क्या है मार्स रोवर, कैसे खोजेगा मंगल पर जीवन
- वेबदुनिया डेस्क
मानव इतिहास की सबसे जबरदस्त मशीनों में एक मार्स रोवर लंबी यात्रा पूर्ण करते हुए आखिर मंगल की लाल धरा पर उतर ही गया। 6 पहियों और 1 टन वजन वाला मार्स रोवर अत्याधुनिक तकनीक से लेस है। यह पता लगाएगा कि कौन सी जगह जीवन के लिए उपयुक्त है।अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी 'नासा' ने मंगल ग्रह पर अब तक का अपना सबसे उत्कृष्ट रोबोटिक रोवर को भेजा है। वैसे इसे एटलस-5 रॉकेट की मदद से पहले ही छोड़ा जाना था, लेकिन रोबोट की न्यूक्लियर बैटरी में कुछ खामी की आशंका के चलते प्रक्षेपण टालना पड़ा। इंजीनियरों के मुताबिक बैटरी बदलने के बाद रोबोट में कोई तकनीकी कमी नहीं है। रोबोटिक रोवर क्यूरोसिटी को फ्लोरिडा के केप केनेवरल से एक एटलस रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया। क्यूरोसिटी का प्रक्षेपण देखने के लिए कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए थे। मार्स रोवर इन संभावनाओं को टटोलेगा कि मंगल में कौन-कौन सी जगहें जीवन के लिए उपयुक्त हैं।जानिए क्या है रोबोटिक रोवर :
क्या है रोबोटिक रोवर * अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी 'नासा' ने मार्स रोवर को क्यूरोसिटी (जिज्ञासा) उपनाम दिया है।* रोबोटिक रोवर यानी रोबोट के समान एक मशीन है, जो अंतरिक्ष में जाकर मंगल के चारों ओर घूमेगी।* ये एक बड़ी गाड़ी के आकार का घूमने वाला वाहन है। छ: चक्कों वाले इस मोबाइल लैबोरेटरी रोबोटिक रोवर का वजन करीब एक टन है।* क्यूरोसिटी को मार्स साइंस लैबोरेटरीड (एसएसएल) के नाम से भी जाना जाता है। क्यूरोसिटी 10 फुट लंबा एवं 9 फुट चौड़ा है और इसकी ऊंचाई 7 फुट है।* क्यूरोसिटी मंगल पर भेजे गए पूर्व के रोवर से 5 गुना भारी है और इसके पास चूर हो चुके चट्टान नमूनों की जांच करने की क्षमता है। क्यूरोसिटी का मुख्य काम ये पता करना है कि क्या कभी मंगल ग्रह पर जीवन मौजूद था। * यह मंगल ग्रह से मिट्टी के सैंपल इकट्ठा करेगा और कैमरे से इस ग्रह की सतह को स्कैन भी किया जाएगा। इसके द्वारा कुछ ऐसे चित्र लिए जाने की उम्मीद है, जो हमने पहले कभी भी नहीं देखे।कैसे करेगा मंगल के मौसम की जांच जानिए अगले पेज पर :
मंगल के मौसम की जांच * इस रोवर को मंगल के मौसम की भविष्यवाणियां करने का भी काम सौंपा गया है। इसमें एक विशेष सॉफ्टवेयर लगाया गया है, जो रोजाना के स्तर पर लाल ग्रह के तापमान, हवाओं की गति और आर्द्रता के स्तर को दर्ज करने का काम करेगा। यात्रा और खर्च * इस पूरे मिशन का कुल खर्च ढाई अरब डॉलर है। * मार्स रोवर नौ महीने की यात्रा करने के बाद मंगल ग्रह में पहुंचा है। 6 पहियों वाली यह रोबोटिक मशीन मंगल की सतह पर 57 करोड़ किलोमीटर की यात्रा करेगी।* नासा की ओर से जारी बयान में बताया गया कि भीमकाय क्यूरोसिटी रोवर मंगल पर सफलतापूर्वक पहुंच गया है। सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ और 5 अगस्त 2012 को क्यूरोसिटी मंगल की सतह पर उतर गया।तकनीकी रूप से रोवर * क्यूरोसिटी को कभी भी मौसम की वजह से ऊर्जा समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि इसे हमेशा 10.6 पाउंड वजन के परमाणु ईंधन (प्लूटोनियम) से ऊर्जा मिलती रहेगी।* क्यूरोसिटी में कुल मिलाकर 10 वैज्ञानिक उपकरण लगाए गए हैं। इस 6 पहियों वाले रोवर पर एक विशेष रोबोटिक बांह भी लगाई गई है, जो अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से लैस है। *इस पर लगी ड्रिल मशीन की मदद से यह मंगल की कठोर सतह के भी अंदर झांकने में सक्षम है। इसके अलावा इसे लेजर किरण से भी सुसज्जित किया गया है, जो वैज्ञानिक अध्ययन के लिए चट्टानों को गलाकर उनका अध्ययन करने का काम करेगी। खो गया रूसी अंतरिक्ष यान! * क्यूरोसिटी को ऐसे समय पर मंगल के लिए रवाना किया गया है, जब कुछ सप्ताह पहले ही मंगल के चंद्रमा फोबोस पर जाने वाला एक रूसी अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में ही कहीं खो गया है। जानिए मंगल को लेकर अमेरिका की अन्य खोज -
अमेरिका की खोजें * अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने 1976 में मंगल अभियान की शुरुआत की। 35 साल पहले नासा ने मंगल ग्रह में पहला अंतरिक्ष यान उतारा।* इसके बाद कई अभियान हुए लेकिन सुर्खियों में रहे जुड़वां रोवर। 2004 में स्पिरिट और ऑपर्च्यूनिटी रोबोट मंगल की सतह पर उतरे। बीते साल स्पिरिट की उम्र पूरी हो गई। ऑपर्च्यूनिटी अब भी अपना काम कर रहा है।* नासा क्यूरोसिटी को मिशन 2030 का आधा रास्ता मानता है। अमेरिका चाहता है कि 2030 में वह इंसान को मंगल की सतह पर उतार दे। सूर्य से सिर्फ 4 ग्रह दूर स्थित मंगल बेहद गर्म है।* क्यूरोसिटी पता लगाएगा कि वहां सूर्य के विकिरण का प्रभाव किस कदर है और इंसान को वहां किन तैयारियों के साथ जाना होगा।नासा के लिए जरूरी मिशन * क्यूरोसिटी की सफलता नासा के लिए बेहद अहम है। विश्वव्यापी मंदी के बीच बजट में कटौती या देरी और कभी तकनीकी खामियां, इन वजहों से अंतरिक्ष एजेंसी को हाल के सालों में आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा है।मंगल पर मानव की उत्सुकता * लाल ग्रह के नाम से प्रसिद्ध मंगल सदियों से मानव की उत्सुकता के केंद्र में रहा है। ज्योतिष में इसे धरती का पुत्र कहा गया है और मंगल के बारे में अधिक जानकारी नहीं होने से पुरातन मानव ने इसे अनिष्टकारी भी माना है। भारत के मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में इसका जन्म स्थल माना गया है। * सोवियत संघ ने मंगल पर 60 के दशक में पहली बार खोजी अभियान भेजे। इसके बाद तो रूस और अमेरिका में मंगल के बारे में अधिक से अधिक जानकारियां जुटाने के लिए एक होड़ शुरू हो गई।* हालांकि मंगल के बारे में अधिक जानकारी इकट्ठा करने में बाजी अमेरिका ने मार ली, लेकिन रूस भी अधिक पीछे नहीं है और उसने हाल में ही 'मार्स 500' नामक एक प्रयोग पूरा किया है जिसका लक्ष्य मंगल पर जाने वाली भविष्य की मानवयुक्त उड़ानों में अंतरिक्ष यात्रियों की मन: स्थिति का अध्ययन करना था।* वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओबिटर कर रहे हैं। यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है।* मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और अपॉर्च्युनिटी) और लैंडर फीनिक्स के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर है, जो या तो असफल हो गए या उनका अभियान पूरा हो गया है।अगले पेज पर पढ़िए मंगल ग्रह के रोचक तथ्य :
मंगल ग्रह : कुछ तथ्य * मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। प्रृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है जिस वजह से इसे 'लाल ग्रह' के नाम से भी जाना जाता है।* सौर मंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं- 'स्थलीय ग्रह' जिनमें जमीन होती है और 'गैसीय ग्रह' जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है।* इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र भी पृथ्वी के समान है।* हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊंचा पर्वत, ओलम्पस मोंस मंगल पर ही स्थित है।* मंगल के दो चन्द्रमा फोबोस और डिमोज हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्र ग्रह हैं, मंगल के गुरुत्व के कारण यहां फंस गए हैं। मंगल को पृथ्वी से नंगी आंखों से देखा जा सकता है।आगे पढ़िए इस अभियान में भारतीय वैज्ञानिक का योगदान -
भारतीय वैज्ञानिक का योगदान भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ. अमिताभ घोष ने नासा के मंगल अभियान के लिए एक नए ग्रह की सतह पर चलने और खोज करने वाले 'मार्स रोवर' को बनाया है।कौन हैं अमिताभ * प्लेनेटरी जियोलॉजिस्ट डॉ. अमिताभ घोष नासा के मंगल अभियान से जुड़े हुए हैं और मिशन के ग्रुप चेयरमैन हैं।* नासा के मंगल अभियान में शामिल टीम में अमिताभ घोष ही अकेले एशियाई वैज्ञानिक हैं। डॉ. घोष 1997 के मार्स पाथ फाइंडर मिशन में भी शामिल थे।* डॉ. घोष भारत के पहले ऐसे वैज्ञानिक हैं जिन्होंने मंगल की प्रसिद्ध चट्टानों में से एक बरनेकल बिल का विश्लेषण किया। उन्होंने पता लगाया कि मंगल ग्रह पर पाई जाने वाली चट्टानें मुख्यत: एनडेसाइट की बनी होती हैं, जो स्लेटी काले रंग की होती हैं और ये पानी संग्रहीन कर सकती हैं। डॉ. घोष को उनकी इस खोज के लिए नासा पाथफाइंडर अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया।* डॉ. घोष ने भारत में अपनी शोध प्रक्रियाओं के दौरान कई स्थानों का भ्रमण किया। इसके लिए उन्होंने कुछ रातें रेलवे स्टेशन पर सोकर भी बिताईं। उन्होंने आईआईटी-खड़गपुर से प्रायोगिक भू-विज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसके बाद डॉ. घोष ने नासा के प्रोफेसर को पत्र लिखकर नासा में काम करने की इच्छा व्यक्त की। डॉ. घोष के द्वारा भेजे गए इस पत्र में उन्होंने कुछ सुझाव दिए थे।बड़े सपनों ने बनाया बड़ा * डॉ. अमिताभ घोष जब 8 साल के थे तब वे अक्सर एक ख्वाब देखा करते थे कि वे एक ऐसी बस में सवार हैं, जो उन्हें पास के किसी स्पेस पोर्ट तक छोड़ दे, जहां से वे अपने पसंदीदा कार्टून किरदार टिनटिन की तरह अंतरिक्ष यान को चांद तक ले जाएं। उनका यह ख्वाब तो पूरा हो गया, बस चांद की जगह मंगल ग्रह उनकी मंजिल बन गया।