बात यहां से शुरू करते हैं : दक्षिण की कंपनियों का मध्यप्रदेश में हमेशा बोलबाला रहा है। चाहे नहर, बांध और सड़कों के कंस्ट्रक्शन का मामला हो या रेत के ठेकों का उन्हें हमेशा प्राथमिकता मिली। दक्षिण की दखल शराब के कारोबार में बढ़ने वाली थी। हैदराबाद की पावर मैक कंपनी बारास्ता एक मंत्री यहां आने की तैयारी में थी। उसी की सुविधा के मुताबिक पॉलिसी भी बनने लगी थी। लेकिन जब उसे पता चला कि यहां के लिकर टॉयकून्स का गठजोड़ अच्छे अच्छों को फेल कर देता है तो उसने अपने कदम तेजी से पीछे खींच लिए।
राधेश्याम जुलानिया और एम गोपाल रेड्डी में बहुत फर्क है। रेड्डी को कम मौका मिला लेकिन जब भी मिला उनका लक्ष्य दूसरा ही रहा। उनकी बल्लेबाजी के किस्से प्रशासनिक हलकों में बहुत मशहूर हैं। इससे इतर जुलानिया जहां पदस्थ रहते हैं वहां उनका डंका बजता है और सरकार को भी उनके कारण कभी नीचा देखना नहीं पड़ता। अब जुलानिया का नया मुकाम माध्यमिक शिक्षा मंडल रहेगा और वह यहां क्या नया कर पाते हैं इस पर सबकी निगाहें। लेकिन यह समझना बहुत जरूरी है कि क्यों मुख्यमंत्री अपने प्रिय अफसर जुलानिया को मध्यप्रदेश में वजनदार पद नहीं दे पाए।
अर्चना चिटनिस अभी विधायक हैं नहीं और जल्दी बनने वाली भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी को लेकर जिस तरह की खींचतान चल रही है उसमें उन्हें अपने लिए कोई संभावना भी नहीं दिख रही। ऐसे में ऊंची पकड़ वाली यह नेत्री अब दिल्ली में ही कोई मुकाम हासिल करने की कोशिश में है। निगाहें भाजपा महिला मोर्चा के उच्च पद पर हैं और इस कवायद में यदि भाजपा की केंद्रीय इकाई में कोई पद मिल जाए तो भी क्या बुरा है। खंडवा बुरहानपुर की राजनीति में उनका नंदू भैया से पहले ही पंगा है और अब सुरेंद्र सिंह शेरा की भाजपा से नजदीकी से उनकी परेशानी बढ़ना ही है।
जयभानसिंह पवैया, भंवरसिंह शेखावत, लाल सिंह आर्य जैसे नेताओं की दुविधा एक जैसी है। ये पिछला चुनाव हारे और जिन से हारे वे अब भाजपा में आ गए हैं और जल्दी ही मैदान में भी होंगे। यदि जीत जाते हैं तो अगले चुनाव का टिकट भी पक्का। ऐसे में ये सब परंपरागत चुनाव क्षेत्र छोड़कर कहां जाएंगे। अब वह समय तो रहा नहीं कि यहां नहीं तो वहां से चुनाव लड़ लो। बीजेपी नेताओं के बीच उभरा यही फैक्टर कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है।
विवेक अग्रवाल पहले भी शिवराजसिंह चौहान की पसंद थे और अभी भी हैं। खुद अग्रवाल को भी वर्तमान स्थिति में मध्य प्रदेश में अपने लिए ज्यादा संभावनाएं दिख रही हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि केंद्र में एक बार प्रतिनियुक्ति पर जाने के बाद कम से कम 3 साल तो रहना ही पड़ता है अन्यथा अगली बार की प्रतिनियुक्ति खटाई में पड़ जाती है। अग्रवाल के 3 साल अभी पूरे नहीं हुए हैं ऐसे में वह केवल एक ही स्थिति में मध्यप्रदेश लौट सकते हैं और वह है मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थापना। देखें क्या होता है।
मंत्री कमल पटेल इंदौर आए तो देर रात तक कैलाश विजयवर्गीय से गुफ्तगू करते रहे। विजयवर्गीय भोपाल गए तो पटेल उनकी परछाई बन कर घूमते रहे और भोजन प्रसादी भी साथ में हुई। दोनों के इस गठजोड़ ने चौंका तो दिया है। गौरतलब यह है कि पटेल भी शिवराज के ना चाहते हुए मंत्री बने हैं और विजयवर्गीय ने तो सालों पहले शिवराज का रुख समझकर दिल्ली की राजनीति करना बेहतर समझा था। देखते हैं कमल-कैलाश का यह गठजोड़ क्या गुल खिलाता है।
पंगत के साथ संगत, यानी भोजन के साथ बैठक, यह चर्चा भले ही कांग्रेस के दिग्गज नेता महेश जोशी के दिमाग की उपज हो लेकिन अब इसका अनुसरण भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी कर रहे हैं। पिछले दिनों राज्यसभा चुनाव के संदर्भ में जब भाजपा कार्यालय में विधायकों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का जमावड़ा हुआ तो शर्मा ने वहीं पर भोजन का आयोजन भी कर दिया। कार्यक्रम समाप्ति के बाद जब मीडिया से रूबरू हुए तो उन्होंने इस समागम को पंगत के साथ संगत नाम दिया। कहने का उनका आशय यह था कि यदि किसी राजनीतिक कार्यक्रम के साथ भोजन भी रख लिया जाए तो एक साथ कई हित साध जाते हैं।
ग्वालियर भाजपा के नवनियुक्त जिला अध्यक्ष हैं कमल माखीजानी। इन्हें 15 जून को पद संभाले एक माह हो गया पर आजतक चैन से नहीं बैठ पाए। वजह सिर्फ यह है कि यह सांसद विवेक शेजवलकर के लाडले हैं और अंचल में सिक्का किसी और का चलता है। इसी नियुक्ति को लेकर संगठन महामंत्री सुहास भगत को भी आरोपों के घेरे में लाया गया था। फिलहाल तो ग्वालियर में कमल को कीचड़ में डुबोने की तैयारी दिख रही है।
शिवराज सिंह चौहान की इस पारी में एस के मिश्रा की भूमिका में कौन है। बारीकी से गौर किया जाए तो डॉ मनीष कुमार का नाम सामने आता है। मूलतः बैंक कर्मी मनीष संघ के साथ ही शिवराज की पसंद के चलते ही वल्लभ भवन की पांचवी मंजिल पर आसीन हुए हैं उनके पास सबसे अहम काम मुख्यमंत्री और जनप्रतिनिधियों के बीच समन्वय का है। मुख्यमंत्री का जो अधिकृत कार्यक्रम जारी होता है उसमें भी उनकी भूमिका इसी नाम से रेखांकित रहती है।
चलते चलते : बारास्ता ज्योतिरादित्य सिंधिया जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने शायद इस बात का इंतजाम कर लिया है कि उपचुनाव तक विवेक शर्मा ही इंदौर के आईजी रहें। तुलसी भाई की पसंद के एसडीओपी और 4 टीआई यहां पहले ही पदस्थ किए जा चुके हैं।
चंद्रप्रभाष शेखर यूं तो कमलनाथ के बहुत भरोसेमंद सहयोगी हैं लेकिन पिछले दिनों जब किसी कारण साहब शेखर से खफा हो गए और राजीव सिंह का वजन बढ़ता दिखा, तो उन्हें सही स्थिति बताने के लिए श्रीमती शेखर को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के यहां दस्तक देना पड़ी।
पुछल्ला : रायसेन जिला भाजपा के अध्यक्ष पद पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नापसंदगी के बावजूद जयप्रकाश किरार की नियुक्ति के क्या मायने हैं? शिवराज इस पद पर आखिर किसे चाहते थे।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)