मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. समाचार
  4. chhath puja 2016 bihar
Written By

सूर्यभक्ति में पौराणिक नगरी देव, प्राचीन छठ मेला शुरू

सूर्यभक्ति में पौराणिक नगरी देव, प्राचीन छठ मेला शुरू - chhath puja 2016 bihar
औरंगाबाद (बिहार)। औरंगाबाद जिले के ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक स्थल  देव में लोक-आस्था के महापर्व कार्तिक छठ के मौके पर लगने वाला 4 दिवसीय बिहार प्रां‍त का  सबसे प्राचीन छठ मेला शुक्रवार से शुरू हो गया।


 
लोक मान्यता है कि भगवान भास्कर की नगरी देव में पवित्र छठ व्रत करने एवं इस अवसर पर  त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर में आराधना करने से सूर्य भगवान के साक्षात दर्शन की रोमांचक अनुभूति  होती है और किसी भी मनोकामना की पूर्ति होती है।
 
इस छठ मेले में अन्य प्रांतों तथा बिहार के विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं तथा  व्रतधारियों के यहां पहुंचने का सिलसिला गुरुवार से ही शुरू हो गया है। देव पहुंचने वाले सभी  मार्ग छठ व्रत एवं सूर्य आराधना के भक्तिपूर्ण एवं कर्णप्रिय गीतों से गुंजायमान हैं।
 
सांप्रदायिक सद्भाव की अद्भुत मिसाल इस 4 दिनों के छठ मेले को सभी धर्मों के लोग  मिल-जुलकर सफल बनाते हैं और भगवान भास्कर की आराधना करते हैं। औरंगाबाद के जिला  प्रशासन के अनुसार देव छठ मेले के दौरान आने वाले श्रद्धालुओं एवं व्रतधारियों के लिए  पेयजल, बिजली, सुरक्षा, परिवहन तथा उचित दर पर आवश्यक वस्तुओं की बिक्री की समुचित  व्यवस्था की गई है।
 
भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किए जाने वाले स्थल एवं रुद्र कुंड के अलावा पूरे देव की  सफाई कराई गई है ताकि अर्घ्य अर्पित करने के समय किसी प्रकार की कठिनाई नहीं हो। इसके  अलावा सूर्य कुंड में किसी प्रकार की अप्रिय घटना से बचाव के लिए नावों के इंतजाम किए गए  हैं।
 
कार्तिक छठ मेले के अवसर पर त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया गया है और  मंदिर में श्रद्धालुओं के प्रवेश के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। मंदिर परिसर में विधि व्यवस्था  को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल को तैनात किया गया है।


 
ऐतिहासिक एवं धार्मिक ग्राम देव में लगने वाले बिहार के सबसे प्राचीन छठ मेले का अद्वितीय  महत्व है। बसों, बैलगाड़ियों से तथा पैदल यात्री छठी मैया के 'होखन सुरुजमल उगईया' और  'मरबऊ रे सुगवा धनुक से' समेत अनेक लोककथाओं पर आधारित लोकगीत गाते हुए  भाव-विह्वल होकर देव की पावन धरती पर पहुंच जाएंगे भगवान भास्कर की आराधना करने,  सूर्यकुंड में स्नान कर पवित्र होने और न जाने जिंदगी की कितनी मनौतियां मांगने।
 
देव का छठ मेला चाहे कार्तिक का हो अथवा चैत्र मास का- देववासियों के लिए वरदान बनकर  आता है। वरदान इसलिए क्योंकि देव में किराए पर मकान लगाने वालों की बन जाती है।  मुंहमांगा किराया मिला जाता है। बहुत से यात्री तो महीनों पूर्व देव में अपना-अपना कमरा बुक  करा लेते हैं। 
 
4 दिनों का छठ मेला कुछ के लिए तो बसंत ऋतु बनकर आता है। मिट्टी का चूल्हा, दीपक,  गोईठा, लकड़ी, सूप-ओडिया, फल-सब्जी आदि बेचने वालों की तो चांदी ही कटती है। यात्रियों को  मजबूरन इन सारे सामानों को मुंहमांगे दामों पर खरीदना पड़ता है। आखिर करें क्या? पूजा-पाठ  में काम आने वाला सामान जो ठहरा। मेला अवधि में जलावन की लकड़ी का भाव तो पूछिए  मत। 100 रुपए मन भी मिल जाए तो गनीमत है। 
 
यात्रियों के सामने भी रहने-ठहरने की एक मजबूरी है। आजादी के पूर्व यह मेला देव के जमींदार  के हाथ में था। जमींदारी उन्मूलन के साथ ही इस मेले का भी उन्मूलन हो गया। मतलब यह  मेला जमींदार के हाथ से निकलकर राज्य सरकार के कब्जे में चला गया। 
 
सुना जाता है कि जमींदार ने मेले के नाम पर 55 एकड़ जमीन सरकार को सुपुर्द की थी  जिसके एवज में सरकार ने पूर्व जमींदार को मुआवजे के तौर पर काफी मोटी रकम की अदायगी  की थी। लेकिन कालांतर में देखा गया कि जिस-जिस स्थान में मेला लगता था, वह जमीन  निजी लोगों के हाथों कैद हो गई। 
 
देव मेला आने वाले तीर्थयात्रियों के रहने-ठहरने में जो दिक्कत हो रही है उसकी तह में यही  कारण है कि अधिकांश सरकारी गैरमजरुआ जमीन जाली नकली परवान बनाकर तथा पैसा और  पैरवी के बल पर निजी संपत्ति के रूप में परिणत कर दी गई है। वैसे सार्वजनिक स्थानों को भी  नहीं बख्शा गया। जहां मेले के अवसर पर 20 से 25 हजार यात्री एकसाथ ठहरते थे। 
 
हालांकि तमाम परेशानियों के बावजूद भगवान भास्कर के प्रति श्रद्धालुओं एवं व्रतधारियों की  अटूट आस्था उन्हें हर साल इस पावन नगरी ले आती है। (वार्ता)
ये भी पढ़ें
छठी मइया के गीतों से पूरा बिहार हुआ गुंजायमान