अबूधाबी में 'भगवान शिव', गोपियों के साथ कृष्ण भी
अबूधाबी। अबूधाबी के लूव्र अबूधाबी (एलएडी) में शिव की मूर्ति स्थापित की जा रही है लेकिन हिंदुओं की मांग है कि संग्रहालय में और अधिक हिंदू शिल्पकृतियों को स्थापित किया जाए। विदित हो कि इस संग्रहालय का उद्घाटन फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मेनुअल मैक्रों ने आठ नवंबर को किया है और हिंदुओं ने अधिक संख्या में हिंदू शिल्पकृतियों, पुरावशेषों को यहां शामिल करने की मांग की है।
लूव्र संग्रहालय में दसवीं सदी के नाचते हुए शिव की मूर्ति को प्रदर्शित किया गया है। साथ ही, इसके संग्रह में गोपियों के साथ भगवान कृष्ण की एक पेंटिंग को भी संग्रह में शामिल किया गया है। अमेरिका के हिंदू राजनीतिज्ञ राजन जेड ने नेवादा, अमेरिका, में एक बयान में आज कहा है कि यह सकारात्मक दिशा में उठाया गया एक कदम है।
यूनिवर्सल सोसायटी ऑफ हिंदुइज्म के अध्यक्ष राजन जेड ने इस बात पर जोर दिया कि अगर संग्रहालय अपने आप को विश्व स्तरीय संग्रहालय बनाना चाहता है और अपने 'वैश्विक संग्रहालय' के दावे सच साबित करना चाहता है तो इसे और अधिक हिंदू मूर्तियों को यहां स्थापित करना चाहिए।
राजन जेड का कहना है कि हिंदुत्व में कला एक दीर्घकालिक और समृद्ध परम्परा है और प्राचीन संस्कृत साहित्य में देवताओं की लकड़ी या कपड़े पर धार्मिक पेंटिंग्स के बारे में जानकारी दी गई है। उन्होंने यह भी कहा कि लूव्र अबुधाबी (एलएडी) को समृद्ध हिंदू कला विरासत को साझा किए जाने की जरूरत है और इसे कला के माध्यम से मानवीय संबंधों को बनाने के मिशन को दुनिया को बताने की भी जरूरत है।
तमिलनाडु (भारत) से खो गई कांसे की चोल युग में बनी 86 सेंटीमीटर ऊंची यह शिव की नाचते हुए मूर्ति है और इसमें शिव को नृत्य के देवता 'नटराज' के तौर पर प्रदर्शित किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार यह प्रतिमा नेशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया के संग्रह में 2009 तक रही है। हिंदुत्व के अनुसार भगवान शिव, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के साथ मिलकर प्रमुख देवताओं की त्रयी बनाती है और इसके सारी दुनिया में एक अरब 10 करोड़ मानने वाले हैं जिनका अंतिम उद्देश्य जीवन में मोक्ष प्राप्त करना है।
यह सादियात द्वीप पर बना है और फ्रांसीसी शिल्पज्ञ ज्यां नूवेल ने इसे डिजाइन किया है और इसके लिए म्यूजी डु लूव्र, पेरिस के साथ समझौता किया गया है। बताया जाता है कि इस संग्रहालय में वान गॉग, पिकासो, गॉगिन, ए वेईवेई, व्हिसलर आदि की रचनाएं भी प्रदर्शित की जाएंगी। यह दावा किया जाता है कि यह 1840 में खोले गए न्यू यॉर्क के मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट की विश्व की सबसे बड़ी सांस्कृतिक परियोजना से भी बड़ा होगा।