एशिया का मैनचेस्टर जर्जर स्थिति में
देश को औद्योगिक विकास का पाठ पढ़ाने वाला उत्तरप्रदेश का कानपुर शहर आज विकास के मामले में हाशिए पर खड़ा है।एशिया के मैनचेस्टर के तौर पर पहचान रखने वाला कानपुर उद्योग धंधों की बदहाली और बुनियादी सुविधाओं के अभाव की वजह से विकास के मामले में पिछड़ता जा रहा है।अब इसे सरकारी उदासीनता कहें अथवा नेताओं की बेरुखी, लेकिन मिलों और कारखानों का यह शहर विकास के मामले आज हाशिए पर खड़ा है। शहर के कई इलाकों के बीच बिछी जर्जर रेल लाइनें यहाँ की औद्योगिक विकास के इतिहास को बयाँ करती हैं।सैकड़ों एकड़ क्षेत्रफल में फैली कई बंद मिलों के परिसर आज पुलिस और जिला प्रशासन के कार्यालय और आवास में तब्दील हो चुके हैं।गंगा के तट पर बसे इस शहर में औद्योगिक विकास की धारा तो वर्ष 1801 में बह निकली थी जब देश में अपने पैर पसार रही ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस नगर को नदी मार्ग के जरिये कलकत्ता (अब कोलकाता) से जोड़ दिया था।वर्ष 1859 में रेलवे के कदम पड़ते ही इस शहर का कायाकल्प तेजी से होने लगा। रेल और जल मार्ग से कलकत्ता से जुड़ने के चलते यह शहर उत्तर भारत के मुख्य उद्योग व्यापार केंद्र के रूप में स्थापित हो गया।