• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. LOCK DOWN EFFECT

LOCK DOWN EFFECT: बाहर से भीतर जाने के प्रवास का अनुभव

LOCK DOWN EFFECT: बाहर से भीतर जाने के प्रवास का अनुभव - LOCK DOWN EFFECT
हमारी आदतें और जरूरतें हमारी जिंदगी की दिशा तय करती है ये कहना गलत नहीं होगा। लॉक डाउन से पहले की हमारी भाग दौड़ से भरी जिंदगी का गणित कुछ गड़बड़ाया सा लगता है…….हम कहां जा रहे थे या जाना चाह रहे थे कोई हिसाब ही नहीं था।

ऐसा कहते है 21 दिन का वक़्त कोई भी आदत बनाने के लिए काफी है। फिर हम तो लॉक डाउन के 30 दिन पूरे कर रहे हैं। कितनी मुश्किल घड़ियां हैं ये…..भावनात्मक और वैचारिक पृष्ठभूमि पर कितनी बौखलाहट है। लेकिन हमें सकारात्मक रहना है। हमारे आसपास इतना कुछ सकारात्मक है पर  क्या हम ध्यान  दे रहे हैं ?

आगे आने वाला समय बिलकुल आसान नहीं होगा लेकिन आज का दिन भी वापस नहीं लौटेगा क्या ये याद है हमें? कुछ सालों बाद इसी मुश्किल दौर का बखान करते रहेंगे लेकिन यही दौर हमें कितना कुछ सीखा कर जाएगा ये सोचते हैं।
 
पिछले एक महीने से आंख खुलते ही क्या याद रहता है तो अपना स्वास्थ्य।मेरा गला, नाक, मुंह, आंखें सब जो का त्यों है ना!!!! मेरा परिवार स्वस्थ है ना? नौकरी, मीटिंग्स, स्टेटस पैसे, पार्किंग में खड़ी गाड़ी, इएमआई कुछ याद नहीं रहता अगर घर में एक छींक भी सुनाई दे सुबह सुबह।

शारीरिक स्वास्थ्य सर्वोपरि है बस यही याद रहता है। हम सारे ही या कहें बहुतांश व्यायाम फिर जिम, योग, सैर कुछ ना कुछ करते रहते हैं। कई बार इस सबका हम नियमित प्रशिक्षण भी ले रहे होते हैं।
 
 लॉक डाउन के चलते अब तो वो प्रशिक्षण केंद्र भी बंद हैं परन्तु फिर भी हम ऊर्जा से भरपूर महसूस कर रहे हैं।तो कैसे???? यही तो खास बात है। घर का खाना खा रहे हैं। घर में नौकरों का आना बंद हैं इसलिए हम घर के कामों में व्यस्त हैं। और हम सेहत का ध्यान रखने की कोई कसर भी नहीं छोड़ रहे हैं।
 
अब स्वास्थ्य के बाद दूसरा महत्वपूर्ण विषय है रोटी।आज क्या खाएंगे।अन्न पूर्णब्रह्म हैं इसका साक्षात्कार इस दौर में तीव्रता के साथ हो रहा है।जो भी खाद्य पदार्थ, अनाज या सब्जी घर में उपलब्ध हैं वो कितनी हैं, कब ख़त्म होगी, उसमें और कितने निकल जाएंगे इस सबका हिसाब पूरे परिवार के पास है।

सोचिए तो जरा जिस पापी पेट के लिए जिंदगी की दौड़ धूप है आज उसको पहली बार ही सही मायने में महत्व दिया जा रहा है। इससे पहले कब सोचा था कितना अनाज या सब्जी कितने दिनों की जरुरत की आपूर्ति कर सकते हैं????? कभी सोचा ही नहीं था। 
 
घर के खाने की नापसंदगी या आलस्य को होटल या बाहर से आए खाने से ढक दिया करते थे। बस जीवन चल रहा था या भाग रहा था और कहां ये किसी को भी पता नहीं। अब चित्र बिलकुल ऐसा नहीं है। हमारी सबसे महत्वपूर्ण चिंताएं हैं स्वास्थ्य और अन्न। अर्थात हम अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए ही सचेत हैं।

शारीरिक स्थिरता और सात्विक आहार अब जीवन का आधार। तो अब तो ये आदतें हो गई हैं। किसी भी आदत के लिए 1 महीने का समय पर्याप्त है।फिर ये आदत कसरत की हो, आहार की या जीवन के प्रति अपने नजरिये की………..
 
विचार ऐसा भी आएगा की अर्थव्यवस्था यहां चरमरा रही हैं, निर्मिति क्षेत्र स्वयं को भटकते हुए महसूस कर रहे हैं उसमें सकारात्मकता कहां ढूंढें अब?????
 
लेकिन तभी ये भी सोच कर देखिए कितने काम हम घर बैठे कर पा रहे हैं।कितने ही वरिष्ठ अधिकारी WFH (वर्क फ्रॉम होम) के सूत्र को समझ गए होंगे। बच्चे वर्चुअल स्कूलिंग करते हुए नजर आएंगे और शिक्षक उनके चहचाहट को महसूस कर रहे होंगे। घर के सारे कामों की जिम्मेदारियां अब तक विभाजित हो गई होंगी।

अत्यावश्यक और अनावश्यक के बीच का अंतर अब पूरी तरह समझ आ चुका होगा। अपने शौक, पसंद नापसंद , आपस में संवाद सब कुछ ताज़ा लग रहा होगा। 
 
ये सब सकारात्मक ही हैं!!! इस सारी प्रक्रिया में घर के बच्चे समझदार हो जाएंगे ये निश्चित है। विश्व की परिस्थिति और चीजों के अभाव उन्हें बहुत कुछ सीखा देंगे। covid के बाद आने वाली पीढ़ी अलग समझदारी और सकारात्मकता लेकर नई शुरुआत करेगी।

हम जब इस महामारी से बाहर आएंगे तब परिवार के साथ बिताए इस समय, भावनाओं के बंधनों के निवेश को याद रखेंगे या भूल जाएंगे पता नहीं। किन्तु इस कठिन समय में लगी कुछ आदतें जरूर साथ रहेंगी।
 
हर शाम शंखनाद और घंटानाद सुनाई दे रहा है। जीवन में घर से बाहर ना निकल कर मन के भीतर जाने का ये अलग प्रवास-अनुभव भी लेने का प्रयास जरूर करिए। हम बाहर से भीतर की यात्रा एक लम्बा गहरा विषय हैं……इस पर बात फिर कभी होगी तब तक शुभम भवतु………..
 
राजश्री दिघे चितले
ये भी पढ़ें
प्यारा बचपन,निराले खेल [भाग 3] : देसी और जुगाड़ के खेल-खिलौनों का अपना मजा है...