पत्रकारों की मौत, वहां सरकार चली गई, यहां हलचल भी नहीं...
भारत और स्लोवाकिया में क्या अंतर है? बड़ा अंतर तो यह है कि भारत की आबादी स्लोवाकिया से हजार गुना से भी ज्यादा है। क्षेत्रफल में भी भारत कई गुना बड़ा है। एक सबसे बड़ा अंतर चौंकाने वाला है। स्लोवाकिया में एक पत्रकार की हत्या होने पर पूरी सरकार चली गई, जबकि भारत में पत्रकारों की मौत पर हलचल भी नहीं सुनाई पड़ती।
ध्यान देने वाली बात यह है कि स्लोवाकिया में हाल ही में एक पत्रकार और उसकी मंगेतर की हत्या कर दी गई। इस घटना के बाद स्लोवाकिया में हजारों लोगों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया और सरकार से इस्तीफे की मांग की थी। जेनकुसिका नामक इस रिपोर्टर ने प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको से जुड़े भ्रष्टाचार को भी उजागर किया था। अन्तत: जनता के विरोध के आगे फिको सरकार को इस्तीफा देना पड़ा।
भारत में भी हाल ही में तीन पत्रकारों की संदिग्ध रूप से मौत हुई है। इनमें दो बिहार के हैं, जबकि एक मध्यप्रदेश से है। इन दोनों ही मामलों में पत्रकारों की मौत सड़क दुर्घटना में हुई। हालांकि माना तो यह जा रहा है कि ये दोनों ही मौतें हादसा न होकर योजनाबद्ध तरीके से की गई हत्या हैं। यूं तो पिछले पांच साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो लगभग 25 पत्रकारों की संदिग्ध स्थिति में मौत हो चुकी है।
मध्यप्रदेश में मारे गए पत्रकार संदीप शर्मा की कहानी तो स्लोवाकिया के पत्रकार से मिलती-जुलती ही है। भिंड जिले के संदीप ने पुलिस और रेत माफिया के गठजोड़ को उजागर किया था। इतना ही नहीं संदीप ने पुलिस को अधीक्षक भिंड को लिखी एक शिकायत में इस कथित गठजोड़ से अपनी जान को खतरा भी बताया था। शिकायत के बाद उन्हें सुरक्षा तो नहीं मिली, लेकिन एक हादसे (?) में उनकी मौत हो गई।
भारत में पत्रकारों की मौतों के खिलाफ कुछ मीडिया संगठनों ने जरूर आवाज उठाई, लेकिन जनता इस पूरे मामले में दुर्भाग्यपूर्ण चुप्पी साधे रही। जिस तरह स्लोवाकिया की जनता ने सरकार के खिलाफ पूरे देश में आवाज बुलंद की, यदि इसी तरह की आवाज भारत में भी सुनाई देती तो इससे न सिर्फ सरकार पर दबाव पड़ता, बल्कि पत्रकारों का मनोबल भी बढ़ता और वे पूरी ताकत से जनहित और भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठा पाते। लेकिन सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि एक देश में पत्रकार की मौत पर पूरी सरकार गिर जाती है, जबकि भारत में पत्रकारों की मौत पर हलचल भी नहीं होती।