बिहार के बेहाल बाल बंधुआ मजदूर
बिहार के करीब 850 बाल बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए राज्य सरकार ने अभी तक कुछ भी नहीं किया है।यह कहना है 'बिहार बचपन बचाओ' आंदोलन के पूर्व अध्यक्ष घूरन महतो का, जो पिछले 15 साल से राज्य में बाल मजदूरी के उन्मूलन में लगे हैं और उनकी सेवाओं को देखते हुए केन्द्रीय महिला बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी ने आज उन्हें सम्मानित किया। उन्हें सम्मान में एक लाख रुपए तथा एक प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। वे इन दिनों बाल मजदूरों के पुनर्वास कार्य में जुटे हैं। वे राज्य के पहले सामजिक कार्यकर्ता हैं जिन्हें यह सम्मान मिला है। महतो ने बताया कि बिहार में करीब दो लाख बच्चे बाल मजदूरी का काम करते हैं। इनमें वे बच्चे भी शामिल हैं, जो राज्य से बाहर होटलों, दुकानों और घरों में नौकर का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि अब तक करीब पाँच हजार बच्चों को मुक्त कराया गया, जिनमें करीब 1300 बंधुआ मजदूर हैं। इनमें से करीब 450 बच्चों का ही पुनर्वास कराया जा सका है1महतो के अनुसार शेष बंधुआ बाल मजदूरों को राज्य सरकार ने प्रमाणपत्र ही नहीं दिए। उन्होंने कहा कि अंचलाधिकारी बंधुआ बाल मजदूरों को प्रमाणपत्र जारी करने में दिलचस्पी नहीं दिखाते और दिक्कतें पैदा करते हैं जिसकी वजह से ये बंधुआ मजदूर पुनर्वास से वंचित हो जाते हैं। सहरसा जिले के महतो ने बताया कि राज्य में बाल मजदूरी की समस्या का मूल कारण गरीबी है। गरीबी की वजह से जो बच्चे स्कूलों में नहीं पढ़ पाते, वे मजदूरी कर अपने माता-पिता का हाथ बँटाते हैं।उन्होंने कहा कि जब तक बच्चों के माता-पिता को रोजगार या खेतीयोग्य जमीन नहीं दी जाएगी, तब तक वे मजदूरी करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि बाल बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए कानून है, लेकिन अन्य बाल मजदूरों के पुनर्वास के लिए कोई कानून नहीं है।बिहार में बंधुआ बाल मजदूरों को मुआवजा पेंशन और उनके माता-पिता को आवास या मकान के लिए जमीन देने की व्यवस्था है पर पूर्ण पुनर्वास के लिए यह पर्याप्त नहीं है।