लाहौर, पाकिस्तान में जन्म। पंजाब विश्वविद्यालय से एम.ए., पी.एच.डी.। कुछ समय तक सरकारी कॉलेज लुधियाना में प्राध्यापिका रहीं। 1982 में अमेरिका आईं और अब ओहायो में रहती हैं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए श्रेष्ठ नाटकों। हिंदी फिल्मों के नामी कलाकारों और गायकों के दर्जनों प्रदर्शन करवाए। प्रकाशित कृतियाँ : रेत की दीवार, कनिका, सूरज नहीं उगेगा तथा काँच के टुकड़े (सभी कहानी संग्रह)। शिखण्डी युग (कविता संग्रह)।
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कितने ही आँचलों से ढ़ँकते रहते हैं हम अपने दुबके हुए नासूर।
पाते हैं हम सुख भरपूर तन को सँवारने का पर मन उतना ही छिट पुट दिन पर दिन रीतता रहता है भुरभुरी हुई दीवार-सा
नदी का कोई बाँध टूट कर न जाने किन-किन दिशाओं से जूझता हुआ आँखों में आकर बस जाता है
मोह-बन्ध के मोह पाश तोड़कर नहीं निकल पाते हम उम्रभर सब कुछ पर कुछ भी नहीं फिर भी जीते हैं हम सब भूल कर