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मेरी ओरछा यात्रा : ओरछा के राजा श्री राम नरेश

मेरी ओरछा  यात्रा : ओरछा के राजा श्री राम नरेश - orchha yatra
यूँ ओरछा पहले भी हो कर आ चुकी हूँ, पर जो  साल भर  पहले गई थी (7-8 मार्च 2020) उस यात्रा को याद करना बहुत सुखद है। वजह-ओरछा को जाना, समझा, और अपनी मित्रों के साथ वहाँ चल रहे ओरछा उत्सव का खूब आनंद लिया। 
 
ओरछा जाना दो बातों के लिए महत्वपूर्ण हो गया, एक ये जानने को मिला  कि  वहाँ राम को दैवीय रूप के स्थान पर राजा के रूप में माना जाता है, दूसरा यहाँ से दतिया(पीतांबरा एवं महलों के लिए प्रसिद्ध) बहुत पास है। दोनों ही स्थान एक दूसरे से विपरीत दिशा मे हैं, लेकिन 35-40 किलोमीटर से अधिक का फासला नहीं है। बुंदेलखंड की  ये दो खूबसूरत और दिलचस्प जगहें एक साथ देखने का अवसर मिला।
 
झांसी के पास स्थित ओरछा का अपना महत्व है। ये मध्यप्रदेश के जिला निवाडी में आता है।  ओरछा की स्थापना सिकंदर लोदी से लड़ने वाले रुद्रप्रताप सिंह जू बुंदेला ने 15 वी शताब्दी में  की थी । ये जगह प्राकृतिक  रूप से सुन्दर है। यूनेस्को ने ग्वालियर और ओरछा को  वर्ल्ड हेरिटिज सिटी  की सूची मे शामिल किया है। यहाँ की इमारतें किले, महल और कलाकृतियाँ बहुत आकर्षक हैं। राजा राम मंदिर वहाँ का मुख्य आकर्षण है। राम वहाँ राजा के रूप मे रहते हैं। ‘राम राजा महल’ में राम रहते भी हैं।  सूर्योदय और सूर्यास्त पर आज भी सलामी की प्रथा चली आ रही है। राजशाही परंपरा के अनुसार वहाँ पान और इत्र की सींक प्रसाद के रूप मे दी जाती है।  इस यात्रा में बहुत नजदीक जा कर देखा कि जब आप उनके बिल्कुल सामने होते हैं, तो बस निहार ही पाते हैं, अपनी प्रार्थनाएँ तो भूल ही जाते हैं। शायद यही असर होगा एक राजा के दरबार का। 
 
इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियाँ प्रचलित हैं। जिनसे ये सार निकलता है की मूर्ति की स्थापना के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाया गया था। लेकिन मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व अयोध्या से लाई गई मूर्ति को मधुकर शाह बुंदेला(1554-92) की रानी गणेश कुँवर ने जिस स्थान पर रात्रि  भर रखा था, फिर वो मूर्ति वहाँ से हिली ही नहीं। अंततः पूजा स्थल वही बनाया गया। ये घटना किसी चमत्कार से कम नहीं थी। रामनवमी पर यहाँ विशेष आयोजन होता है। चमड़े की वस्तुओ का प्रवेश निषिद्ध है, तात्पर्य जीव हिंसा का साफ साफ विरोध। 
 
मंदिर के आसपास शहर बसा  हुआ है। बेतवा नदी का उद्गम भोपाल के पास झिरी से है, जो विदिशा से होती हुई ओरछा में भी मिली।  
 
पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश पर्यटन निगम का विशेष आभार व्यक्त करना चाहिए, जो पर्यटकों के लिए यहाँ रहने ठहरने की सुन्दर व्यवस्था की है। साथ ही शाम को किले में  लाइट एण्ड साउन्ड शो के जरिए ओरछा के इतिहास को दर्शकों तक पहुचाने का प्रयास किया जाता है। विदेशी पर्यटक भी यहाँ की खूबसूरती देखने खूब आते हैं। ओरछा प्राकृतिक  सौन्दर्य में डूबा हुआ है। हमारे  रास्तों में कई रंग के वोगनबिलिया ने बाहें फैला कर स्वागत  किया।
 
ओरछा की छतरियों और अन्य मंदिरों, महलों के बहुत से किस्से  हैं, जिनको सुनकर बहुत आनंद आता है। जब बुंदेलाओ का राजकाल(1783) समाप्त हो गया, तो ओरछा भी गुमनामी मे खो गया। कहा जाता है कि ये स्वतंत्रता संग्राम के समय चंद्रशेखर आजाद के यहाँ छिपने पर एक बार फिर  नजर में आया, इस जगह को एक स्मृति चिन्ह से अंकित किया हुआ है। 
 
लक्ष्मी मंदिर, जहांगीर महल(मुग़ल शासक जहांगीर और बुंदेलों की दोस्ती की निशानी), राजमहल(छतरियाँ, आंतरिक भित्ति चित्र), राम राजा मंदिर(भगवान राम का राज्याभिषेक), चतुर्भुज मंदिर, रायप्रवीण महल कितना कुछ देखने को है। 
 
जो लोग पेंटिंग में  रुचि रखते हैं वे जानते हैं कि वहाँ बुन्देली पेंटिंग का कितना पुराना इतिहास है। आंतरिक भित्ति चित्र बहुत कुछ बयान करते हैं। बुन्देलकालीन सामंती प्रभाव ओरछा एवं दतिया के कई चित्रों में मिलते हैं। लाल, गेरुआ, नीला, हर, पीला, सिलेटी रंगओं का प्रयोग यहाँ की चित्रकला  को जीवंत बनाते हैं। इन रंगों का चयन करने के पीछे जो भाव रहा होगा वो भी कुछ खास ही होगा। क्यों की सभी चटख रंग हैं। उभर कर आते हैं। बुन्देली संस्कृति भी तो ऐसी ही है, चटकीली।  व्यवहार, बोली, गाने, नृत्य, खाना, इतिहास, सब कुछ एकदम अलग। शायद यही कारण है की चित्रों में भी वैभिन्नता दिखाई देती है। 
 
चित्र को बनाने की तकनीकी अत्यंत उत्तम थी। प्रारंभ में चूना, सुर्खी, बालू एवं जूट की प्रथम सतह बनाई जाती, जिस पर पुनः चूना एवं शंख पाउडर की परत चढ़ाई जाती थी, समतल एवं चिकनी चमकीली सतह हेतु कौड़ी एवं अगेट पत्थर से इसकी घिसाई की जाती। मुग़ल शैली के चित्रों की  तुलना में भले ये कम लगते हो, पर इनका विषयगत जुड़ाव और ऊष्मीय रंगों  का प्रयोग इन्हें विशेष बनाता है। 
 
ओरछा की पेंटिंग्स में धार्मिक चित्रण अधिक देखने को मिलता है।  राम, कृष्ण के जीवन पुराणों की कहानियों और परिकल्पनाओ को अधिक स्थान दिया है। और इन चित्रों की विशेषता भी ये है की इनमें धर्म को संकीर्ण भाव से नहीं दिखाया गया। बल्कि सत्य और अच्छाई की विजय को प्रशंसनीय स्वरूप में नैतिकता के साथ दिखाया गया है। 
 
मैं तो देखने से वंचित रह गई, पर सुखलाल काछी द्वारा बनाया गया राम राज्याभिषेक का चित्र उक्त काल की बुंदेला संवेदनशीलता एवं कलात्मकता का अद्वितीय उदाहरण बताया जाता है। अगली ओरछा की यात्रा सिर्फ पेंटिंग्स एक्सप्लोर करने के लिए किया जाना तय हुआ है। प्रवीनराय महल में चित्रों द्वारा दर्शाया गया शृंगार रस, रीतिकाल की कविता का मुख्य विषय बने।  
 
ओरछा पेंटिंग्स को और अधिक जानने का मन है। यूं जानकारी कई जगह उपलब्ध है। पर अपनी आँखों से देखने और अपनी तरह से एनालीसिस करने का अपना मजा है। 
 
इस पेंटिंग को देखिए....
 
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