समकालीन काव्य का महत्ताम व्यक्तित्व। अतियथार्थवादी धारा का नेता।
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औरा कुछ नहीं होगा न भुनभुनाता हुआ कीड़ा न काँपती हुई पत्ती न कोई गुर्राता हुआ पशु, बदन चाटता हुआ पशु न कुछ गर्म न कुछ कुसुमित न कुछ तुषाराच्छादित। न उज्ज्वल, न सुगन्धित न मधुमासी फूल से स्पन्दित कोई छाया न वर्फ़ का फर डाले कोई वृक्ष न चुम्बन से रंजित कपोल न कोई सन्तुलित पंख, हवा को चीरता पंख न कोमल मांसल खण्ड, न संगीत भरी बाँह न कुछ मूल्यहीन, न विजय योग्य, न विनाश योग्य न बिखरने वाला, न संगठित होने वाला अच्छे के लिए, बुरे के लिए न रात, प्रेम या विश्राम की भुजाओं में सोई हुई न एक आवाज़ आश्वासन की, न भावाकुल मुख न कोई निरावृत उरोज, न फैली हुई हथेली न अतृप्ति न सन्तोष न कुछ ठोस न पारदर्शी न भारी न हलका न नश्वर न शाश्वत पर मनुष्य होगा कोई भी मनुष्य मैं या और कोई यदि कोई तो फिर कुछ नहीं होगा।