यह राक्षसों से मां की रक्षा करने का समय है- अतिला कोतलावल
श्रीलंका हमारी मां है और हम अपनी मां की रक्षा करेंगे, समय-समय पर राक्षस पैदा हो जाते हैं, उनसे हम अपनी मां को बचाएंगे। हमारे लोगों में सिंह का खून है, अब यह खून ललकार रहा है। यह कहना है अतिला कोतलावल का।
हिंदी के जानकारों में अतिला का नाम नया नहीं है। विदेशों में हिंदी का प्रसार कर रहे लोगों की युवा बानगी है अतिला। वर्ष 2000 में श्रीलंका में उन्होंने हिंदी संस्थान श्रीलंका की नींव रखी। हिंदी संस्थान आधुनिक तथा रोचक ढंग से श्रीलंका में हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करने के साथ हिंदी भाषा एवं साहित्य की उच्चतम शैक्षणिक सुविधाएँ उपलब्ध कराता आ रहा है।
आपने वर्ष 2014 में कुरुनेगल शहर में पब्लिक हिंदी लाइब्रेरी की स्थापना भी की। स्कूली जीवन से अतिला का रुझान भाषाओं की तरफ था। कक्षा 12वीं में उन्होंने जापानी, फ्रैंच एवं हिंदी भाषा को अपने अध्ययन के क्षेत्र के लिए चुना था। हिंदी भाषा के लिए छात्रवृत्ति मिलने के बाद हिंदी की दिशा में उनके कदम तेज़ी से बढ़ चले और पिछले 22 सालों से वे श्रीलंका में हिंदी का प्रसार कर रही हैं।
हिंदी साहित्य अकादमी, मॉरीशस द्वारा सम्मानित एवं श्रीलंका हिंदी निकेतन द्वारा हिंदी ज्योत्स्ना से सम्मानित रिसर्चर अतिला कहती हैं हालात ठीक थे तो हम हिंदी का अध्यापन बड़े रोचक तरीके से करते थे। हम अपने अध्ययन-अध्यापन के दौर में संतुष्ट थे लेकिन अब अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। हमारे बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे हैं तो उनकी ऑनलाइन कक्षा हो जाती हैं लेकिन जो बच्चे सरकारी स्कूलों में हैं, उनकी पढ़ाई पूरी तरह ठप्प है।
देश धीरे-धीरे एक-एक कदम पीछे जा रहा है। हम कोलंबो जाकर विरोध प्रदर्शन में शामिल होना चाहते हैं क्योंकि सवाल हमारे बच्चों के भविष्य का है, हमारे भविष्य का है, देश के भविष्य का है। आज दस में से तीन घर ऐसे हैं जिन्हें नहीं पता कि उन्हें अगले दिन भोजन नसीब होगा या नहीं। हम जैसे मध्यम वर्ग के लोग पहले दो सब्जियाँ बनाते थे, अब दाल-चावल पर गुज़ारा कर रहे हैं। डबलरोटी तक खरीदना दूभर हो गया है।
खाना बनाने के लिए एलपीजी उपलब्ध नहीं है, सुबह तीन-चार घंटे बिजली आती है, तब सारे काम निपटाने होते हैं, राइस कुकर के सहारे काम चला रहे हैं। पेट्रोल नहीं है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट के अलावा सारा यातायात बंद है। भारत जिसे सोने की लंका कहता था आज भारत के सौ रुपए की कीमत हमारे यहाँ तीन सौ-चार सौ रुपए हो गई है। पहले मैं साल में दो बार भारत आती थी अब तो वह भी संभव नहीं।
टेलिफ़ोनिक चर्चा में अतिला कह रही थीं कि कोलंबो से सौ किमी दूर कोलंबो और कैंडी में मैं वर्ष 2006 से बच्चों को हिंदी पढ़ा रही हूँ। हिंदी फ़िल्मी गीतों के ज़रिए हम उन्हें हिंदी सिखाने का काम करते हैं। एक हज़ार से अधिक लोगों के लिए मैं इंटरप्रेटर का काम कर चुकी हूँ।
भारत से आने वाले पर्यटक रामायण से जुड़े स्थलों को देखना चाहते हैं, सीता माई को जहाँ रखा गया था वह अशोक वाटिका मैं हमेशा सबको दिखाने ले जाती हूँ। हाई कमीशन के लोगों, हिंदी संस्थान के लोगों जैसे कितने ही प्रतिष्ठित लोगों के लिए दुभाषिये का काम मैंने किया है। क्योंकि सास भी कभी बहू थी, दिया और बाती जैसे भारतीय धारावाहिकों के अनुवाद का काम किया है। कई फ़िल्मों के सबटाइटल अनूदित किए हैं। भारत शुरू से हमारा गुरु देश रहा है, भारत से बड़ा गहरा जुड़ाव है। भारत के तले हम हैं और हमें हमेशा लगता है कि हमें भारत की छत्रछाया मिलती रहती है।
अतिला कहती है श्रीलंका की आर्थिक स्थिति किसी से छिपी नहीं है, पिछले कई दशकों से यह चरमरा रही थी और अगले तीन-चार महीनों में और भी विकट हो सकती है। आमदनी उतनी नहीं बढ़ी है जितने चीज़ों के दाम बढ़ गए हैं। पहले हम कोई सामान दो किलो खरीदते थे तो अब 5 सौ ग्राम ही खरीदते हैं। हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं उनका भविष्य क्या होगा, हम हर क्षण बूढ़े हो रहे हैं, हमारा भविष्य क्या होगा ऐसे सवाल हमें खाए जा रहे हैं।
अपने-अपने शहरों से हर कोई विरोध प्रदर्शन कर रहा है, देश के भविष्य के लिए लड़ रहा है। हमें देश के लिए साथ आकर लड़ना ही होगा क्योंकि यह हमारे बच्चों के भविष्य का सवाल है इसलिए अब हर कोई ठान चुका है कि हम भी कोलंबो जाएँगे, हमें कोलंबो जाना ही होगा, देश को बचाना ही होगा।