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Written By नृपेंद्र गुप्ता

गरीब कौन, अमीर कौन?

सरकारी नीतियों का शिकार होता आम आदमी

गरीबी
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- शहरों में 32 और गांव में 25 रुपए गरीबी पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा पेश करने के बाद से विवादों में आए योजना आयोग को लगता है कि किसी की नजर लग गई है। गरीबी की लक्ष्मण रेखा खींचते समय महंगाई पर उनका ध्यान ही नहीं गया और जब महंगाई के बारे में सोचा तो कह दिया कि 15 हजार रुपए कमाने वाले भी गरीब हैं। यह सुनकर तो गरीब तो गरीब मध्यमवर्गीय की भी आह निकल गई।

अब सवाल यह उठता है कि सरकार पहले सच बोल रही थी या अब। 'कांग्रेस का हाथ गरीबों के साथ' का नारा देने वाली देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को यह क्या हो गया है। उसके राज में बड़े-बड़े अर्थशास्त्री भी यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि गरीब कौन है।

अब तक तो यह माना जाता था कि सरकार की योजनाएं गरीबों तक नहीं पहुंच पा रही है, लेकिन जब सरकार यह ही तय नहीं कर पा रही है कि गरीब कौन है तो वह उनकी मदद कैसे करेगी।

कहने को तो मध्यमवर्गीय आदमी भी अपने आप को गरीब कहता है और अमीर भी। तभी तो कई अमीर नेताओं के नाम पर गरीबों को मिलने वाले पट्टे हैं। मनरेगा ने गरीबों से ज्यादा फायदा सरपंचों को पहुंचाया है। गरीबों की मदद कर रहे सरकारी अस्पतालों में पैसे न होने पर उनका इलाज रोक दिया जाता है और बीपीएल राशनकार्ड के नाम पर भी उनसे पैसा ले लिया जाता है।

सरकार ने दिहाड़ी मजदूरी के लिए 150 रुपए रोज तय कर रखे हैं। अगर एक मजदूर 30 दिन काम करता है तो वह 4500 रुपए कमाता है। क्या योजना आयोग ईमानदारी से पूरे माह काम करने वाले मजदूर को गरीब नहीं मानता है।

अगर ऐसा है तो यह सरकार के लिए चिंता की बात है। सरकार को यह पता होना चाहिए की एक गरीब आदमी को भी बिजली चाहिए, चूल्हा चाहिए, दाल और शक्कर चाहिए। शायद पांच सितारा दफ्तर में बैठे योजना आयोग के अधिकारियों को राशन दुकान देखे हुए भी अरसा बीत गया वरना वे गरीबों का इस तरह मजाक नहीं बनाते।

कल तक गरीबों की गर्दन मरोड़ने वाली सरकार को शायद अचानक याद आ गया कि देश में अमीर भी रहते हैं। अब देश के गृहमंत्री पी. चिदंबरम कह रहे हैं कि हमें कर राजस्व बढ़ाने की जरूरत है इसलिए अमीरों को ज्यादा कर देना होगा। सवाल यह भी उठता है ‍कि जब हम यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि गरीब कौन है तो यह कैसे तय कर पाएंगे की अमीर कौन है?

कितने आश्चर्य की बाद है सरकार दिन प्रतिदिन टैक्स बढ़ाकर अपनी आमदनी तो बढ़ाना चाहती है पर जरूरतमं‍दों पर उसे खर्च करने से परहेज है। सरकार क‍ी इस प्रकार की नीति से ही अमीर-गरीब की खाई बढ़ती जा रही है। रोजगार के अभाव मजदूर, पर्याप्त दाम न मिलने से किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। मजदूर तबका कम आय के चलते अपनी रोजमर्राह की जरूरत पूरी नहीं कर पा रहा है और इनमें से कुछ लोग चोरी, डकैती, आत्महत्या जैसे अपराधों की तरफ बढ़ रहे हैं।