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Last Modified: गुरुवार, 20 मई 2021 (18:37 IST)

POK के अलगाववादी कश्मीर में समस्या पैदा करने की फिराक में, अपने नेताओं की चुप्पी से हैं नाराज

POK के अलगाववादी कश्मीर में समस्या पैदा करने की फिराक में, अपने नेताओं की चुप्पी से हैं नाराज - POK separatists are trying to create problems in Kashmir
श्रीनगर। पाकिस्तान तथा उसके कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में अपने नेताओं की चुप्पी से नाराज अलगाववादी समूहों के धड़े जम्मू कश्मीर में समस्याएं पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और सीमापार से मीरवाइज फारूक तथा अब्दुल गनी लोन की पुण्यतिथि के अवसर पर बंद और हड़ताल का आह्वान कर रहे हैं। अधिकारियों ने गुरुवार को यह जानकारी दी। दोनों नेताओं की पुण्यतिथि शुक्रवार को पड़ेगी।

फारूक और लोन की प्रतिबंधित हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने कश्मीर घाटी में बढ़ती बंदूक संस्कृति का विरोध करने पर 1990 और 2002 में हत्या कर दी थी। दोनों को शांतिपूर्ण तरीकों से दीर्घकालिक समाधान का हिमायती माना जाता था।

केंद्रशासित प्रदेश के घटनाक्रम पर और सीमापार से आतंकवादियों तथा अलगाववादियों की गतिविधियों पर नजर रख रहे अधिकारियों ने कहा कि अवामी एक्शन कमेटी (एएसी) द्वारा लोगों से कोविड-19 महामारी के दौरान अपने घरों में मीरवाइज फारुक के लिए दुआएं करने को कहा गया है।

एएसी के प्रमुख उमर फारूक हैं जो मीरवाइज फारूक के बेटे हैं। हालांकि प्रदर्शन और हड़ताल नहीं करने के रवैए से नाराज होते हुए पीओके में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नरमपंथी धड़े ने बुधवार को बयान जारी कर पूरी तरह बंद और प्रदर्शन करने की अपील की।

जम्मू कश्मीर में अलगाववादी आयकर विभाग, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) तथा प्रवर्तन निदेशालय के सिलसिलेवार छापों के बाद से ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रहे। एजेंसियों ने उनके धन जुटाने के तरीकों पर भी सवाल खड़े किए हैं और दूसरे स्तर के अनेक नेताओं पर भारत-विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने के मामले दर्ज किए हैं।

मीरवाइज फारूक की 21 मई, 1990 को तीन आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। प्रतिबंधित हिज्बुल मुजाहिदीन के तत्कालीन तथाकथित कमांडर अब्दुल्ला बांगरू ने इसकी साजिश रची थी। साल 2002 में इसी दिन अब्दुल गनी लोन की एक ईदगाह में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वह फारूक मीरवाइज को श्रद्धांजलि देने जा रहे थे।

अधिकारियों के मुताबिक दोनों नेताओं की हत्या में यह बात सामने आई थी कि दोनों चाहते थे कि पाकिस्तान घाटी में आतंकवादी संगठनों की मदद करना बंद कर दे। अधिकारियों ने जांच के हवाले से कहा कि लोन ने साल 2000 के आखिर में एक बैठक में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को साफ कहा था कि इस्लामाबाद को कश्मीर में आतंकी संगठनों को हथियार देना बंद कर देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि लोन ने अपनी हत्या से पहले दुबई में पाकिस्तान सरकार तथा आईएसआई को संकेत दिया था कि वह 2002 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाग लेंगे। हालांकि जब तक वह इस बाबत घोषणा करते आतंकवादियों ने उन्हें मार दिया।

अधिकारियों के अनुसार लोन के पाकिस्तान सरकार तथा आईएसआई के साथ मतभेद ही इस्लामाबाद की कश्मीर नीति में बड़ी अड़चन थे और जम्मू कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए उनका नरम रुख उनकी हत्या की वजह बना। उन्होंने कहा कि इस हत्याकांड को अन्य कश्मीरी नेताओं के लिए चेतावनी के तौर पर देखा गया कि वे चुनावी प्रक्रिया कराने के किसी विचार को नहीं मानें।

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के पूर्व अध्यक्ष अब्दुल गनी भट ने एक मीडिया साक्षात्कार में कहा था, लोन साहब, मीरवाइज फारूक को सेना या पुलिस ने नहीं मारा था। उन्हें हमारे अपने लोगों ने निशाना बनाया। भट के भाई की भी आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।(भाषा)
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