क्यों ‘कू’ पर शिफ्ट हो रहे यूजर्स, क्या यह ट्विटर का देशी वर्जन है?
पिछले कुछ दिनों से कू ऐप की बहुत चर्चा है। सरकार और ट्विटर के बीच चल रहे गतिरोध के बीच कू की एंट्री ने रोमांच को और ज्यादा बढा दिया है। केंद्रीय रेलमंत्री पीयूष गोयल, कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद, कर्नाटक के सीएम बीएस येदियुरप्पा और मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान समेत कई बड़े लोग कू ऐप पर अपना अकाउंट बना चुके हैं।
सोशल मीडिया पर भी इस ऐप की खूब चर्चा है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो गया है कि आखिर 'कू' क्या है? ऐसा क्या है कि हर कोई इसकी बात कर रहा है।
दरअसल, 'कू' एप ट्विटर की तरह ही एक माइक्रोब्लॉगिंग साइट है। इसे ट्विटर का देसी वर्ज़न कहा जा रहा है। यह मार्च 2020 में लॉन्च हुआ था। फिलहाल हिंदी, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ भाषा में उपलब्ध है। इसे बनाने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि भारत में सिर्फ़ 10 प्रतिशत लोग अंग्रेज़ी बोलते हैं। ऐसे में 'कू' दूसरी हमारी अपनी भाषाओं ट्विटर वाला मजा देगा।
आपको शायद याद होगा कि भारत सरकार साल 2020 में आत्मनिर्भर ऐप इनोवेशन चैलेंज में 'कू' ऐप का जिक्र कर चुकी है।
'मन की बात' में पीएम मोदी ने कहा था, कू ऐप एक माइक्रोब्लॉगिंग प्लैटफॉर्म है, इसमें हम अपनी भाषाओं में टेक्स्ट वीडियो और ऑडियो की मदद से कम्युनिकेट कर सकेंगे।
हालांकि अब इसे विवाद से जोड़कर भी देखा जा रहा है। इस वक्त ट्विटर और सरकार आमने-सामने हैं,क्योंकि केंद्र सरकार ने पाकिस्तान और खालिस्तान समर्थकों से संबंधित करीब 1178 ट्विटर अकाउंट बंद करने का आदेश दिया है, जो किसानों आंदोलन को लेकर ग़लत और उत्तेजक सामग्री फैला रहे हैं।
कू ऐप बेंगलुरू की बॉम्बीनेट टेक्नॉलॉज़ीस प्राईवेट लिमिटेड ने बनाया है। इसे बेंगलुरु के रहने वाले एंटरप्रेन्योर ए. राधाकृष्णनन और मयंक बिडवाटका ने मिलकर बनाया है। राधाकृष्णनन वहीं हैं, जिन्होंने ऑनलाइन कैब सर्विस टेक्सी फॉर श्योर की शुरुआत की थी और बाद में उसे ओला को बेच दिया। कू से पहले बॉम्बिनेट टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड विकल्प वोकल बना चुकी है।