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अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक शक्ति बनकर उभरता भारत

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक शक्ति बनकर उभरता भारत - United Nations international forum indian candidate
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की बढ़ती साख और सम्मान का अहसास हमें तभी होता है जब संयुक्त राष्ट्र संघ में विभिन्न पदों पर होने वाले चुनावों में भारतीय उम्मीदवारों को भारी समर्थन मिलता है। इस संदर्भ में सन् 2017 भारत के लिए बहुत ही उम्दा रहा जब उसके कई भारतीय उम्मीदवारों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न निकायों में महत्वपूर्ण पदों को जीतकर भारत के लिए यश अर्जित किया।


इस वर्ष अप्रैल में भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित दो सहायक निकायों के चुनाव जीते। महत्वपूर्ण बात यह रही कि भारत ने एशियाई समूह में सबसे अधिक वोट प्राप्त किए। इस निकाय के 50 सदस्यों में से 49 सदस्यों ने भारत के पक्ष में मतदान किया और भारत तालिका में सबसे ऊपर रहा।

जनवरी 2018 से शुरू होने वाले तीन साल के लिए चुने गए 13 सदस्यों ईरान, जापान, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका और ब्राजील जैसे देश शामिल हैं। इसी माह अप्रैल में, अगले साल जनवरी से शुरू होने वाली चार साल की अवधि के लिए अंतरराष्ट्रीय मादक द्रव्य नियंत्रण बोर्ड में भारत को 19 अन्य राष्ट्रों के साथ चुना गया जिसमें रूस, इराक, कोलंबिया और क्यूबा जैसे देश शामिल हैं।

इस वर्ष जून में भारत तीन वर्षों के लिए आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंग में पुनः निर्वाचित हुआ है। जैसा हमने ऊपर देखा, भारत इसके सहायक दो निकायों के चुनाव अप्रैल में जीत चुका था। भारत इस विभाग के चुनाव जीतने वाले 18 देशों में था।

भारत ने 183 वोट प्राप्त किए, जो एशिया प्रशांत श्रेणी में जापान के बाद दूसरा सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाला देश था। यद्यपि वर्तमान में भी यह सीट भारत के पास थी किंतु इस वर्ष उसका कार्यकाल समाप्त हो रहा था। दूसरी ओर पाकिस्तान के पास भी यह सीट थी और उसने भी पुनर्निर्वाचन के लिए अपना उम्मीदवार उतारा था, किंतु उसे मात्र एक वोट मिला और उसे अपना स्थान खाली करना पड़ा।

इस निर्वाचन के मात्र एक दिन पहले ही भारत की अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषज्ञ नीरू चड्ढा ने अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के लिए सागर कानून (आईटीएलओएस) के लिए एक महत्वपूर्ण चुनाव जीता था। इस तरह ट्रिब्यूनल के न्यायाधीश के रूप में चुने जाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।

ध्यान देने वाली बात यह है कि यहां चड्ढा को 120 मत मिले, जो एशिया प्रशांत समूह में सबसे ज्यादा थे और प्रमुख बात यह रही कि वे मतदान के प्रथम राउंड में ही जीत गईं। नवम्बर में न्यायाधीश दलवीर भंडारी का पुनर्निर्वाचन भारत की एक बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत रही। कूटनीतिक विजय इसलिए कि भारतीय उम्मीदवार के सामने यूके (इंग्लैंड ) का उम्मीदवार था।

ऐसा सत्तर वर्षों में पहली बार होगा कि संयुक्त राष्ट्रसंघ के विश्व न्यायिक निकाय (ICJ) में यूके का कोई सदस्य नहीं रहेगा। और यह भी पहली बार है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा समिति के पांच स्थायी सदस्यों में से एक को चुनावी दौड़ में सभा के एक साधारण सदस्य से हार मिली, किंतु यह सब इतना आसान नहीं था। इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल थी और भारतीय उम्मीदवार के सामने चुनौती भी बड़ी थी।

न्यायाधीश के उम्मीदवार के रूप में विजयी होने के लिए उम्मीदवार को संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली और सुरक्षा परिषद दोनों में बहुमत की आवश्यकता थी। मतदान के 11 राउंड समाप्त हो चुके थे और उसमें भारतीय उम्मीदवार ने जनरल असेंबली में तो बहुमत बनाए रखा था, किंतु सुरक्षा परिषद् में उसके पास बहुमत नहीं था। जैसा हम जानते हैं कि सुरक्षा परिषद् में पांच स्थायी और दस अस्थायी सदस्य होते हैं।

अस्थायी सदस्य दो वर्षों के लिए चुने जाते हैं। स्थायी सदस्यों के बीच आपसी रिश्तों में कितनी ही कड़ुवाहट क्यों नो हो, जब एक-दूसरे के उम्मीदवार के लिए समर्थन की बात आती है तो वे एक हो जाते हैं ताकि अन्य कोई सदस्य उनके गुट में प्रवेश न पा सके। इसलिए भारत और जापान जैसे देशों की लाख कोशिशों के बावजूद सुरक्षा परिषद् अपनी संख्या नहीं बढ़ाना चाहता क्योंकि उससे इन पांच देशों को मिले विशेषाधिकार क्षीण होते हैं।

इस पंद्रह सदस्यीय सुरक्षा परिषद् में इंग्लैंड के उम्मीदवार को नौ सदस्यों का समर्थन प्राप्त था। उधर जनरल असेंबली में भारत को 193 मतों में से एक 183 मत प्राप्त थे अतः यहां गतिरोध हो गया था। यही कारण था कि इंग्लैंड चुनाव प्रक्रिया में अड़ंगा डालकर मतदान स्थगित करवाना चाहता था।

कई कानूनी दांव-पेंचों के मूल्यांकन करने के बाद उसे लगा कि यदि गुप्त मतदान हुआ तो शायद उसे हार ही मिलेगी, ऐसे में अपनी गरिमा बचाए रखने के लिए यूके ने 12वें राउंड में दौड़ से बाहर निकलने की घोषणा करते हुए ने अपने उम्मीदवार क्रिस्टोफर ग्रीनवुड का नाम वापस ले लिया। फलतः भारत के उम्मीदवार दलवीर भंडारी विजयी हुए और उल्लेखनीय है कि इस विजय में भारत की प्रतिष्ठित विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की प्रभावपूर्ण भूमिका रही।

उपरोक्त जीतों और विशेषकर जीत की मार्जिन को देखकर हम तो यही कहेंगे कि भारत विश्व मंच पर अब तेजी से अपना स्थान बना रहा है। कुछ वर्षों पहले तक जिसकी इंग्लैंड के सामने खड़े होने की हिम्मत न हो आज उसने इंग्लैंड को अपनी पराजय स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया।

यह भारत का आत्मविश्वास ही था कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ में पदस्थ पाकिस्तानी राजदूत मलीहा लोधी ने सितम्बर में कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाने की धमकी दी तो भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने जवाब में आगाह करते हुए कहा कि जरूर कीजिए किंतु ध्यान रखिए कि पिछले वर्ष भी तुमने यह कोशिश की थी किंतु किसी एक देश से भी तुम्हें समर्थन नहीं मिला था। यही है नया भारत पूरे आत्मविश्वास से भरा हुआ।
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