रविवार, 22 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. Sexual abuse, Baba Ram Rahim

जनता तो भगवान बनाती है साहब, लेकिन शैतान आप

जनता तो भगवान बनाती है साहब, लेकिन शैतान आप - Sexual abuse, Baba Ram Rahim
13 मई 2002 को एक हताश और मजबूर लड़की, डरी-सहमी सी देश के प्रधानमंत्री को एक गुमनाम ख़त लिखती है। आखिर देश का आम आदमी उन्हीं की तरफ तो आस से देखता है, जब वह हर जगह से हार जाता है। नि:संदेह इस पत्र की जानकारी उनके कार्यालय में तैनात तमाम वरिष्ठ नौकरशाहों को भी निश्चित ही होगी।
 
साध्वी ने इस खत की कापी पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों और प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियों को भी भेजी थी। खैर, मामले का संज्ञान लिया पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने जिसने 24 सितंबर 2002 को इस खत की सच्‍चाई जानने के लिए सीबीआई को डेरा सच्चा सौदा की जांच के आदेश दिए।  
 
जांच 15 साल चली, चिट्ठी में लगे तमाम इल्‍जामात सही पाए गए और राम रहीम को दोषी करार दिया गया। इसमें जांच करने वाले अधिकारी और फैसला सुनाने वाले जज बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने दबावों को नजरअंदाज करते हुए सत्य का साथ दिया। 
 
देशभर में आज राम रहीम और उसके भक्तों पर बात हो रही है लेकिन हमारी उस व्यवस्था पर विचार क्यों नहीं किया जा रहा, जिसमें राम रहीम जैसों का ये कद बन जाता है कि सरकार भी उनके आगे घुटने टेकने के लिए मजबूर हो जाती है। उस हिम्मत की बात क्यों नहीं हो रही जब ऐसे व्यक्ति से विद्रोह करने का बीड़ा एक अबला जुटाती है? उसके द्वारा उठाए गए जोखिम की बात क्यों नहीं होती?
 
उस व्यवस्था के दोष की बात क्यों नहीं होती जिसमें एक बेबस लड़की द्वारा लिखा गया एक पत्र जिसमें उन तमाम यातनाओं का खुलासा होता है जो उस जैसी अनेक साध्वियां भुगतने के लिए मजबूर हैं, जो देश के बड़े से बड़े अधिकारियों के पास जाता तो है लेकिन उस पर कार्यवाही नहीं होती।

उस भावनाशून्य सिस्टम पर बात क्यों नहीं होती, जिसमें कोई भी इस पत्र में बयान की गई पीड़ा को महसूस नहीं कर पाता है? क्योंकि अगर इनमें से कोई भी जरा भी विचलित होता तो क्या यह राम रहीम को उसी समय सलाखों के पीछे डालने के लिए एक ठोस सबूत नहीं था? हम उस सिस्टम को दोष क्यों नहीं देते जिसमें यही आरोप अगर किसी आम आदमी पर लगा होता तो वह न जाने किन-किन धाराओं के आधार पर आधे घंटे के भीतर ही जेल में डाल दिया गया होता?
 
हम उस समाज में जी रहे हैं जिसमें जब 24 अक्तूबर 2002 को सिरसा से निकलने वाले एक सांध्य दैनिक 'पूरा सच' अपने अखबार में इस खत को छापता है तो उसी दिन उस पत्रकार को उसके घर के बाहर गोलियों से भून दिया जाता है और कहीं कोई आवाज नहीं उठाई जाती।
 
हम उस दौर से गुजर रहे हैं जिसमें इस खत की प्रतिलिपि इस मामूली अखबार के अलावा उन मीडिया घरानों के पास भी थी जिन्होंने न सिर्फ इस खत को अनदेखा किया बल्कि अपने साथी पत्रकार की हत्या पर भी तब मौन रहे लेकिन आज बाबा का चिट्ठा खोल रहे हैं।
 
क्या यह हमारी न्याय व्यवस्था का मजाक नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री को पत्र लिखे जाने के पन्द्रह साल बाद तक एक आदमी कानून की खिल्ली उड़ाता रहा, सबूतों के साथ खिलवाड़ करता रहा और गवाहों की हत्या करवाता गया?
 
सुनवाई के दौरान न्याय मांगने वाली साध्‍वी सिरसा से 250 किमी का सफर तय करके पंचकूला कोर्ट पहुंचती थीं और गुरमीत सिंह वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग के जरिए सिरसा से ही गवाही देता था? इसके बावजूद वह आधी से अधिक गवाहियों में पेश नहीं हुआ और जब आया तो ऐसे काफिले के साथ कि जैसे हिन्दुस्तान में कोई क़ानून व्यवस्था नहीं है और देश में उसी का राज है? प्रशासन मौन साधे खड़ा था और हम जनता को अंधभक्त कह रहे हैं? आखिर 15 साल तक हमारा प्रशासन क्या देखता रहा या फिर देखकर भी आंखें क्यों मूंदता रहा? इस पर भी जनता अंधभक्त है?
 
हुजूर जनता बेचारी क्या करे जब प्रधानमंत्री को लिखा उसका पत्र भी उसे न्याय दिलाने में उससे उसके भाई की जान और उसके जीवन के 15 साल मांग लेता है? जनता बेचारी क्या करे, जब उसके द्वारा चुनी गई सरकार के राज में उसे भूखे पेट सोना पड़ता है, लेकिन ऐसे बाबाओं के आश्रम उन्हें भरपेट भोजन और नौकरी दोनों देते हैं।
 
जनता बेचारी क्या करे जब वह आपके बनाए समाज में अपने से ऊंचे पद-प्रतिष्ठा और जाति वालों से अपमानित होते हैं, लेकिन इन बाबाओं के आश्रम में उन सबको अपने बराबर पाते हैं। जनता बेचारी क्या करे, जब वह बड़े से बड़े नेता को इनके दरबार में माथा टेकते देखती है? साहब, जनता को तो आपने ही अपनी आंखें मूंदकर अंधा बना दिया!
 
जनता को इन बाबाओं की हकीकत समझाने से पहले अपने समाज की हकीकत तो समझें कि जनता तो इन्हें केवल भगवान ही बनाती है लेकिन हमारा सिस्टम तो इन्हें शैतान बना देता है! यह बाबा अपने अनुयायियों की संख्या बनाते हैं, इस संख्या को चुनावों में हमारे नेता वोट बैंक बनाते हैं, चुनाव जीतकर सरकार भले ही ये नेता बनाते हैं, पर इस सरकार को यह बाबा चलाते हैं।
 
जनता की अंधभक्ति को देखने से पहले उसकी उस हताशा को महसूस कीजिए जो वह अपने नेताओं के आचरण में देखती है, उसकी बेबसी को महसूस कीजिए जो वह पैसे वालों की ताकत के आगे हारते हुए महसूस करते हैं, उस दर्द को समझिए जो ताकतवर लोग अपनी ताकत के बल पर उन्हें अक्सर देते रहते हैं, उस असहायपन का अंदाजा लगाइए जब वे रोज अपनी आंखों के सामने कानून को चेहरों और रुतबे के साथ बदलते देखते हैं।
 
सोचिए कि क्यों आम लोगों का राजनीति, कानून और इंसाफ से विश्वास उठ गया? सोचिए कि क्यों इस मुकदमे में सजा सुनाने के बाद जज को सुरक्षा के मद्देनजर किसी गुमनाम जगह पर ले जाया गया? क्या इस सबके लिए जनता दोषी है या फिर वो नेता जो इन बाबाओं की अनुयायी जनता को वोट बैंक से अधिक कुछ नहीं समझती तब भी जब वो इन बाबाओं के आश्रम में होती है और तब भी जब बाबा जेल में होते हैं और जनता सड़कों पर होती है।
 
काश कि हमारे नेता जनता के वोट बैंक को खरीदने के बजाए जनता के वोट कमाने की दिशा में कदम उठाना शुरू करे और धरातल पर ठोस काम करें, जिस दिन हमारे देश की जनता को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ेग, जिस दिन 'देश के संविधान में सब बराबर हैं' यह केवल क़ानून की किताबों में लिखा एक वाक्य नहीं यथार्थ होगा, उस दिन ऐसे सभी बाबाओं की दुकानें खुद-ब-खुद बंद हो जाएंगी। जनता को इन बाबाओं में नहीं, बल्कि हमारी सरकार और हमारे सिस्टम में भगवान दिखने लगेगा, वो सुबह कभी तो आएगी।
ये भी पढ़ें
गणेश का प्रसाद : तिल-गुड़ के मोदक... (देखें वीडियो)