गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. नवरात्रि
  4. Mata Shailputri ka jyoti avtar
Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024 (14:44 IST)

शारदीय नवरात्रि: मां शैलपुत्री को ज्योति के नाम से भी जाना जाता है, आखिर क्यों?

Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि की प्रथम देवी मां शैलीपुत्री का रहस्य जानिए

शारदीय नवरात्रि:  मां शैलपुत्री को ज्योति के नाम से भी जाना जाता है, आखिर क्यों? - Mata Shailputri ka jyoti avtar
Devi shailputri jyoti katha: 3 अक्टूबर 2024 गुरुवार के दिन से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो गई है। पहले दिन यानी प्रतिपदा को माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता शैलपुत्री को ज्योति भी कहा जाता है। उन्हें ज्योति करने के पीछे एक कारण और एक कथा प्रचलित है। आओ जानते हैं कि उन्हें ज्योति क्यों कहा जाता है और क्या है मां के ज्योति अवतार की कथा। 
 
क्यों कहते हैं माता शैलपुत्री को ज्योति: मां शैलपुत्री को 'ज्योति' के नाम से नहीं जाना जाता है क्योंकि नवरात्रि के पहले दिन अखंड ज्योति जलाई जाती है। घी और तेल दोनों की अखंड ज्योति जलाई जा सकती है। वरात्रि के प्रथम दिन जलाई गई अखंड ज्योति को पूरे नौ दिनों तक जलाए रखना होता है। मान्यता है कि अखंड ज्योति जलाने से घर में खुशहाली आती है और माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता का एक स्वरूप ज्योति भी है हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में ज्वालादेवी के रूप में विराजमान हैं। यह भी कहते हैं कि देवताओं के अहंकार के नाश के लिए देवी ने धारण किया ज्योति था अवतार। 
 
माता शैलपुत्री को क्या पसंद है?
माता शैली पुत्री को सफेद रंग पसंद है। उन्हें लाल रंग की चुनरी, नारियल, घी, खीर और मीठा पान भेंट किया जाता है। मां शैलपुत्री की पूजा करने से धन, सुख-वैभव, रोज़गार, और अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिलता है। मां शैलपुत्री की पूजा के बाद भोग लगाया जाता है और मां शैलपुत्री के मंत्रों का जाप किया जाता है।

माता शैलपुत्री के अन्य नाम : शैलपुत्री का अर्थ पर्वत राज हिमालय की पुत्री। शैल अर्थात पर्वत। माता पार्वती हिमालय की पुत्री हैं परंतु उनका यह रूप माता सती का स्वरूप है। यह माता का प्रथम अवतार था जो सती के रूप पूजा जाता है। माता सती राज दक्ष की पुत्री थीं।  शैलपुत्री शिव की अर्द्धांगिनी बनीं। अन्य नाम: सती, पार्वती, वृषारूढ़ा, हेमवती, दुर्गा और भवानी और ज्योति भी इन्हीं परमेश्वरी देवी के अन्य नाम हैं। पहाड़ों की बेटी मां शैलपुत्री को देवी वृषारूढ़ा इसलिए कहते हैं क्योंकि वे वृषभ यानी बैल पर सवार हैं। हेमवती इसलिए कहते हैं क्योंकि उनकी माता का नाम हेमा और मैनावती था। पर्वती इसलिए क्योंकि वे पर्वतों की रानी और पर्वतराज हिमवान की पुत्री हैं।

शारदीय नवरा‍त्रि में पढ़िये माता दुर्गा के ज्योति अवतार की रोचक कथा: 
देवी की पूजा में ज्योति जलाने का सम्बन्ध देवी के ज्योति-अवतार से है। एक बार देवासुर संग्राम में देवता विजयी हुए तो उनके मन में अहंकार हो गया। सभी देवता अपने मन में कहते थे कि यह विजय मेरे कारण हुई है, यदि मैं न होता तो विजय नहीं हो सकती थी।
 
मां जगदम्बा देवताओं के इस अहंकार को समझ गयीं। उनको पता था कि यह अहंकार देवताओं को देवता नहीं रहने देगा और वे भी असुरों के समान हो जाएंगे। इसके कारण संसार को अति कष्ट का सामना करना पड़ेगा। देवताओं के अहंकार के नाश के लिए देवी एक ऐसे तेज पुंज के रूप में उनके सामने प्रकट हो गयीं जो आज तक किसी देव ने नहीं देखा था।
 
उस तेज:पुंज को देखकर सभी देवता अचंभित रह गए और एक-दूसरे से पूछने लगे कि यह क्या है? देवताओं को आश्चर्यचकित करने वाली यह माया किसके द्वारा रची गयी है? भ्रमित और भयभीत हुए देवराज इन्द्र ने वायुदेव को उस तेज पुंज के बारे में पता लगाने के लिए भेजा। घमण्ड से भरे हुए वायुदेव ने उस तेज पुंज के पास गए। तेज पुंज ने पूछा- ‘तुम कौन हो?’
 
वायुदेव ने कहा- ‘मैं वायु हूं। मातरिश्वा हूं। सबका प्राणस्वरूप हूं। मैं ही सम्पूर्ण जगत का संचालन करता हूं।’
 
तेजपुंज ने वायुदेव के सामने एक तिनका रखकर कहा, यदि तुम सब कुछ संचालन कर सकते हो तो इस तिनके को उड़ा दो।
 
वायुदेव ने अपनी सारी शक्ति लगा दी पर तिनका टस-से-मस न हुआ। वे लज्जित होकर इन्द्रदेव के पास लौट आए और कहने लगे कि यह कोई अद्भुत शक्ति है, इसके सामने तो मैं एक तिनका भी न उड़ा सका।
 
देवराज इन्द्र ने फिर अग्निदेव को बुलाकर कहा' ‘अग्निदेव! चूंकि आप ही हम लोगों के मुख हैं इसलिए वहां जाकर यह मालूम कीजिए कि ये तेजपुंज कौन है?
 
इन्द्र के कहने पर अग्निदेव तेजपुंज के पास गए। तेजपुंज ने अग्निदेव से पूछा- ‘तुम कौन हो? तुममें कौन-सा पराक्रम है, मुझे बतलाओ?’
 
अग्निदेव ने कहा- ‘मैं जातवेदा अग्नि हूं। सारे संसार को दग्ध करने की क्षमता मुझमें है।’
 
तेजपुंज ने अग्निदेव से उस तिनके को जलाने के लिए कहा। अग्निदेव ने अपनी सारी शक्ति लगा दी पर वे उस तिनके को जला न सके और मुंह लटकाकर इन्द्रदेव के पास लौट आए।
 
तब सभी देवता बोले- ‘झूठा गर्व और अभिमान करने वाले हम लोग इस तेजपुंज को जानने में समर्थ नहीं है, यह तो कोई अलौकिक शक्ति ही प्रतीत हो रही है। इन्द्रदेव! आप हम सब के स्वामी हैं, अत: आप ही इस तेजपुंज के बारे में पता लगाइए।’
 
तब सहस्त्र नेत्रों वाले इन्द्र स्वयं उस तेजपुंज के पास पहुंचे। इन्द्र के पहुंचते ही वह तेजपुंज गायब हो गया। यह देखकर इन्द्र बहुत लज्जित हुए। तेज:पुंज के उनसे बात तक न करने के कारण वे अपने-आप को मन में छोटा समझने लगे। वे सोचने लगे कि अब मैं देवताओं को क्या मुंह दिखाऊंगा। मान ही महापुरुषों का धन है, जब मान ही न रहा तो इस शरीर का त्याग करना ही उचित है। इन्द्रदेव का सारा अहंकार नष्ट हो गया।
 
तभी गगनमण्डल में आकाशवाणी हुई कि ‘इंद्रदेव! तुम पराशक्ति का ध्यान करो और उन्हीं की शरण में जाओ।’ इन्द्रदेव पराशक्ति की शरण में आकर मायाबीज का जप करते हुए ध्यान करने लगे।