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Written By ND

नवरात्रि : आस्था-उल्लास का जगमगाता पर्व

navraatri | नवरात्रि : आस्था-उल्लास का जगमगाता पर्व
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'नवरात्रि' शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर महानवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप, उपवास का प्रतीक हैं। 'नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते'। नौ शक्तियों से युक्त नवरात्रि कहलाते हैं। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं-

उक्तं च - 'आश्विने वा ऽथवा माघे चैत्रें वा श्रावणेऽति वा।'
अर्थात आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि तथा चैत्र में वासंतिक नवरात्रि होते हैं। माघ व श्रावण के गुप्त नवरात्रि कहलाते हैं वहीं शारदीय नवरात्रि में देवी शक्ति की पूजा व बासंतिक नवरात्रि में विष्णु पूजा की प्रधानता रहती है...। मार्कण्डेय पुराण में शारदीय नवरात्रि का अत्यंत महत्व बतलाया गया है।

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नवरात्रि में घट स्थापना, पूजन व विसर्जन के लिए प्रातःकाल समय शुभ माना जाता है। देवी शक्ति पूजन के लिए प्रातः स्नान कर पवित्र स्थल पर मिट्टी की वेदी बनाकर उसमें धान्य बोए जाते हैं। फिर कलश स्थापना कर श्री गणेश, नवग्रह, लोकपाल, मातृका, वरुणदेव का पूजन किया जाता है। षष्ठी तक सभी पूजाएँ कलश पर होती हैं।

इसके बाद गणेशादि पूजन के पश्चात पुष्याह वाचन करके पूजन निमित्त संकल्प लिया जाता है। कलश पर चित्रमय दुर्गा की स्थापना करके फिर देवी का आह्वान, आसव, अर्घ्य, स्नान, वस्त्र गंध, अक्षत, पुष्प, धूप दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बूल, नीरांजन, पुष्पों आदि से नमस्कार विधि द्वारा कर पूजन पूर्ण होती है। प्रतिदिन नौ दिनों तक यम, नियम, संयम व श्रद्धा से मार्कण्डेय पुराण अंतर्गत दुर्गा सप्तशती का पाठ भक्तगण करते हैं।

'नमो दैव्ये महादैव्ये, शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै, नियता: प्रणताः स्मताम्‌'

अष्टमी व नवमीं को कन्याओं को चरण धोकर आदर सहित पूजन कर यत्रारुचि भोजन करवाया जाता है। नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है।

दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन- त्रिमूर्तिनी, चार- कल्याणी, पाँच-रोहिणी, छः- काली, सात वर्ष की कन्या चंडिका, आठ- शांभवी, नौ वर्ष की कन्या दुर्गा, दस वर्ष की शुभद्रा स्वरूपा मानी जाती हैं।

नवरात्रि में पूजन के नौ दिन विशेष महत्व के हैं। प्रतिपदा को देवी को आँवला, सुगंधित द्रव्य, द्वितीया को रेशम चोटी, तृतीया को सिंदूर-दर्पण, चतुर्थी को मधुपर्क, तिलक, काजल, पंचमी को चंदन पदार्थ, आभूषण, षष्ठी को माला, पुष्पादि अर्पित किया जाता है। सप्तमी को ग्रहमध्य पूजन, अष्टमी को उपवासपूर्वक पूजन, नवमीं को महापूजा व कुमारी पूजा का महत्व है।

दशमी को पूजन के बाद दशमांश हवन, तर्पण, भार्गव व ब्राह्मण भोजन कराकर व्रत पारण किया जाता है। हवन से पूर्व महानवमी को हनुभद् ध्वजारोहण भी किया जाता है, क्योंकि हनुमानजी की विजयपताका के अर्पण बिना श्रीराम का प्रस्थान संभव नहीं। दसवें दिन विसर्जन के बाद ही नवरात्रि महापर्व पूर्ण होता है। नवरात्रि पूजन सीमातीत फलदायक कहा गया है। देवी पूजन से यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों फलों को देने वाला महापर्व है।

नवरात्रि के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। देवी के भजनों के सुरों के संग गरबा नृत्य की धूम भक्तों में नव ऊर्जा, उत्साह व श्रद्धा जगाती है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्रि महापर्व भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बाँधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है।