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Last Updated : सोमवार, 14 जनवरी 2019 (23:07 IST)

Prayagraj Kumbha Mela 2019 : धर्मरक्षा के लिए स्थापित अखाड़े कुंभ की शान

Prayagraj Kumbha Mela 2019  : धर्मरक्षा के लिए स्थापित अखाड़े कुंभ की शान - Kumbh Mela
प्रयागराज। दुनिया के सबसे विशाल धार्मिक आयोजनों में से एक कुंभ मेले में दिव्यता और भव्यता के प्रतीक अखाड़े हमेशा श्रद्धालुओं की आस्था और जिज्ञासा का केंद्र रहे हैं।
 
 
मान्यताओं के अनुसार सनातन धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए आदिशंकराचार्य ने 4 पीठों की स्थापना की थी जिसमें दक्षिण में श्रृंगेरी शंकराचार्य पीठ, पूर्व (ओडिशा) जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ, पश्चिम द्वारिका में शारदा मठ और बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिपीठ शामिल हैं।

इन पीठों की रक्षा के लिए 8वीं सदी में शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों को मिलाकर 13 जत्थों का गठन किया गया। इनमें महानिर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, आवाहन, अग्नि और आनंद की स्थापना खुद शंकराचार्य ने की थी।
 
काफी समय तक आश्रमों के अखाड़ों को 'बेड़ा' अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। वास्तव में 'अखाड़ा' शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। शंकराचार्य ने 8वीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे, तब से वही अखाड़े बने हुए थे लेकिन इस बार 1 और अखाड़ा जुड़ गया है जिस कारण इस बार कुंभ में 14 अखाड़ों की पेशवाई के दर्शन सुलभ हुए।
 
फारसी शब्दकोष से लिया गया शब्द 'पेशवा' का अर्थ अग्रणी है। मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्रियों को 'पेशवा' कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। अखाड़ों को भी पीठों का रक्षा प्रमुख माना गया है और इसी नाते अखाड़ों की पेशवाई को धूमधाम से निकाला जाता है।
 
दरअसल, अखाड़ा, साधुओं का वह दल है, जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है। कुछ धर्मावलंबियों के अनुसार 'अलख' शब्द से ही 'अखाड़ा' शब्द बना है जबकि कुछ का मानना है 'अखाड़ा' शब्द की उत्पत्ति अक्खड़ से या आश्रम से हुई है। कुंभ मेले के दौरान सभी 14 अखाड़े 3 शाही स्नानों में हिस्सा लेंगे। ये स्नान 15 जनवरी को मकर संक्रांति, 4 फरवरी को मौनी अमावस्या और 10 फरवरी को बसंत पंचमी पर होंगे। शाही स्नान के लिए संगम के पास विशेष घाट बनाया गया है। प्रत्येक अखाड़े को स्नान के लिए 45 मिनट का वक्त दिया जाएगा।
 
हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक 14 अखाड़ों में से एक अटल अखाड़ा के ईष्टदेव भगवान गणेश हैं। इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा ले सकते हैं और कोई अन्य इस अखाड़े में नहीं आ सकता है। यह सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक माना जाता है जबकि आवाहन अखाड़े के ईष्टदेव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन दोनों हैं। इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है।
 
निरंजनी अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा है। इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्वर हैं। इनके ईष्टदेव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय हैं। इस अखाड़े की स्थापना 826 ईस्वी में हुई थी। पंचाग्नि अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते हैं। इनकी ईष्टदेव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है। 
महानिर्वाण अखाड़े के पास महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्‍मा है। इनके ईष्टदेव कपिल महामुनि हैं। इसकी स्थापना 671 ईस्वी में हुई थी जबकि आनंद अखाड़े की स्थापना 855 ईस्वी में हुई थी। इस अखाड़े के आचार्य का पद ही प्रमुख होता है। इसका केंद्र वाराणसी है।
 
मान्यताओं के मुताबिक वैष्णव संप्रदाय के तीनों अखाड़ों में से निर्मोही अखाड़े में सबसे ज्यादा अखाड़े हैं। इस अखाड़े की स्थापना रामानंदाचार्य ने 1720 में की थी। इस अखाड़े के मंदिर उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, बिहार, राजस्थान आदि जगहों पर स्थित हैं। बड़ा उदासीन पंचायती अखाड़ा की शुरुआत 1910 में हुई थी। इस अखाड़े के संस्थापक श्रीचंद्रआचार्य उदासीन हैं। इस अखाड़े का उद्देश्‍य सेवा करना है।
 
नया उदासीन अखाड़े की शुरुआत 1710 में हुई थी। मान्यता है कि इस अखाड़े को बड़ा उदासीन अखाड़े के साधुओं ने बनाया था जबकि निर्मल अखाड़े की स्थापना श्रीदुर्गासिंह महाराज ने की थी जिनके ईष्टदेव श्री गुरुग्रंथ साहिब हैं। कहा जाता है कि इस अखाड़े के लोगों को दूसरे अखाड़ों की तरह धूम्रपान करने की इजाजत नहीं है।
 
वैष्णव अखाड़े की स्थापना मध्यमुरारी ने की थी जबकि नागपंथी गोरखनाथ अखाड़े की स्थापना 866 ईस्वी में हुई जिसके संस्थापक पीर शिवनाथजी हैं। जूना अखाड़े के ईष्टदेव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। हरिद्वार में इस अखाड़े का आश्रम है। इस अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज हैं। इस कुंभ में पहली बार किन्नर अखाड़े ने पेशवाई निकाली है। इस बार कुंभ में किन्नर अखाड़ा भी शामिल हो चुका है। इस अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी हैं। 
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