एक मानसून ही तो है जिसको लेकर हर कहीं कोई न कोई उत्सुकता होती है। मौजूदा कोविड काल छोड़ दें तो यही देश में मई से लेकर जुलाई-अगस्त तक सबसे ज्यादा चर्चाओं और सुर्खियों में होता है। फिलाहाल मानसून ही दूसरा विषय है क्योंकि वक्त से पहले जो आ गया। इसीलिए सारे देश की निगाहें हैं।
मानसून अरबी शब्द मावसिम यानी मौसम से बना है जिसे पावस भी कहते हैं। पुर्तगाली में मानसैओ, डच में मॉनसन जबकि हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी में मानसून कहलाता है। मानसून हिन्द महासागर तथा अरब सागर की ओर से भारतीय दक्षिण-पश्चिम तट पर आनी वाली हवाएं हैं जिससे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश यानी दक्षिणी एशिया रीजन में जून से सितंबर तक बरसात होती है।
गर्मियों में जब सूर्य हिन्द महासागर में विषुवत रेखा यानी इक्वेटर के ठीक ऊपर होता है तब समुद्र की सतह गर्म होने लगती है जिससे तापमान 30 डिग्री तक पहुंच जाता है। इसी दौरान धरती का तापमान भी 45-46 डिग्री तक पहुंच जाता है। मानसूनी हवाएं हिन्द महासागर के दक्षिणी हिस्से में सक्रिय होकर एक दूसरे को काटते, टकराते हुए इक्वेटर पार कर एशिया की तरफ बढ़ती हैं। इससे समुद्र के ऊपर बादल बनने लगते हैं। यही हवाएं और बादल बारिश करती हुई बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करती हैं। चूंकि पूरे देश का पारा बढ़ा हुआ होता है इसलिए ये हवाएं समुद्री पानी से भाप सोखती हुई धरती पर आकर ऊपर उठती हैं तथा बारिश करते हुए आगे बढ़ती जाती हैं।
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर पहुंचते ही ये मानसूनी हवाएं दो भागों में बंट जाती हैं। एक मुंबई, गुजरात, राजस्थान होते हुए तो दूसरी बंगाल की खाड़ी से प. बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर होते हए हिमालय से टकराकर गंगीय क्षेत्रों की ओर मुड़ जाती है। यहीं मानसून का एक भारतीय समय चक्र भी बनता है। यह बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार द्वीप समूह होकर 1 जून तक केरल पहुंचता है। जबकि अरब सागर से आने वाली हवाएं उत्तर की ओर बढ़ते हुए 10 जून तक मुंबई पहुंचती हैं। मानसून जून के पहले सप्ताह तक असम पहुंचकर हिमालय से टकराने के बाद पश्चिम की ओर मुड़ 7 जून के आसपास कोलकाता पहुंचता है। मध्य जून तक अरब सागर से आने वाली हवाएं सौराष्ट्र, कच्छ और मध्य भारत के प्रदेशों में फैल जाती हैं।
इसके बाद बंगाल की खाड़ी और अरब सागर हवाएं फिर एक साथ बहने लगती हैं जिससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पूर्वी राजस्थान में 1 जुलाई तक बारिश शुरू हो जाती है। दिल्ली को दोनों मानसूनी हवाओं का फायदा मिलता है जिसकी पहली बौछार कभी पूर्वी दिशा से आकर बंगाल की खाड़ी के ऊपर से बहने वाली हवा का हिस्सा बनती है तो कभी पहली बौछार अरब सागर के ऊपर से बहने वाली हवा का हिस्सा बनकर दक्षिण दिशा से आती है। मध्य जुलाई तक मानसून कश्मीर सहित देश के बांकी बचे हिस्सों में भी फैल जाता है और जुलाई के पहले सप्ताह तक लगभग पूरे देश में तेज बारिश शुरू हो जाती है।
सर्दियों में अधिक ठंड पड़ते ही यही हवाएं शुष्क उत्तर-पूर्वी मानसून बनकर बहती हैं जिनकी दिशा गर्मियों की मानसूनी हवाओं के उलट होती है।
भारत और एशियाई भूभाग के स्थल और जल भागों में जनवरी की शुरुआत तक तापमान कम होता है। इस समय उच्च दाब की एक पट्टी पश्चिम में भू-मध्यसागर और मध्य एशिया से लेकर उत्तर-पूर्वी चीन तक के भू-भाग में फैली होती है। इससे साफ आकाश, सुहाना मौसम, आर्द्रता की कमी और हल्की उत्तरी हवाएं चलती हैं। यही भारतीय मौसम की विशेषता है। उत्तर-पूर्वी मानसून में बारिश कम ही होती है जिससे सर्दी की फसल को बहुत लाभ होता है। हां, तमिलनाडु में इससे बहुत बारिश होती है क्योंकि यहां यही मानसूनकाल होता है। कारण भी है क्योंकि पश्चिमी घाट के पर्वत श्रेणियों की आड़ में आ जाने के कारण दक्षिण-पश्चिमी मानसून से तमिलनाडु में भरपूर बरसात नहीं हो पाती है जिसकी पूर्ति नवंबर-दिसंबर में उत्तर-पूर्वी मानसून करता है।
भारत में औसतन 117 सेमी बारिश मानसूनकाल में होती है। जबकि विसंगतियां भी हैं क्योंकि चेरापुंजी में साल भर में 1100 सेमी तो जैसलमेर में केवल 20 सेमी बारिश ही होती है। भारत में बारिश का कारण हमारी पर्वत श्रंखलाएं भी हैं। यदि ये नहीं होते तो बहुत कम बारिश होती। इसके बेहतर उदाहरण मुंबई और पुणे हैं। मानसूनी नम हवाएं दक्षिण-पश्चिमी दिशा से पश्चिमी घाट पर टकरा पवनाभिमुख ढ़ाल यानी विन्ड वर्ड वाले भाग में ऊपर उठती हैं जो मुंबई में भारी वर्षा (187 सेमी तक) कराता है।
यही हवाएं पर्वत श्रंखला पार करते पवन विमुखी ढाल यानी ली वर्ड हो नीचे उतर पुणे क्षेत्र में गर्म और शुष्क हो जाती हैं जिससे बहुत कम बारिश (50 सेमी तक) होती है जबकि दूरी महज 160 किलोमीटर ही है। वैज्ञानिक मानते हैं कि हिमालय नहीं होता तो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में मानसूनी बारिश भी नहीं होती। दरअसल मानसूनी हवाएं बंगाल की खाड़ी से होकर, हिमालय से टकराकर वापस लौटते हुए उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में बरसती हैं। मानसूनकाल राजस्थान में मामूली बारिश के साथ खत्म हो जाता है।
मानसून की तमाम रोचकताएं भी हैं। एक यह कि पूरे वर्ष में जहां 8765 घण्टे होते हैं वहीं मानसून की सक्रियता तापमान के अंतर के चलते लगभग 100 घण्टों की ही होती है। इससे लगभग 40 हजार बिलियन टन मानसूनी समुद्री पानी भारत में बरसता है। लेकिन भूजल दोहन के अनुपात में हमने इसे कितना सहेजा? उल्टा पर्यावरणीय प्रदूषण, हरे-भरे जंगलों की लगातार कटाई, कंक्रीट के जंगलों की बाढ़, तालाब, पोखरों, नदियों से ज्यादती, पहाड़ों की गिट्टी में तब्दीली तो रेत की आड़ में नदियों के अस्तित्व से खिलवाड़ वो वजहें हैं जिनसे जानकर भी अनजान हैं और परेशान हैं। बावजूद इन सबके प्रकृति की उदारता देखिए कोरोना लॉकडाउन के चलते प्रदूषण कमा और पर्यावरण की सांसों को सुकून क्या मिला मानसून ने भी अपनी खुशी जतला दी और बरसों बाद लगभग पूरे देश में हफ्ते दस दिन पहले ही झमाझम झूम कर दस्तक दे दी। काश प्रकृति के इन इशारों को समझ पाते जिसके बहुत गहरे मायने हैं।
(इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी अनुभव और निजी अभिव्यक्ति है। वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)