एनआरआई कविता : देख मानव
डॉ. परमजीत ओबराय
देख मानवमन मस्तिष्क बूढ़े हो चलेअवस्था उनकी चरमराएसदा लगाता तू इन्हें सोच मेंदया न इन पर आए।शरीर तो बूढ़ा होता दिखतापर मन मस्तिष्क कीअवस्था काध्यान तुझे न आए।जब लादेगा अनगिनत चिंताएंरोगी होंगे तब येतब तू घबराए।मनरूपी लगाम को खींचेगायदि तेजइच्छाओं का महल न कहीं ढह जाएयात्री आत्मा कहींशरीररूपी रथ सेउतर न जल्दी जाए।बुद्धि सारथी हैशरीर रथ कीकाम उसका सदा तू बढ़ाएअध्ययन-चिंतन में लग तू सदाक्रंदन उनका न सुन पाए।