एक मंदिर था, एक कन्या थी... मंदिरों में कन्या पूजन होता है, पर उस मंदिर में रूदन था तुम्हारा आसिफा....
तुम आसिफा थी या अनीता.. कोई फर्क नहीं पड़ता....तुम एक देह थी और देह का कोई धर्म नहीं होता इस समाज में, वह सिर्फ नोंची जाती है, रौंदी जाती है, कुचली जाती है, छली जाती है, फेंकी जाती है, जलाई जाती है... वही तो हुआ तुम्हारे साथ....एक कच्चा कोमल शरीर और 6 दरिंदे, शैतान, दानव, राक्षस, हैवान, नपुंसक और वहशी ... कितने शब्द लिखूं सब छोटे लग रहे हैं।
जम्मू के कठुआ की रहने वाली 8 साल की मासूम कली, 6 लोगों ने उसके जिस्म को लूटा-खसोंटा और फेंक दिया जंगल में.. कारण उसका धर्म था।
वह खानाबदोश मुस्लिम बकरवाल समुदाय से थी, जिसे कुछ धर्मांध लोगों ने सबक सिखाने के लिए टारगेट बनाया ताकि पूरा समुदाय दहशत में आकर वह जगह छोड़ दे। कैसी नीचता है यह?
आज आसिफा है कल अंजलि होगी, परसों आरिया, एंजल होगी, या फिर किसी दिन अमृत कौर... इस देश में ना धर्मों की कमी है, ना नामों की ना बच्चियों की....और बलात्कारियों की कमी तो कभी थी ही नहीं.. हर धर्म में अपनी विकृत मानसिकता का परिचय देने को तत्पर बैठे हैं सांजी राम हो या साजिद, दीपक हो या दानिश, विशाल हो या वसीम .... सांप्रदायिकता रेप में आड़े नहीं आती.. दूसरे धर्म की लड़की हो तो बर्बाद करने में ज्यादा वहशी मजा मिलता है... यह नीचता विभाजन के समय दोनों तरफ थी और आज विभाजन के बाद भी है आसिफा केस ने फिर एक बार हमें हमारी 'औकात' दिखा दी है। हम कहीं नहीं गए हैं वहीं है जहां थे, प्रगतिशीलता के तमाम दावों के बीच उतने ही गंदे, उतने ही क्रूर, उतने ही गलीज़...
वरना कैसे कोई पुलिसकर्मी दीपक खजुरिया यह कह पाता कि उसको जिंदा रखना एक बार मुझे भी करना है (बलात्कार).... छी....कैसे सुरक्षा की नौकरी करता होगा वह... जो स्वयं आतताई हो....
भूख से बेहाल, नशीली दवाओं का असर और तन पर पड़ते हथोड़े.. मन तो झुलस ही गया होगा उसका हिसाब करने में तो सक्षम भी नहीं हम...अहसास के स्तर पर हर जज़्बात मर से गए हैं। इस दरिंदगी को अंजाम दिया गया मंदिर में....मंदिर जहां सारी आस्थाएं चरम पर होती है, जहां पापी भी अपने पाप धोने के लिए आता है, जहां जाने-अनजाने किए गए अपराधों की क्षमा मांगी जाती है ... वहां अपराध को अंजाम दिया जा रहा था और देव प्रतिमा चित्कार कर रही थी। पाप हो रहा था और मंदिर की पवित्रता कलंकित हो रही थी। जब आसिफा का शरीर इस लायक नहीं बचा कि हवस को बुझा सके तो मार डालना ही एक रास्ता था, जाहिर है मार डाला गया और फेंक दिया गया....
10 जनवरी को कठुआ (जम्मू) से 8 साल की मासूम खूबसूरत आसिफा लापता हुई और 7 दिनों बाद उसकी लाश क्षत-विक्षत हालत मिली। पुलिस ने जो चार्जशीट दायर की है, वह जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं...
मंदिर के अंदर बच्ची से बार-बार गैंगरेप किया गया। बलात्कारियों में से एक को मेरठ से नीचता करने के लिए बुलाया जाता है और फिर इस घृणित कृत्य को अंजाम दिया जाता है। दरिंदगी के बाद आसिफा का गला दबाया गया और सिर पर दो बार पत्थर मारा गया, यह तय करने के लिए कि वह मर चुकी है।
कठुआ जिले के गांव रसाना में आसिफा अपने परिवार के साथ रहती थी। बच्ची उस बकरवाल समुदाय से थी जो कठुआ में अल्पसंख्यक हैं। वहां रहने वाले हिंदू परिवारों की बकरवालों से अतिक्रमण की लड़ाई होती रहती है। इन 2 समुदायों के बीच लंबे समय से चल रही दुश्मनी का खामियाजा उस 8 वर्षीया बच्ची को भुगतना पड़ा।
17 जनवरी को जंगल में बच्ची की लाश मिली।
इस पूरे प्रकरण में मुख्य साजिशकर्ता सांजी राम के साथ पुलिसकर्मी दीपक खजुरिया, सुरेंद्र वर्मा, प्रवेश कुमार उर्फ मन्नू, भतीजा और सांजी राम का बेटा विशाल जंगोत्रा उर्फ शम्मा शामिल हुए। जांच अधिकारी तिलक राज और सबइंस्पेक्टर आनंद दत्त भी नामजद हैं जिन्होंने राम से कथित तौर पर 4 लाख रुपए लिए और अहम सबूत नष्ट किए।
सांजी राम उस मंदिर का संरक्षक है जहां आसिफा से दुष्कृत्य हुआ। सबसे ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि गिरफ्तारी के बाद एक खास तबका बलात्कारियों के पक्ष में खड़ा हो गया।
बलात्कार का शर्मनाक सांप्रदायिक राजनीतिक तमाशा बना दिया गया। सच तो यह है कि जब तक हम राजनीति से, अपने-अपने धर्मों से, आसपास से, परिचय से, अड़ोस-पड़ोस से बलात्कारियों को निकाल कर नहीं फेंकेंगे, हम सबकी बेटियां कहीं न कहीं फेंकी हुई मिलेगी...आसिफा की तरह...
मन में झांककर देखें एक बार, बेटियां हम सबकी सांझी होती हैं... जब उन्हें नहीं बचा सकते तो फिर देखिए बेशर्मों की तरह कैसे महाविनाश की धरती तैयार हो रही है और समाज का भविष्य भयंकर रूप से रचा जा रहा है... और हम सब 'मरे' हुए हैं उस समाज में....एक ऐसी सांस लेती लाश, जिसे कुछ भी छुकर नहीं जाता... ना मौत, ना रेप, ना हत्या और ना बेटियां.....