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Written By ओशो

मानवता को चाहिए सर्जक

Osho discourse | मानवता को चाहिए सर्जक
जन्म से ही कलाकार होते हैं सभी बच्चे। यह अलग बात है कि बाद में हम उन्हें बरबाद कर देते हैं; वरना हर बच्चा दुनिया में महान सृजनात्मकता लेकर आता है। हम उसे पनपने नहीं देते क्योंकि हमें सृजनात्मकता से डर लगता है।

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हमने सृजनात्मकता को केवल दायरे में और केवल कुछ लोगों के लिए ही पनपने की इजाजत दी है। हम नहीं चाहते कि हर कोई कवि और चित्रकार हो जाए, क्योंकि अगर हर कोई कवि और चित्रकार हो गया तो दुनिया पूरी तरह कुछ की कुछ हो जाएगी। तब उसमें कोई संरचना नहीं रहेगी, कोई राजनीति नहीं होगी। कोई युद्ध संभव नहीं रह जाएगा। राजनेताओं को इस धरती से लापता हो जाना होगा। और तब धन के पीछे पागल होकर कौन भागेगा अगर दुनिया में बहुत-बहुत से कवि, बहुत से चित्रकार, संगीतकार और गायक हो जाएंगे? धन के बारे में सोचेगा ही कौन?

दरअसल, यह पूरा ढाँचा ही सृजनात्मकता को नष्ट करने पर निर्भर है। यह समाज है ही बेहद असृजनात्मक। यह केवल कुछ ही लागों को सृजनात्मक होने की अनुमति देता है, और वह भी सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से। केवल एकरसता भंग करने के लिए ही। कभी एक बार संगीत सभा में चले गए और आनंद ले लिया। काम से भरी दुनिया में थोड़ी सी विश्रांति मिल गई। लेकिन कोई इसे गंभीरता और गहनता नहीं लेता। उसे कुछ अतिरिक्त माना जाता है, जैसे कि कोई साइड शो हो रहा हो।

सृजनात्मकता को मुख्य स्रोत बनना है। सृजनात्मकता को जीवन की मुख्य धार बनना है। तभी यह दुनिया कुछ भिन्न हो पाएगी। तब यह दुनिया धार्मिक होगी- इसलिए नहीं कि उसमें बहुत से चर्च होंगे, बल्कि इसलिए कि उसमें बहुत से चित्रकार, बहुत से कवि, बहुत से गायक, बहुत से संगीतकार और बहुत से नर्तक होंगे।

असल में हर किसी को नृत्य करना, गाना और चित्र बनाना आना चाहिए। इन कामों के लिए विशेषज्ञता की जरूरत क्यों पड़े, ये विशेषज्ञता की मोहताज नहीं हैं। उन्हें साँस लेने की तरह, प्रेम करने की तऱह, सोने की तरह स्वभाविक रूप से आना चाहिए।

जो चित्र नहीं बना सकता वह व्यक्ति किसी चीज से वंचित है। जरूरी नहीं कि हर कोई वॉन गो हो, हर किसी को शेक्सपियर बनने की आवश्यकता भी नहीं। पर हर किसी को अपनी प्रेमिकाओं के लिए कुछ कविताएँ लिखना तो आना ही चाहिए।लेकिन, मैंने सुना है कि जब लोग अपनी को कविताएँ लिखकर भेजते भी हैं तो वह दूसरों की कविता की नकल होती है। वे स्वयं अपने प्रेमपत्र भी नहीं लिख सकते।

बाजार में किताबें बिकतीं हैं- 'प्रेमपत्र कैसे लिखें'।... लोगों को प्रेमपत्र लिखना भी सीखना पड़ता है। कितना कुरूप संसार है यह। हर किसी को एक गीत गाना तो आना ही चाहिए। हर कोई कम से कम एक साज बजाना तो आना ही चाहिए। जीवन का हिस्सा होना चाहिए इन बातों को। केवल तभी हम अलग तरह की ऊर्जा, अलग तरह की मानवता रच पाएंगे।

- दि सन बिहाइंड दि सन बिहाइंड दि सन/ सौजन्य ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन