शुक्रवार, 29 नवंबर 2024
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हुनर हाट ने फिर से जिंदा की अल्‍पसंख्‍यकों की ‘हाथ की कारीगरी’

हुनर हाट ने फिर से जिंदा की अल्‍पसंख्‍यकों की ‘हाथ की कारीगरी’ - hunar hat
कहीं दुपट्टों के हरे- नीले रंग खिले हुए थे तो कहीं लाख की चूड़ी के गर्म होने की महक आ रही थी। कहीं राजस्‍थान की सभ्‍यता को बयां करती रजवाड़ी मोजड़ी थी तो कहीं दिल्‍ली के कुर्तें और असम की खूबसूरत साड़ियां। इन सब से अलग एक कोने में पंजाब और कश्‍मीरी जायके की एक पूरी फेहरिस्‍त।

यह दृश्‍य है इंदौर में चल रहे ‘हुनर हाट’ का। एक ऐसा हाट या यूं कहे मेला जो देशभर में लगने वाले ट्रेडिशनल मेलों से बिल्‍कुल जुदा। यह हाट इसलिए अहम और दूसरे आयोजनों से अलग है क्योंकि यहां हाथ से बनी हुई कारीगरी और शिल्‍पकारी थी।

हाथ से बनी हुई इतनी महीन और सुंदर कारीगरी शायद कहीं ओर देखने को नहीं मिलेगी। चाहे वो हाथ से बनी कश्‍मीरी शॉल हो या असम की साड़ी। हाथ से क्राफ्ट की गई जोधपुरी जूतियां हो नाइट लैंप, अलग-अलग आवाज में टन-टन करती घंटियां, मिट्टी के बर्तन, चटाई, चादर या हिमाचली टोपी। यहां जो कुछ भी था वो हाथों का कमाल था। इस कमाल को देखकर यकीन करना मुश्‍किल था कि इस कारीगरी को बगैर किसी मशीन के अंजाम दिया गया है। इंदौर में चल रहे हुनर हाट में करीब सौ दुकानों में सैकड़ों तरह की हाथ की शिल्‍पकारी यहां के लोगों का मन मोह रही है।

दरअसल, भारत सरकार के अल्‍पसंख्‍यक मंत्रालय के इस प्रकल्‍प में अल्‍पसंख्‍यक कारीगरों और शिल्‍पकारों का हुनर निखरकर सामने आ रहा है। अल्‍पसंख्‍यक यानी मुस्‍लिम, ईसाई, बौद्ध आदि समुदाय के लोग इस प्रोजेक्‍ट में बढ़-चढ़कर हिस्‍सा ले रहे हैं। इंदौर में आयोजित इस हाट में दिल्‍ली, पंजाब, कश्‍मीर, असम, केरल, उड़ीसा, राजस्‍थान और हिमाचल प्रदेश से लेकर कई अन्‍य दूसरे राज्‍यों के अल्‍पसंख्‍यक कलाकार आए हैं। दरअसल, हुनर हाट मोदी सरकार में अल्‍पसंख्‍यक लोगों के जीवनस्‍तर को ऊंचा उठाने के लिए शुरू किया गया है जिसे मंत्री मुख्‍तार अब्‍बास नकवी के मार्गदर्शन में संचालित किया जाता है।

हुनर हाट का जिक्र इसलिए भी जरुरी है, क्‍योंकि देश में फिलहाल एनआरसी और सीएए को लेकर हिंदू-मुस्‍लिम के बीच जो माहौल पैदा हुआ है, वो उतना सच नहीं है, जितना उसे बताया जा रहा है। सरकार लगातार अल्‍पसंख्‍यकों के लिए काम कर रही है और इसका सबूत मेले में आए अल्‍पसंख्‍यों से चर्चा करने पर भी मिलता है।

जो दिख रहा वो सच नहीं है
दुकानदार मोहम्‍मद आरिफ ने बताया कि देश में जो माहौल फिलहाल चल रहा है, उससे सरकार की छवि कुछ और ही नजर आ रही है, लेकिन सच तो यह है कि मोदी सरकार ने हुनर हाट की शुरुआत कर हमारे जीवन स्‍तर और रोजी-रोटी को बढ़ावा देना का बेहद ही सराहनीय काम किया है।

सरकार का शुक्रिया
श्रीनगर से आए तालिब ने बताया कि पूरा खर्च सरकार उठा रही है। टिकट का भी पैसा सरकार देती है, किसी तरह का कोई शुल्‍क सरकार हमसे नहीं लेती है। हमें बहुत फायदा हो रहा है। इंदौर में भी अच्‍छा रिस्‍पॉन्‍स मिल रहा है। सरकार चाहती है कि हम खुद ही बनाए और खुद ही सेल करे। इसलिए यह शुरू  किया गया, इसलिए सरकार का बहुत शुक्रिया।

हाथ की कारीगरी में आ गई जान
मोहम्‍मद मोन्‍यूलाग जूट और बांबू का सामान बेचते हैं। आसाम से आए हैं। मोदी सरकार ने 5-6 साल पहले शुरू किया था। हम कई जगह जाकर हुनर हाट में अपनी दुकान लगा चुके हैं, इसमें हमें बहुत फायदा हो रहा है। अब्‍दुल्‍ला अंसारी बनारस से साड़ी लाए हैं। उन्‍होंने बताया कि यह बहुत अच्‍छी योजना है, सरकार के मंत्री मुख्‍तार अब्‍बास नकवी के मार्गदर्शन यह आयोजन होता है, जो हाथ का हुनर मर गया था, जो कारीगरी मर गई थी, उसमें फिर से जान आ गई है।

समूह और एनजीओ की महिलाएं भी खुश
उत्‍तराखंड के काशीपुर से आई साजिदा ने बताया कि हमारी गवर्नमेंट ने यह बहुत अच्‍छी शरुआत की है। इसमें न सिर्फ कारीगर और शिल्‍पकार जुड़ रहे हैं, बल्‍कि समूह और एनजीओ की महिलाएं भी काम कर रही हैं। समूह और एनजीओ की महिलाएं जो सामान अपने हाथ से बना रही हैं, वो भी हुनर हाट में अच्‍छे दामों पर बिक रहा है। कई समूहों की महिलाओं को इसमें मुनाफा हो रहा है। कुछ इसी तरह की राय हाट में आए मोहम्‍मद इकबाल, फतिमा बी, अरमान हुसैन और कई दूसरे अल्‍पसंख्‍यक कारीगरों की है।

क्‍या है हुनर हाट के फायदे
  1. अल्‍पसंख्‍यक कलाकारों को प्लेटफॉर्म मिल रहा है।
  2. भारतीय कारीगरों व शिल्पकारों के विश्वसनीय ब्रांड का निर्माण।
  3. भारतीय धरोहर और कारीगरों व शिल्पकारों को बढ़ावा मिल रहा।
  4. शिल्पकारों व कारीगरों को सशक्तीकरण व रोज़गार के लिए प्लेटफार्म उपलब्ध हो रहा है।
  5. मेक इन इंडिया, स्टैंड अप इंडिया और स्टार्टअप इंडिया के उद्देश्य को पूरा करने में मदद मिल रही।
  6. हुनर हाट का केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय की उस्ताद योजना के तहत संचालित किया जा रहा है। यह योजना देश के अल्पसंख्यक समुदाय की परंपरागत कला और शिल्प धरोहर का संरक्षण करने का काम करती है। इसके लिए उनके कौशल में वृद्धि की जाती है। उनके उत्पादों को वैश्विक बाज़ार तक पहुंचाने के लिए प्रयास किया जाता है।