1992 से 2020: अयोध्या में कारसेवक से लेकर राम मंदिर के भूमि पूजन तक ‘नरेंद्र मोदी’
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ से लेकर लद्दाख तक की यात्राएं कीं। सबसे ज्यादा विदेश यात्राएं करने वाले प्रधानमंत्रियों में उनका नाम शुमार है। एक बार वे अचानक नवाज शरीफ से मिलने पाकिस्तान चले गए, इस घटना ने पूरी दुनिया को चौंका दिया था।
लेकिन वो अयोध्या जो भाजपा की राजनीति और धार्मिक मुद्दों का केंद्र रही है, वहां नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद कभी नहीं गए। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्य नाथ कई बार अयोध्या गए, लेकिन नरेंद्र मोदी नहीं।
यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी अयोध्या से सटे फैजाबाद तक में चुनावी रैली कर आए, लेकिन उनके वाहन का स्टेयरिंग कभी अयोध्या की तरफ नहीं मुड़ा।
आखिर ऐसा क्यों? हर अयोध्यावासी और उत्तर प्रदेशवासी के साथ ही हर देशवासी की जुबान और मन में यह सवाल हमेशा बना रहा।
साल 1992 की सिर्फ एक ही तस्वीर है, जिसमें हजारों कारसेवकों की भीड़ में भाजपा के एक कार्यकर्ता के रूप में नरेंद्र मोदी भगवा गमछा और काला चश्मा पहने एक आम आदमी की तरह नजर आ रहे हैं। यह 29 साल पहले की बात है, अब दूसरी बार 2020 में मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर अयोध्या पहुंचे हैं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले तक भारत के सबसे विवादित स्थल रहे रामजन्म भूमि पर भगवान राम के मंदिर के भूमि पूजन के लिए।
मीडिया ने जब भी मोदी के बारे में उनके कार्यकर्ताओं और नेताओं से जानना चाहा तो किसी के पास इसका कोई वाजिब कारण या जवाब नहीं था।
किसी और के पास इसका जवाब हो भी नहीं सकता। जब तक इसका कोई जवाब खुद प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से नहीं आ जाता, तब तक यह सिर्फ एक अनुमान ही रहेगा। इन अनुमानों में कई तरह के अनुमान शामिल किए जा सकते हैं। जो सबसे स्पष्ट अनुमान लोगों के मन में है वो है उनका संकल्प। शायद मोदी का संकल्प था कि जब तक मंदिर निर्माण की राह साफ नहीं हो जाती तब तक वे अयोध्या में कदम नहीं रखेंगे। या फिर शायद उनकी टाइमिंग।
दिलचस्प बात है कि अयोध्या के आसपास की गई चुनावी रैलियों में भी उन्होंने कभी अयोध्या का जिक्र नहीं किया था। साल 2014 के चुनाव में तो उन्होंने भाजपा और देश के सबसे गर्म मुद्दे अयोध्या को यह कहते हुए एक तरह से हाशिए पर ही ला दिया था कि देश में पहले शौचालय इसके बाद देवालय होना बनना चाहिए।
ऐसे में उनके अयोध्या नहीं जाने पर एक सवाल यह भी उठता है कि क्या मोदी एक विजेता के तौर पर वहां जाना चाहते थे?
अनुमान चाहे जो भी हो, अगर यह उनका संकल्प था तो यह कहना चाहिए कि कोई संकल्प सीखे तो नरेंद्र मोदी से सीखे, अगर कोई टाइमिंग सीखे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीखे।