Palghar Mob Lynching : क्या यह हमारा हिंदुस्तान है?
पालघर, साधु, मॉब लिंचिंग.... बस 3 शब्द तैर रहे हैं हवाओं में,जिन्हें डिजिटल पीढ़ी ट्रेंडिंग वर्ड्स कहेगी... लेकिन सच तो यह है कि शर्मनाक दौर का यह दर्दनाक किस्सा है। भीतर तक आहत कर देने वाली मर्मान्तक घटना है।
इस देश में किसी की आत्महत्या पर वैश्विक स्तर के उबाल और आंदोलन हो जाते हैं और किसी की सरे आम हत्या पर तंज कसे जाते हैं कि तुमने आग लगाई है तुम भी झुलसो...
वैचारिक और भावनात्मक पतन की यह कैसी पराकाष्ठा है कि हम मौत का जश्न मनाने में भी शर्म नहीं करते।
इस देश में साधु-संत और विद्वानों का स्थान देवताओं से भी अधिक ऊपर है और इसी देश में वे एक बेशर्म भीड़ के हवाले कर दिए जाते हैं चोर समझ कर... ना मानो साधु संत को पर बुजुर्ग होने की ही अदब कर लेते...
मुझे लगता है यह जो कोरोना आया है न किसी खास वजह से ही आया है कि थोड़ा हम झांक लें अपने भीतर, अपने मरते हुए मन को खंगाल लें, थोड़ा हिला लें अपने वजूद को अपनी आत्मा को थोड़ा नहला दें गैरत के पानी से...राजनीतिक विचारधाराओं ने सड़ा दिए हैं हमारे दिल और दिमाग.. हम हिन्दू-मुसलमान, भाजपा-कांग्रेस से आगे सोच-समझ ही नहीं पाते हैं।
कौन मरा अपने इधर का या उधर का ..अच्छा अपना है तो चलो गरियाओ और गलियाओ{ दो गाली} सरकार को ... ....अच्छा... उनका है तो गलतफहमी हो सकती है। अभी जरूरी नहीं है लिखना या सोचना...
हम संवेदनशील देश की कैसी असंवेदनशील संतान हैं कि भीड़ किसी निरीह बुजुर्ग को पीट-पीट कर मार डालती है और हम धर्म ढूंढते रह जाते हैं.. अधर्मी लोग....
हत्या तो हत्या होती है क्यों 'मॉब लिंचिंग' शब्द बस तुम्हारा है इस सुविधा के साथ कि पूरे देश में गाय के नाम पर जो मारे गए वह हिन्दू राष्ट्र हो जाने के संकेत हैं।
आज जब कोरोना जैसे अदृश्य खौफ से हम मृत्यु के आंकड़े बढ़ते हुए देख रहे हैं तो लगता है हमारी त्वचा निर्जीव हो गई है जैसे कुछ छू कर ही नहीं जा रहा है मरने वाले मरते जा रहे हैं और हम बस भयभीत होकर देखते रह जाने के लिए बचे हैं...
थोड़ी तो अपने इंसान होने की शर्म को बचा लीजिए ...तेरा मेरा, इसका-उसका बाद में हो जाएगा... मानव मर रहे हैं मानवता को तो मरने मत दीजिए... कुछ तो लिहाज कीजिए... अपने दिल पर हाथ रख लीजिए और फिर सोचिए कि क्या यह हमारा हिंदुस्तान है? *स्मृति