* स्वधर्म पालन का नाम तप है।
* मन को वश में करना दम है।
* सहन करने का नाम क्षमा है।
* क्रोध मनुष्य का बैरी है।
* तत्व को यथास्वरूप जानना ज्ञान है।
* चित्त के शांत भाव का नाम शम है।

* लोभ के त्याग से वह सुखी होता है।
* लोभ असीम व्याधि है।
* धर्म में अकर्मण्यता ही आलस्य है।
* शोक करना ही मूर्खता है।
* मन के मैल का त्याग ही स्नान है।
* अहंकार महा अज्ञान है।
* मिथ्या धर्माचरण दंभ है।
* विचारकर बोलने वाला प्रायः विजय पाता है।
* मित्रों की संख्या बढ़ाने वाला सुखपूर्वक रहता है।
* दूसरे की उन्नति देखकर मन में जो संताप होता है, उसका नाम मत्सरता है।
* जो सबका हित करता है वह साधु है, जो निर्दयी है वह असाधु है।
* प्रतिदिन लोग मरते हैं, उसको देखकर भी लोग स्थिर रहना चाहते हैं। इससे बढ़कर आश्चर्य क्या है?