गुरुवार, 7 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. positive environment happy future indicating

सकारात्मक वातावरण सुखद भविष्य का संकेत

सकारात्मक वातावरण सुखद भविष्य का संकेत - positive environment happy future indicating
Ram temple 
 
Shri Ram temple: इसमें दो मत नहीं कि देश में अद्भुत राममय वातावरण बना है। बाजारों में श्रीराम से जुड़ी चीजों की खरीदारी की नई प्रवृत्ति देखी जा रही है। बाजार में रामजी के नाम से बने सिक्के, आभूषण वस्त्र आदि की मांग काफी बढ़ी है और इस कारण व्यापारिक गतिविधियां भी। आपको चलते-फिरते किसी ने किसी मोहल्ले में श्री राम जय राम की धुन से लेकर अन्य संकेत मिल जाएंगे। 
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार की कोशिशों से 22 जनवरी के लिए लाखों की संख्या में मंदिरों ने कार्यक्रम की तैयारी की है। कांग्रेस या कम्युनिस्ट पार्टियों के वक्तव्य और व्यवहार से निस्संदेह, थोड़ा नकारात्मक वातावरण बना लेकिन यह साफ दिख रहा है कि आम लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया तथा पूरा वातावरण सकारात्मक है। स्वयं कांग्रेस पार्टी के अंदर भी सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा निमंत्रण अस्वीकार करने का संपूर्ण समर्थन नहीं है। 
 
इससे पता चलता है कि लगभग तीन दशक बाद पूरे देश का वातावरण अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर कैसा बना है। हालांकि 22 जनवरी के निमंत्रण को लेकर उन लोगों के अंदर थोड़ी निराशा और खीझ है जिन्होंने प्रतिबद्धता के साथ श्रीराम मंदिर के विषय को विपरीत परिस्थितियों में भी मुद्दे के रूप में बनाए रखने के लिए अपने निजी हितों की लगातार बलि चढ़ाई। 
 
ऐसे अवसर पर उनकी दुखद अनदेखी तथा ऐसे लोगों को, जिन्होंने या तो विरोध किया या सेक्युलरवाद विरोधी छवि न बने इस कारण खामोश रहे या बीच का रास्ता अपनाया या फिर जिन्होंने इन विषयों का संकुचित स्वार्थ के लिए उपयोग किया उन सबको निमंत्रण द्वारा प्रतिष्ठा देना ऐसे लोगों को कचोट रहा है। किंतु सबके मन में भाव यही है कि ध्वस्त किए गए मान बिन्दुओं के 500 वर्षों बाद आध्यात्मिक अतःशक्ति को फिर से पुनर्प्रतिष्ठित करने का समय आया है, तो ऐसे में विवाद खड़ा करके सकारात्मक वातावरण को कमजोर न किया जाए।
 
निश्चित मानिए ऐसे माहौल का संपूर्ण राष्ट्र के वर्तमान एवं भविष्य की दृष्टि से व्यापक प्रभाव होगा। 
 
तात्कालिक रूप से हम भले यह गणना करें कि आगामी लोकसभा चुनाव में इसका लाभ किसे मिलेगा या इससे किनको क्षति होगी, पर श्रीराम के बाल विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा तथा मंदिर के संपूर्ण निर्माण का प्रभाव केवल चुनाव तक सीमित नहीं हो सकता। यह तो साफ है कि जिस पार्टी ने अयोध्या के विवादित स्थल पर श्रीराम मंदिर के पुनर्निर्माण को अपना लक्ष्य घोषित किया, उसके लिए आंदोलन अभियान चलाए उसे मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा तक का श्रेय मिलेगा। 
 
जो पार्टियां आज राजनीतिक लाभ के लिए राम का उपयोग करने का आरोप लगातीं हैंल उन्हें अपने गिरेबान में झांकने की आवश्यकता है। आखिर इन पार्टियों का ही नहीं, हमारे देश की मीडिया और बुद्धिजीवियों के बड़े समूह का श्रीराम मंदिर आंदोलन के प्रति रवैया क्या रहा? भाजपा ने जब से विवादित स्थल पर श्रीराम मंदिर निर्माण को अपने एजेंडे में शामिल किया तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से विश्व हिंदू परिषद ने इसे आगे बढ़ाया, तभी से पूरे परिवार के लिए कम्युनल फोर्सेस यानी सांप्रदायिक शक्तियां शब्द प्रयोग होने लगे। 
 
पहले विश्व हिंदू परिषद की एकात्मता यात्रा को जगह-जगह रोकने और बाधित करने की कोशिश हुई और बाद में लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा को। रथ यात्रा के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय तक मामले ले जाए गए। यह अलग बात है कि आडवाणी इतना सधा हुआ भाषण देते थे कि न्यायालय को इसमें कुछ भी आपत्तिजनक, सांप्रदायिक या किसी कम्युनिटी को भड़काने जैसा नहीं मिला। 
 
ज्यादातर समाचार पत्रों-पत्रिकाओं ने इसके विरुद्ध ही तेवर अपनाया तथा कई ने तो अपनी पत्र-पत्रिका को ही राम मंदिर आंदोलन विरोधी अभियान का हिस्सा बना दिया। उस समय टेलीविजन या इंटरनेट का दौर नहीं था, इस कारण आपको तब की सामग्रियों के लिए थोड़ी शोध करनी पड़ेगी। ऐसा माहौल बनाया गया मानो संघ और भाजपा देश में हिंदुओं और मुसलमान के बीच संघर्ष कराकर गृह युद्ध की स्थिति पैदा करना चाहती है। चाहे न्यायालय में मुकदमे लड़ने वाले हों या फिर अन्य तरीकों से श्रीराम मंदिर के पक्ष में काम करने वाले, सबका उपहास उड़ाया गया। लेकिन धीरे-धीरे जनता का व्यापक समर्थन मिला और मामला सघन हुआ तो न्यायालय तक में बड़े-बड़े वकील इसके विरोध में खड़े होने लगे।
 
राजधानी दिल्ली की पत्रकारिता और बौद्धिक क्षेत्र का वातावरण इतना डरावना था कि कोई सामान्य पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी, अयोध्या आंदोलन या श्रीराम मंदिर के पक्ष में बोलने का साहस तक नहीं कर सकता था। ऐसा करने का अर्थ था उसके करियर का नष्ट हो जाना। कुछ को इसका खामियाजा भुगतना भी पड़ा। 6 दिसंबर, 1992 के बाबरी विध्वंस के बाद राम मंदिर समर्थकों के विरुद्ध आतंककारी वातावरण बन गया था। संघर्ष से जुड़े संगठन प्रतिबंधित थे, भाजपा और विहिप सहित मंदिर आंदोलन के अनेक नेता जेल में थे और उसके साथ ऐसा अभियान चल रहा था ताकि किसी तरह पूरे संगठन परिवार को नष्ट कर दिया जाए। 
 
राजधानी दिल्ली में हर दिन कहीं न कहीं गोष्ठियां होती थी जिनमें एक ही तर्क होता था कि योजनाबद्ध तरीके से षड्यंत्र कर ढांचे को ध्वस्त किया गया है। इसे विश्व भर में हिटलर और मुसोलिनी के समानांतर फासिस्टवाद की डरावनी घटना साबित की गई। समाचार पत्र और पत्रिकाओं के पन्ने रंग दिए गए जिनका स्वर ही होता था कि भारत में फासिस्ट मजहबी शक्तियां किस सीमा तक हिंसक हो चुकी है। 
 
आज कहा जा रहा है कि राम सबके हैं और मंदिर से किसी का विरोध नहीं है किंतु भाजपा और तत्कालीन बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को छोड़ दीजिए तो किसी भी पार्टी का एक शब्द आपको श्रीराम मंदिर के समर्थन में नहीं मिलेगा। बाबरी विध्वंस के बाद भाजपा की तीन सरकारें बर्खास्त कर दीं गईं और माहौल ऐसा बना जिसमें माना गया कि भाजपा की सत्ता में वापसी नहीं होगी। वैसे विपरीत माहौल में भाजपा के शीर्ष नेताओं में से कुछ के बयानों में काफी नरमी और क्षमायाचना की मुद्रा थी किंतु कुल मिलाकर पार्टी ने अपने एजेंडा से अयोध्या को हटाया नहीं। 
 
भाजपा और संघ परिवार के नेता रायबरेली न्यायालय में बाबरी ध्वंस का मुकदमा झेलते रहे तो दूसरी और श्रीराम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद सिविल वाद में भी संगठन परिवारवादी न होते हुए भी पूरी ताकत लगा दी। बड़े-बड़े वकील इसी कारण खड़े हुए तब जाकर जिला सिविल न्यायालय से लेकर उच्च और उच्चतम न्यायालय तक मामला गंभीरता से लड़ा जा सका।  
 
यह भी स्वीकार करने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि केन्द्र में भाजपा की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार नहीं होती तथा उत्तर प्रदेश में गैर भाजपा सरकार होती तब भी मंदिर का निर्माण नहीं हो पाता। न्यायालय का फैसला पड़ा रहता। केंद्र में सरकार होते हुए भी प्रदेश सरकार का पूरा सहयोग और समर्थन नहीं होता तब भी इसका निर्माण असंभव था। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है, योगी आदित्यनाथ की मंदिर निर्माण के प्रति अटूट आस्था है तथा उनके उपमुख्यमंत्रियों में भी केशव प्रसाद मौर्य विश्व हिंदू परिषद से निकले हैं। इसलिए संकल्प के साथ समय सीमा तय करके मंदिर निर्माण पूरा किया जा रहा है। 
 
दिसंबर 2023 या जनवरी 2024 तक गर्भगृह का संपूर्ण निर्माण कर उसमें मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का लक्ष्य तय हुआ और यह साकार हो रहा है। इसमें अगर भाजपा को इसका लाभ मिल रहा है तो इसमें आश्चर्य का कोई विषय नहीं है। दूसरे दलों ने पहले भी इसी तरह का रवैया अपनाया और आज उनके सामने इस ऐतिहासिक कालखंड में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाने का अवसर था जिससे वे चूक रहे हैं। किंतु इससे विचलित होने की बजाय प्राण प्रतिष्ठा के साथ पूरे देश का सकारात्मक माहौल हमारे लिए आत्मसंतोष और प्रेरणा का कारण बनना चाहिए।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
ये भी पढ़ें
ईरान और पाकिस्तान की तनातनी किस हद तक जाएगी, जानिए कौन है ज्यादा ताकतवर