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Written By WD Feature Desk

नॉर्थ कैरोलाइना में मना 'हिंदी भाषा कविता गोष्ठी' महोत्सव

नॉर्थ कैरोलाइना में मना 'हिंदी भाषा कविता गोष्ठी' महोत्सव - Poetry Seminar Organization in Charlotte
रिपोर्ट- सौरभ सोनी
 
Poetry Seminar Organization: गत दिवस नॉर्थ कैरोलाइना साहित्यिक मंच की वर्ष 2024 की पहली मासिक गोष्ठी अमेरिका के नॉर्थ कैरोलाइना राज्य के शार्लिट शहर में मंच की सदस्य रेखा भाटिया जी के निवास स्थान पर आयोजित हुई। यह गोष्ठी अन्य गोष्ठियों से भिन्न थी, इस दिन दो शहरों के कवियों ने मंच साझा कर हिंदी भाषा का महोत्सव मनाया। 
 
चरम पर शीत ऋतु को मात देकर राली शहर से तीन घंटों का सफ़र कर सभी कवि दोपहर 12 बजे तक रेखा भाटिया के निवास स्थान पर शार्लिट पहुंचे थे शार्लिट, नॉर्थ कैरोलाइना के साहित्यिक मंच 'साहित्य संगम' से रीमा भाटिया, ईशिता शर्मा, देव मिश्रा, विनीता भूप, अंजु जैन और रेखा भाटिया ने भाग लिया। मुख्य श्रोता थे डॉ प्रीति भागिया, राजीव कुलकर्णी, आनंद भाटिया, अंजु मिश्रा एवं कंचन लाल।
 
गोष्ठी के प्रारंभ में ममता त्यागी ने सभी का स्वागत किया 'आओ वक्त का जश्न मनाएं, कविताओं का गुलदस्ता सजाएं'' कह कर गोष्ठी का आगाज़ किया। उन्होंने रेखा भाटिया एवं आनंद भाटिया का गर्मजोशी से स्वागत-सत्कार करने के लिए सभी की तरफ से हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किया और रेखा जी को गोष्ठी संचालन की कमान सौंप दी।
 
रेखा भाटिया ने अपने अनोखे अंदाज में चरणजीत लाल को मां सरस्वती की वंदना के लिए आमंत्रित किया। चरणजीत जी ने मां वीणा वादिनी के चरणों में शब्द पुष्प अर्पित किए और सभी के लिए मां शारदे का आशीर्वाद मांगा।
 
जनवरी के ठंडे मौसम में गर्मजोशी भरते हुए ममता त्यागी का मीठा सा परिचय देते हुए रेखा भाटिया ने उन्हें काव्य पाठ का शुभारंभ करने के लिए आमंत्रित किया।  ममता जी ने अपनी दो हृदय स्पर्शी कविताएं 'मेरा एहसास' और 'प्रपात की शक्ति' पढ़ी। आंसुओं का सुन्दर चित्रण करते हुए 'जब भी मन कुछ उद्वेलित सा होता है, मेरी आंखों से एक प्रपात बह निकलता है' उनके जीवन का सत्य कहने का यह अंदाज सभी को अंतस मन तक छू गया।
 
ममता त्यागी ने दो ख़ुशख़बरी देकर सभी का मन प्रसन्न कर दिया। मंच की संस्थापक डॉ. सुधा ओम ढींगरा की 'चलो फिर से शुरू करें' और ममता त्यागी जी की 'डोर अनजानी सी' दो कहानी संग्रह शिवना प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं, जिनका दिल्ली में हो रहे वर्ल्ड बुक फेयर में विमोचन होगा।
 
रेखा जी ने आगे बढ़ते हुए मंच की चंचल, निर्भीक मयूरी को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया। मयूरी ने एक इंसानी जज़्बात 'गुस्से' को बहुत ही संजीदा शब्दों में पिरोया। 'गुस्सा कहां खुद को खुद से मिलने देता है, अपने को कटघरों में खींच हर रिश्ते को तबाह कर जाता है।' उन्होंने चांद को भी आईना दिखा दिया। सच में इस चिरैया ने तूफान खड़ा कर सबको मोहित कर दिया।
 
कवि अमृत वधवा ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य  में कटाक्ष करती उनकी कविता 'राम और रावण' का पाठ किया। राम और रावण दोनों की शक्ति अपार है परंतु फ़र्क़ है सिर्फ अहंकार का। 'राम का जप कर और कर सबसे प्यार'- इस सन्देश के साथ उन्होंने सबका मन मोह लिया।  
 
एक डरा हुआ कवि कभी समाज को आईना नहीं दिखा सकता। अमृत जी ने राम और रावण की भीतर का द्वंद्व और प्रचलित आडम्बरों को बड़ी ही निर्भीकता से प्रस्तुत किया और दूसरी कविता में हृदय की कोमल भावनाओं को श्रृंगार रस में डूबो कर सभी को प्रफुल्लित कर दिया।
 
शार्लिट की विनीता भूप ने जब तान छेड़ी और कहा 'जज़्बातों को अल्फाजों में पिरोया है, दुनिया ने समझना छोड़ दिया और हमने समझाना। उनकी कविता की पंक्तियां- वो मेरी ख़ामोशी को मेरी नादानी समझते रहे, हम भी उन्हें अपनी ख़ुशफ़हमी का लुत्फ़ लेते देखते रहे, क़सूर वक़्त का था और हम उनका समझते रहे। ' सभी ने बहुत सराही।
 
वह नज़रें मिलती हैं सीधे और वह मांगती हैं ऊर्जा सूरज से, कभी सुनामी बन काट किनारों को नए मानचित्र बना जाती। यह बोल कर रेखा जी ने साहित्यिक मंच की चट्टान विरल को आमंत्रित किया। आते ही उन्होंने जैसे ही कहा 'सीधा सवाल और टेढ़ी बात, इंसान का बेटा इंसान क्यों नहीं ?', श्रोतागण वाहवाही कर उठे। उनकी दो छोटी और सुन्दर कविताएं बहुत सटीक थी, जैसे गागर में सागर भर देना। 
 
शार्लिट के देव मिश्रा ने अपनी दो रचनाएं 'दो बातों की बातें' और 'देवकी नंदन' से भक्ति के रस में सभी का मन मोह लिया। बहुत मोहक तरीके से उन्होंने अपनी बात रखी- 'कारे नाम वाले तो काम कारा करे'।
 
मुस्कुरा कर करती है स्वागत हर ऋतु का और जो वायु सी बहती है- इन शब्दों से रेखा जी ने आमंत्रित किया शार्लिट की रीमा भाटिया जी को। बहुत ही अनोखे शीर्षक दर्ज़ी से उन्होंने कविता पाठ प्रारंभ किया, 'छत पर धूप सेंकती बैठी मैं बिलकुल अकेली थी, कुछ सवालों को सोच कर तनहा ही उलझी थी, पास बुला अपनी ज़िंदगी को सोचा यूं ही बतिया लिया जाए, ज़िंदगी भी एक दर्ज़ी की तलाश में हैं जो सब कुछ जोड़ कर संवरना चाहती है।'
 
'अनोखे इन रचनाकार की रचनाओं ऐसी होती हैं मानों कुदरत बन मीरा नाच रही और उस मोह में तेज सूरज बने कृष्ण' रेखा भाटिया ने कुछ इस तरह मंच पर आमंत्रित किया ग़ज़ल और दोहों के बादशाह अफरोज़ ताज को, आते ही उन्होंने समां बांध दिया 'जाने क्या बात है वो बात नहीं आई, तुमने तस्वीर किसी गैर से खिंचवाई है ?'और 'उल्टी गंगा राम की कह दूं सांची बात । मुर्दों को है ताज महल, जिन्दों को फ़ुटपाथ ' ऐसे कई दोहे सुना कर उन्होंने वाहवाही लूटी। उनकी ग़ज़ल की पंक्ति 'दो क़दम पे मिल गई मंजिल तो उसका क्या मज़ा, रास्ते पुर ख़ार मंजिल दूर होना चाहिए ' पूरी ग़ज़ल की शख़्सियत को बयां करता है।
 
अब बारी थी शब्दों के शिल्पी चरणजीत लाल की। उन्होंने कविता कुछ यूं बयां की 'प्यार जताना अलग बात है, प्यासी सीपी जल तट बैठी, मेघ निहारे आस लगाए, स्वाति नक्षत्र की जल कणिका कोई, मुख में गिराए तो मैं जानूं।' हर कोई बस मंत्रमुग्ध था।
 
रेखा भाटिया ने अब बादलों को निचोड़ कर शब्द बनाने की कला के एक विद्यार्थी विपिन सेठी 'समंदर' को आमंत्रित किया।
 
उनकी पहली कविता- 'ले रहे है मज़ा जश्न ए जीत का उनके, हमारी तो आदत है हार जाने की' एवं दूसरी कविता 'कलम की कमर को अब आराम कहां, मेरी जान से कितने दर्द लिखवाए है मैंने' मानो जंगल की आग में कूद जाने पर भी शीतलता का अनुभव दे रही थी।
 
आराधना हमेशा हास्य व्यंग्य की दरकार रहती है और उसी आकांक्षा के साथ उन्हें मंच पर आमंत्रित किया गया। परंतु एक कवि की व्यापक सोच को आज उन्होंने परिभाषित करते हुए और सभी को अचरज में डालते हुए पूरी राम कथा को बहुत ही कम और सधे शब्दों में सभी के सामने प्रस्तुत किया। चाहे वह 'दशरथ की आंख का तारा वन-वन घूम रहा बेचारा' या फिर 'धोबी के कहने पर कर बैठे नादानी', अंत में उन्होंने 'राम राज्य फिर से आएगा ये है मन में ठानी' कह कर वातावरण को राममय कर दिया। 
 
रेखा भाटिया ने अगले कवि सौरभ सोनी की तुलना उड़ते बादल के टुकड़े से कर बड़े प्यार से उन्हें आमंत्रित किया। सौरभ ने अपने कुछ मुक्तक गायकी के माध्यम से मंच को समर्पित किए, 'भुलाना लाख चाहें हम, भूला कर सो नहीं सकते। बहा है इश्क़ धमनी में, ये सांसे छोड़ नहीं सकते। कहा बेदर्द ज़माने ने फ़ना करदे मुहब्बत को। दिलों दीवारें दुनिया में, निगाहें तकेंगी जन्नत में।' उन्हें सभी का प्यार और आशीर्वाद मिला। शार्लिट की ईशिता शर्मा ने जीवन के उतार-चढ़ाव में मां के सहारे को बड़े ही संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया। उनकी प्रस्तुति मेरी मां- 'क्यों कि मुझमें झलकती है मेरी मां, मेरी उंगलियों से सुन्दर लिखवाती है मेरी मां'। ऐसा लग रहा था मानों शब्दों की चमक इशिता जी के चेहरे पर दमक रही हो।
 
अब बरी आई जगदीश जी गुजराल की। हमेशा की तरह इस बार भी उन्होंने उनकी कविता से सभी को लोट-पोट हो जाने पर मजबूर कर दिया। 'अक्ल बांटने लगे विधाता, लम्बी लगी कतारी। सभी आदमी खड़े हुए थे, कहीं नहीं थी नारी।' कविता ने सभी श्रोतागणों को पुरुष और महिला के दलों में बांट दिया, हंसी के फुहारों के साथ।' बड़ी नादान है चाहत, मचल के आह भरती है। मिली राहें बिछे कांटें, मगर वो सैर करती है। ' से वातावरण को फिर से रसमयी बना दिया।
 
शार्लिट की अंजू जैन ने अपनी कविता के माध्यम से बहुत ही सार्थक संदेश देकर अपना हस्ताक्षर सुनिश्चित किया। 'यूं भागोगे तो थक ही जाओगे एक दिन, बिना ही जिए, चले जाओगे एक दिन, कि मंज़िल  तो मौत ही है तुम मानो या न मानो, आओ तुम्हें सफ़र को जीना सीखा दूं।'
 
मंच का संचालन करते हुए रेखा भाटिया ने प्रकृति के विभिन्न रूपों और दृश्यों के चित्रण करते हुए जिस सटीकता के साथ कवि गणों को मंच पर बुलाया, वह तो एक पुस्तक लिखने के बराबर है। अंत सभी मित्रों के आग्रह पर रेखा भाटिया ने अपनी कविता से अपनी संवेदना कुछ यूं व्यक्त कि ' पानी-पानी हो रही विभीषिका, विभीषिका अमानवता की, विभीषिका अविश्वास की, विभीषिका मानव जन्म से लेकर, कर्मों की असफलाता तक चढ़ आया है पानी, सीमां तोड़ अच्छाइयों की, विभीषिका कटपुतली बने मानव बुराइयों के'। 
     
सभी का मन तो कह रहा था कविताओं का दौर चलता रहे चाय की चुस्कियों और स्वादिष्ट अल्पाहार के साथ। परंतु अपने गंतव्य रॉली शहर सही समय पर पहुंचने का विचार काव्य गोष्ठी को समापन की ओर खींच कर ले आया।
 
रेखा जी और ममता जी ने सभी को धन्यवाद अर्पित किया। सभी ने अगली काव्य गोष्ठी में फिर से मिलने का वादा किया।    
 
आप शीत ऋतु के एक बहुत ठंडे शनिवार से इससे ज़्यादा और क्या उम्मीद कर सकते हैं! इसके साथ ही अगली गोष्ठी में जल्दी ही मिलने की आशा मन में लिए सबने विदा ली। हर माह इसी तरह काव्य गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं। उनमें साहित्यिक चर्चा होती है। कई दिग्गज लेखकों की रचनाओं को पढ़ा जाता है और उनके लेखन पर चर्चा होती है। 

- रेखा भाटिया

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