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जया पार्वती व्रत : जानिए पूजन-अर्चन और कथा

जया पार्वती व्रत : जानिए पूजन-अर्चन और कथा - Jaya Parvati vrat
प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन विशेष व्रत किया जाता है। जिसे जया-पार्वती व्रत अथवा विजया-पार्वती व्रत के नाम से जाना जाता है। य ह मालवा क्षेत्र का लोकप्रिय पर्व है और बहुत कुछ गणगौर, हरतालिका, मंगला गौरी और सौभाग्य सुंदरी व्रत की तरह है। इस व्रत से माता पार्वती को प्रसन्न किया जाता है। 
 

 
पौराणिक पुराणों के अनुसार यह व्रत स्त्रियों द्वारा किया जाता है। माना जाता है कि यह व्रत करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त  होता है। मान्यताओं के अनुसार इस व्रत का रहस्य भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी को बताया था। 
 
 
कहीं इसे सिेर्फ एक दिन और कहीं इसे 5 दिन तक मनाया जाता है। बालू रेत का हाथी बना कर उन पर 5 प्रकार के फल, फूल और प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। 

आइए जानें कैसे करें व्रत पूजन 
 
* आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। 
 
* तत्पश्चात व्रत का संकल्प करके माता पार्वती का स्मरण करें। 
 
* घर के मंदिर में शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। 
 
फिर शिव-पार्वती को कुंमकुंम, शतपत्र, कस्तूरी, अष्टगंध और फूल चढ़ाकर पूजा करें। 
 
* तत्श्चात ऋतु फल तथा नारियल, अनार व अन्य सामग्री अर्पित करें। 
 
* अब विधि-विधान से षोडशोपचार पूजन करें।
 
* माता पार्वती का स्मरण करके स्तुति करें।  
 
* फिर मां पार्वती का ध्यान धरकर सुख-सौभाग्य और गृहशांति के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करके अपने द्वारा हुई गलतियों की क्षमा मांगे। 
 
* तत्पश्चात कथा श्रवण करें, कथा के बाद आरती करके पूजन को संपन्न करें। 
 
* अब ब्राह्मण को भोजन करवाएं और इच्छानुसार दक्षिणा देकर उनके चरण छूकर आशीर्वाद लें। अग र बालू रेत का हाथी बनाया है तो रात्रि जागरण के पश्चात उसे नदी या जलाशय में विसर्जित करें। 

 

जया-पार्वती व्रत कथा


 
 
पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय कौडिन्य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सत्या था। उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनके यहां संतान नहीं होने से वे बहुत दुखी रहते थे।
 
एक दिन नारद जी उनके घर पधारें। उन्होंने नारद की खूब सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा। 
 
तब नारद ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उसके दक्षिणी भाग में बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान शिव माता पार्वती के साथ लिंगरूप में विराजित हैं। उनकी पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी।
 
तब ब्राह्मण दंपत्ति ने उस शिवलिंग की ढूंढ़कर उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इस प्रकार पूजा करने का क्रम चलता रहा और पांच वर्ष बीत गए। 
 
एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी उसे सांप ने काट लिया और वह वहीं जंगल में ही गिर गया। ब्राह्मण जब काफी देर तक घर नहीं लौटा तो उसकी पत्नी उसे ढूंढने आई। पति को इस हालत में देख वह रोने लगी और वन देवता व माता पार्वती को स्मरण किया।
 
ब्राह्मणी की पुकार सुनकर वन देवता और मां पार्वती चली आईं और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया, जिससे ब्राह्मण उठ बैठा। 
 
तब ब्राह्मण दंपत्ति ने माता पार्वती का पूजन किया। माता पार्वती ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा। तब दोनों ने संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की, तब माता पार्वती ने उन्हें विजया पार्वती व्रत करने की बात कहीं। 
 
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन उस ब्राह्मण दंपत्ति ने विधिपूर्वक माता पार्वती का यह व्रत किया, जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। इस दिन व्रत करने वालों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है तथा उनका अखंड सौभाग्य भी बना रहता है। 

- राजश्री कासलीवाल 
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