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Whatsapp new policy: सावधान! क्या Whatsapp बनेगा बेईमान?

Whatsapp new policy: सावधान! क्या Whatsapp बनेगा बेईमान? - whatsapp policy
इण्टरनेट, संचार क्रान्ति में वरदान तो जरूर साबित हुआ और देखते ही देखते पूरी मानव सभ्यता की अहम जरूरत बन भी गया।

हकीकत भी यही है कि ‘दुनिया मेरी मुट्ठी में’ का असल सपना Internet ने ही पूरा किया। लेकिन अब बड़ा सच यह भी है कि इस सेवा का जरिया बने यूजर्स से ही कमाई कर रहे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स न केवल चोरी-छिपे न केवल सायबर डाकैती करते हैं बल्कि यूजर्स डेटा को ही अपने पास स्टोर करने की कोशिशें करते रहते हैं।

यह न केवल निजता का उलंघन है बल्कि भविष्य में हर किसी की हैसियत को नापने का जरिया भी। दरअसल अभी आम लोगों को इस बारे में वाकई में ज्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन यदि इस पर रोक नहीं लगी और कानून नहीं बना तो आपके एक-एक हिसाब किताब यहां तक लेन-देन तक की सारी जानकारियाँ विदेशों में बैठे ऐसे सोशल मीडिया प्रोवाइडर के पास होगी जो अन एडिटेड ऐसे सोशल मीडिया में सारा कंटेंट जस का तस परोस देते हैं। वहीं वैध इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिन्ट, जिम्मेदार संपादक से लेकर कंटेंट एडि‍टर, कॉपी एडि‍टर की लंबी चौड़ी और लगातार काम करने वाली टीम होती है। इसके द्वारा एक-एक शब्द को परखा और समझा जाता है तब जाकर सामग्री प्रकाशित या प्रसारित की जाती है।

हाल ही में Whatsapp के द्वारा निजी डेटा के नाम पर जो इजाजत का प्रपंच रचा जा रहा है, वह देखने में तो महज चंद शब्दों का साधारण सा नोटिफिकेशन दिखता है। लेकिन उसकी असल गहराई किसी साजिश से कम नहीं है। इससे सात समंदर पार दूर विदेश में बैठा वह सर्विस प्रोवाइडर जिसे यहां न उपयोगकर्ता जानता है न देखा है उसे आपकी हर एक गतिविधि यहां तक कि मूवमेण्ट की भी जानकारी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर Active होते ही हो जाएगी जो रिकॉर्ड होती रहेगी।

मसलन आपने मॉल में कितने की खरीददारी की, आपकी मूवमेण्ट कहां-कहां थी, चूंकि भारत में Whatsapp पेमेंट सेवा भी शुरू है तो लेन-देन तक यानी सारा कुछ जो आपके परिवारवालों को भी नहीं पता होता है, उस सोशल मीडिया सर्वर के जरिए वहां इकट्ठा होता रहेगी। झूठ और सच की महापाठशाला यानी Whatsapp यूनिवर्सिटी भविष्य में उसी का काल बनेगी जो अभी मस्ती या सही, गलत सूचना के लिए इसका उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। सच तो यह है कि इण्टरनेट ही तो वो दुनिया है जहां असल साम्यवाद है। सब बराबर हैं। किसी का रुतबा और पैसा यहां नहीं चलता। इसके लिए सारे यूजर समान हैं। किसी से भेदभाव भी नहीं है। सबको समान रूप से पल प्रतिपल इण्टरनेट ही तो अपडेट रखता है। लेकिन उसी Internet की आड़ में निजी डेटा खंगालने का विदेशी खेल ठीक नहीं।

अब Whatsapp भारत सहित यूरोप से बाहर रहने वालों में लोकप्रिय इस इंस्टैंट मैसेजिंग ऐप के उपयोग के लिए अपनी निजी पॉलिसी और शर्तों में बदलाव करने जा रहा है। 8 फरवरी के बाद Whatsapp इस्तेमाल तभी कर पाएंगे जब इन्हें स्वीकारेंगे वरना account डिलीट हो जाएगा। यानी Whatsapp द्वारा दादागीरी पूर्वक जबरन इजाजत ली जा रही है। अब तक यह देखा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स इस तरह के अड़ियल रवैया नहीं अपनाते हैं और स्वीकार या अस्वीकार का ऑप्शन देते हैं।

दरअसल फेसबुक ने 2014 में वाट्स ऐप को खरीदते ही कई बार पॉलिसी में बदलाव किए हैं। सितंबर 2016 से अपने उपयोगकर्ताओं का डेटा फेसबुक से शेयर भी कर रहा है। वाट्स ऐप की हालिया नई प्राइवेसी पॉलिसी और शर्तों की बारीकियों पर नजर डालें तो दिखता है कि यह हमारे आईटी कानूनों के अनुरूप कहीं से भी वाजिब नहीं है। लेकिन यहां गौर करना होगा कि whatsapp भी अलग-अलग देशों में वहां के कानूनों के अनुरूप अपनी निजता की पॉलिसी बनाता है। मसलन जिन देशों में प्राइवेसी और निजता से जुड़े बेहद कड़े क़ानून मौजूद हैं वहां उनका पालन इनकी मजबूरी होती है। जैसे यूरोपीय क्षेत्र, ब्राज़ील और अमेरिका, तीनों के लिए अलग-अलग नीतियां हैं। यूरोपीय संघ यानी यूरोपियन यूनियन और यूरोपीय क्षेत्रों के तहत आने वाले देशों के लिए अलग तो ब्राज़ील के लिए अलग।

वहीं अमेरिका के उपयोगकर्ताओं के लिए वहां के स्थानीय स्थानीय कानूनों के तहत अलग-अलग प्राइवेसी पॉलिसियां व शर्ते हैं। शायद इसीलिए तमाम विकसित देशों की इस पर गंभीरता दिखती है क्योंकि वो अपने नागरिकों की निजता को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं। यही कारण है कि देश के कानूनों से इतर ऐसे ऐप्स को वहां के प्ले स्टोर्स में जगह तक नहीं मिलती। हालांकि हमारे देश में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल लंबित है परन्तु उससे पहले ही whatsapp का यह फरमान निश्चित रूप से परेशानी में तो डाल ही रहा है। इसकी वजह यह है कि बिल के पास होने तक वाट्स ऐप लोगों के निजी डेटा को न केवल इकट्ठा कर चुका होगा बल्कि जहां फायदा होगा वहां तक भी पहुंचा चुका होगा. ऐसे में इस बिल की प्रासंगिकता से कुछ खास हासिल होगा, लगता नहीं है. भारतीयों के डेटा का बाहर कैसा उपयोग होगा इसको लेकर भी अनिश्चितता का माहौल है. साफ है कि इस बारे में कोई कानून नहीं है और जरूरत है सबसे पहले प्राइवेसी और निजी डेटा प्रोटेरक्शन की!

दरअसल हमारे देश में अभी भी अंग्रेजों के बनाए कानूनों की भरमार है.  वक्त के साथ इन्हीं में बदलाव कर काम चलाने की हमारी आदत गई नहीं है. जबकि इक्कीसवीं सदी, तकनीकी और संचार क्रान्ति का जमाना है. सारा कुछ मुट्ठी में और एक क्लिक में होने के दावे का नया दौर. ऐसे में कोई पलक झपकते ही हमारी निजता को ही कब्जा ले, यह कहाँ की बात हुई? निजता चाहे वह डेटा में हो या अन्य तरीकों में, सुरक्षा बेहद जरूरी है. गौर करना होगा कि हमारे सुप्रीम कोर्ट ने भी 2017 में पुट्टुस्वामी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के प्रकरण में ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा था निजता का अधिकार हर भारतीय का मौलिक अधिकार है. तभी अदालत ने इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 यानी जीवन के अधिकार से जोड़ा था. सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला दिया और 1954 तथा 1962  में दिए गए फैसलों को पलटते हुए यह फैसला दिया था क्योंकि पुराने दोनों फैसलों में निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था.

Whatsapp की नीयत पर शक होना लाजिमी है. 2016 में अमेरिकी चुनावों के वक्त फेसबुक का कैंब्रिज एनालिटिका स्कैंडल लोग भूले नहीं हैं. जबकि 2019 में इसराइली कंपनी पेगासस ने इसी वॉटसऐप के ज़रिए हजारों भारतीयों की जासूसी की थी. इधर भारत में भी फ़ेसबुक की भूमिका पर जब-तब सवाल उठते रहे हैं. ऐसे में फेसबुक की मिल्कियत Whatsapp द्वारा खुले आम फेसबुक और इससे जुड़ी कंपनियों से उपयोगकर्ताओं का डेटा साझा करने की बात समझनी होगी. हालांकि सफाई में वाट्स ऐप का कहना है कि नई प्राइवेसी पॉलिसी से इस पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा कि आप अपने परिवार या दोस्तों से कैसे बात करते हैं. लेकिन यह भी तो सच है कि जानकारी, संपर्क, हंसी-ठिठोली और मनमाफिक असली-नकली सूचनाओं को बिना रुकावट भेजने का प्लेटफॉर्म बना वाट्स ऐप का इस्तेमाल बहुत सारी व्यापारिक गतिविधियों के बढ़ावे के लिए भी हो रहा है. इसमें कई संवेदनशील जानकारियाँ भी होती होंगी. स्वाभाविक है कि यह देश की सीमाओं के बाहर न जाएँ.

साफ लग रहा है कि हमारे यहाँ प्राइवेसी से सम्बन्धित क़ानूनों की कमीं है, यही वजह है कि whatsapp और ऐसे ही प्लेटफॉर्म्स के लिए भारत जैसा विशाल देश आसान निशाना होते हैं. शायद हो भी यही रहा है. वॉट्सऐप के ताज़ा नोटिफिकेशन से जहाँ विशेषज्ञों की चिंताएँ तो बढ़ी ही होंगी वहीं सरकार भी जरूर चिन्तित होगी. इस सबके बावजूद इतनी बारीकियों से बेखबर एक औसत भारतीय को भी सजग होना होगा ताकि वह ऐसे झाँसे में आने से बचे. इसके लिए बिना समय गंवाएं तत्काल मिल जुलकर कोई कदम उठाया जाए जो हमेशा के लिए ऐसे विवादों को ही समाप्त कर दे ताकि भारत में सायबर दायरों की आड़ में पैठ बनाते विदेशी प्लेटफॉर्म अपनी हदों में ही रहे. हाँ, यहाँ हमारे दुश्मन ही सही चीन से नसीहत लेनी होगी जिसने शायद इसी वजह से ही विदेशी प्लेटफॉर्म्स को देश में घुसने ही नहीं दिया सारा कुछ खुद का बनाया इस्तेमाल करता है. यकीनन चिंताएं सबकी बढ़ी हैं और एक यूज़र के तौर पर हमको, आपको सबको इससे चिंतित होना चाहिए....