होशंगाबाद में चौबीसों घंटे नर्मदा के दिल को चीरकर रेत चोरी की जा रही है। नर्मदा के उद्गम से खंभात की खाड़ी तक छोटे-बड़े कस्बों व शहरों के 400 नाले शहरों का गंदा पानी नर्मदा में उत्सर्जित कर रहे हैं। नर्मदा का पानी होशंगाबाद में तो पीने योग्य नहीं रहा है और प्रदूषित नर्मदा के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। बावजूद इसके, पूर्व प्रदेश सरकार ने 'अमृत जल परियोजना' के नाम से करोड़ों रुपए के प्रोजेक्ट हर शहर, कस्बे, नगर पंचायत एवं नगर पालिकाओं से चालू कर रखे हैं।
नर्मदा घुट रही है, चीख रही है कि मुझे बचा लो। आज नर्मदा का पानी पीने योग्य नहीं बचा है। पूर्व प्रदेश सरकार ने 1,800 करोड़ रुपए नर्मदा पर खर्च किए, हरियाली चुनर से लेकर नर्मदा पथ बनाते हुए 7 करोड़ पौधारोपण हुआ लेकिन सब कागजी घोड़े साबित हुए और नर्मदा के कल-कल कहते स्वर दब गए हैं और वह कह रही है कि मुझे बचा लो लेकिन बचाए कौन? जिनके कंधों पर जिम्मेदारी है, वे सभी नर्मदा के तट पर रेत को पीला सोना समझकर पिछले 15 सालों में लूट मचाए हुए हैं।
रोजाना 500 से ज्यादा डम्फर, 400 से ज्यादा ट्रक दिन-रात नर्मदा और तवा से रेत ढो रहे हैं। जगह-जगह 5-10 हजार डम्फरों से खड़े किए गए रेत के पहाड़ भ्रष्टाचार की कहानी कह रहे हैं। छुटभैये ट्रैक्टर ट्रॉली भरने के लिए नावों से रेत ला रहे हैं और बाहरी ठेकेदार आधुनिक मशीनों के खूनी पंजों से नर्मदा की धार के बीच यह लूट मचाए हुए हैं।
नर्मदा और तवा को मिटाने का काम कोई और नहीं, यहां के स्थानीय राजनेता, विधायकों के परिजन आदि मिलकर कर रहे हैं जिन पर कोई लगाम नहीं है। पुलिस की यदा-कदा कार्रवाई जरूर देखने को मिलती है, पर कार्रवाई के बाद इनका 'हिस्सा' भी बढ़ जाता है। माइनिंग विभाग के अधिकारी इन ठेकेदारों के तलवे चाटने में माहिर हैं। यही कारण है कि नर्मदा की कराह किसी को सुनाई नहीं देती है।
होशंगाबाद नगर से 10 किलोमीटर दूर बान्द्राभान से सेठानी घाट आते-आते नर्मदा की प्रलयंकारी बाढ़ तटों के दोनों ओर 100 एकड़ जमीन पर कटाव कर विस्तार कर चुकी है। तवा बांध बनने के बाद तवा बांध से बान्द्राभान तक ग्राम सोनासांवरी, पांजरा, रायपुर, टील, सांगाखेड़ाकलां आदि की 20 किलोमीटर की दूरी में तवा बांध पर हो रहे रेत के अवैध उत्खनन के रहते हर साल कटाव बढ़ा है और 200 किसानों की 700 एकड़ उपजाऊ कृषि भूमि के खेत कटाव में आ चुके हैं, परंतु जिला प्रशासन कुंभकर्णी नींद सोया है और आज तक किसी भी किसान को मुआवजा नहीं बंट सका है।
1984 में जब 300 एकड़ भूमि के कटाव में आने की जानकारी हुई तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुखिया अर्जुनसिंह का दौरा हुआ और उन्होंने किसानों को मुआवजा देने की बात की तथा पीड़ित किसानों के परिजनों के किसानी कारोबार के छिनने पर दु:ख व्यक्त करते हुए उन्हें रोजगार देने शकर कारखाना बनाने की बात की और यह प्रयास जोरों से चला लेकिन 1988 में अर्जुनसिंह को पंजाब का राज्यपाल बनाए जाने के साथ ही सभी घोषणाएं कोरी ही साबित हुईं।
बात होशंगाबाद की करें तो यहां इस शहर में विकास के नाम पर किसी भी विधायक या सांसद ने इस शहर के विकास की कोरी कल्पनाएं ही लोगों को थमाईं और वोटों की गंदी राजनीति के कारण भोपाल पहुंच मार्ग गुत्ता के डूब वाली 30-40 एकड़ अनुपयोगी भूमि पर संजय नगर बसा दिया जिसमें 4-5 सौ मकान बने हैं। यह गुत्ता का क्षेत्र ग्वाल टोली में 300 सालों से निवास करने वाले ग्वालों ने अपने जानवरों को चराने, वहां से मिट्टी लाकर दिवाली पूर्व अपने घर-आंगन को संवारने के लिए छोड़ा था।
खोजनपुर ईदगाह के बीच 10 एकड़ से ज्यादा प्लाट कचरा फेंकने के लिए नगर पालिका ने आरक्षित कर रखा था जिसे खंती नाम दिया गया था। कालांतर में इस खंती पर अब कचरे के विशालकाय पहाड़ खड़े कर दिए गए हैं, वहीं 1973 की महाप्रलंयकारी बाढ़ के आने के बाद 1980 में कुछ मराठी परिवारों सहित शहरी क्षेत्र के अन्य ऐसे लोग जिनके मकान डूब में आए या मकानविहीन लोग इस गुत्ता सहित खोजनपुर और ग्वाल टोली के खाली पड़े मैदानों में बस गए।
डूब वाले इस क्षेत्र संजयनगर सहित अन्य वर्मा कॉलोनी, आदमगढ़, ग्वाल टोली, खोजनपुर में हर साल निचले क्षेत्र में बाढ़ का खतरा मंडराता है, परंतु नेताओं द्वारा वोट बटोरने के कारण 5 वार्डों के इस क्षेत्र में पिछले 25 सालों में बाढ़ के प्रभावितों को 110 करोड़ रुपए की राहत बांटी जा चुकी है जबकि आपदा प्रबंधन भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।
अगर थोड़ी भी जागरूकता होती तो इस 110 करोड़ रुपए की राहत की बजाय डूब क्षेत्र में चिन्हित लोगों को सुरक्षित स्थान पर बसाया जा सकता था और डूब वाले क्षेत्र को खाली कराकर सरकार कोई भी योजना के तहत यहां काम कर सकती थी। लेकिन नेताओं में नेतृत्व की कमी के रहते यह क्षेत्र उपेक्षित तो है ही, वहीं उजड़ने व संवरने में लगा अपना जख्म समझते हुए इन जख्मों के साथ जीने को विवश है।
आजादी के 75 सालों में अनेक नेता आए-गए, परंतु शहर यथावत है। शहर की समस्याएं यथावत हैं। पढ़ाई के पर्याप्त साधन और रोजगार के पर्याप्त अवसर इस जिले में आज भी दूर की कोढ़ी साबित हो रहे हैं। शहर का विस्तार हुआ है, पर किसी भी विधायक व सांसद ने शहरवासियों को सुविधाएं दिलाने की कोशिश नहीं की है। इस शहर को मिनी बस की भी दरकार है।
भले ही शहर का विस्तार हो गया हो लेकिन लोग मुख्य बाजार से अतिक्रमण हटाना ही नहीं चाहते और अपनी दुकानों से सरकारी जमीन पर किए गए अतिक्रमण से नगर की सड़कें तंग हो गई हैं। शहर के अनेक वार्ड ऐसे हैं जिसमें चौपाया वाहन प्रवेश कर ही नहीं सकता है।
बालागंज, जुमेराती, शनिचरा, कसेरा मोहल्ला, बजरिया, ग्वाल टोली जैसे कई मोहल्ले हैं जिनमें अतिक्रमण मुंहबाएं खड़ा है। ईश्वर न करे कि भी कोई आगजनी की घटना हो जाए तो पूरे का पूरा मोहल्ला जलकर स्वाहा हो सकता है, जैसे पूर्व में पटवा बाजार में हुई आगजनी में एक भी दुकान नहीं बचा सके थे।
शहर के बीचोबीच में सतरास्ते पर पेट्रोल पंप, पुराने बस स्टैंड पर 2 पेट्रोल पंप, रसूलिया आवासीय क्षेत्र के मध्य पेट्रोल पंप, सेंट्रल जेल के सामने पुलिस का पेट्रोल पंप सहित कोठी बाजार आवासीय कॉलोनी के बीच गैस गोदाम इस शहर के लिए नासूर हैं तथा जरा-सी चूक पलक झपकते ही इस शहर को तबाह करने के लिए काफी है जिस पर कभी कोई बात नहीं होती है।
शासन-प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए, परंतु नेताओं के संरक्षण में सभी नियमों को ताक पर रखकर तमाशबीन बने हैं और जनता इन सबके लिए सिर्फ वोटबैंक से ज्यादा कुछ नहीं है।