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काशी विश्वनाथ का पुनरुद्धार एक मॉडल बनेगा

काशी विश्वनाथ का पुनरुद्धार एक मॉडल बनेगा - Kashi Vishwanath Temple
वाराणसी के धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व को बताने की आवश्यकता नहीं। गंगा यहीं उत्तरवाहिनी होती है और द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक काशी पुराधिपति भी यहीं हैं। वाराणसी में पिछले करीब 1 वर्ष से ज्यादा समय से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पुनर्निर्माण योजना को लेकर विरोध और समर्थन दोनों सघन हुए हैं।
 
मोदी और भाजपा के सनातन विरोधियों के लिए तो यह सबसे बड़ा मुद्दा था ही, उनके समर्थकों का एक वर्ग भी विरोध में उतर गया। इनका मानना है कि मोदी वाराणसी की जो प्राचीनतम विशेषताएं थीं, उन्हीं को विकास की वेदी पर ध्वस्त कर रहे हैं। इसे राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की भी कोशिशें हुई हैं। मोदी वहां के सांसद भी हैं इसलिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी यह विषय समय-समय पर उछला है।

 
मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री काशी विश्वनाथ धाम का शिलान्यास किया। इसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना कहा गया है। विरोधी आज भी अपने स्टैंड पर कायम हैं। दूसरी ओर मोदी ने संकल्प व्यक्त किया था कि वे वाराणसी के कायाकल्प के साथ विश्वनाथ धाम का भी पुनरुद्धार करेंगे ताकि सोमनाथ की तरह यहां भी श्रद्धालुओं को सुविधाएं सुलभ हों एवं यह तंग गलियों से मुक्त हो सके।

 
वाराणसी भारत के दक्षिण एवं उत्तर दोनों के लिए समान रूप से पवित्र स्थल है। बावजूद सच यही है कि पिछले कम से कम 3 दशकों से वहां जाने वालों को बाधाओं व कठिनाइयों से कदम-कदम पर दो-चार होना पड़ता था। चारों तरफ से बने मकानों-दूकानों के बीच वहां पहुंचना भी सामान्य चुनौती नहीं है। मोदी विरोधियों का तर्क है कि वाराणसी की पहचान गलियों से है और अगर आप उसे ही नष्ट कर देंगे तो यह वाराणसी नहीं होगा।

 
वाराणसी में अनेक छोटे-छोटे प्राचीन मंदिर हैं जिनका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है, जो पुनर्निर्माण योजना की भेंट चढ़ रहे हैं। कहा जाता है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने जब मंदिरों और मूर्तियों को ध्वस्त करना आरंभ किया तो काशीवासियों ने उनको अपने घरों के अंदर छिपा लिया।
 
 
चूंकि पुनर्निर्माण योजना में आसपास के मकानों को हटाना तथा गंगा तट तक सीधे रास्ता बनाना शामिल है इसलिए आरंभ में वहां केवल विध्वंस ही दिखा है। आलोचनाओं और प्रखर विरोधों पर बिना कुछ बोले मोदी अपनी कार्ययोजना पर अडिग रहे तथा अंतत: बहुत सारी बाधाएं हटने के बाद शिलान्यास भी कर दिया। प्रश्न है कि इसे किस तरह देखा जाए?

 
भारत ही नहीं, यहां रुचि रखने वाले पूरी दुनिया की नजरें इस शहर पर हैं। एक ओर विरोधी हैं, तो दूसरी ओर प्रवासी सम्मेलन में आए भारतवंशियों की प्रतिक्रियाएं। जिनके उद्गार बता रहे थे कि उन्होंने सपने में नहीं सोचा था कि इस तरह का वाराणसी उन्हें देखने को मिलेगा। कोई भी वाराणसी बदलाव देख सकता है। स्टेशन या हवाई अड्डे से ही परिवर्तन दिखने लगता है।
 
काशीवासी स्मार्टसिटी बनने के साथ नगर की आध्यामिकता, सांस्कृतिक-पौराणिक धरोहरों और स्मारकों का संरक्षण-संवर्धन चाहते हैं तथा स्वच्छता और पर्यावरण के पैमाने पर भी इसे मानक बनाने का सपना रखते हैं। यह कार्य कितना कठिन है, बताने की आवश्यकता नहीं। कॉरिडोर निर्माण के साथ विश्वनाथ मंदिर को भव्य रूप मिलेगा, मंदिर से गंगा तक जाने और गंगा से स्नान कर मंदिर आना आसान हो जाएगा।

 
शिलान्यास के बाद मोदी ने कहा कि सालों बाद बाबा विश्वनाथ को मुक्ति मिली है। अभी तक बाबा बंद मकानों के बीच जकड़े हुए थे। जो उन मकानों को ही वाराणसी की संस्कृति मानते रहे हैं वे भी गलत नहीं हैं, पर इसमें बदलाव के बगैर उसे विश्व के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्थल में बदलना संभव ही नहीं। जो विरोधियों के लिए गलत है, वही बड़ी संख्या में लोगों के लिए सही दिशा में प्रयाण है।

 
मोदी ने कहा कि काशी विश्वनाथ महादेव मंदिर करोड़ों देशवासियों की आस्था का स्थल है। लोग यहां इसलिए आते हैं कि काशी विश्वनाथ के प्रति उनकी अपार श्रद्धा है। उनकी आस्था को अब बल मिलेगा। जिस तरह से भवनों का अधिग्रहण किया गया, वह बीएचयू के लिए केस स्टडी हो सकती है। यही दो दृष्टिकोण है।
 
जिन भवनों के अधिग्रहण और ध्वंस को विरोधी वाराणसी की पहचान का ध्वंस कहते हैं, वही सरकार के लिए सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहरों के पुनर्निर्माण प्रबंधन की मिसाल है। एक बार पुनर्रचना की वृहत्तर योजना और कार्यों पर संक्षिप्त दृष्टि डालना जरूरी है।

 
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि काशी विश्वनाथ मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को सुगम दर्शन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए श्री काशी विश्वनाथधाम की रचना की जा रही है। काशी विश्वनाथ मंदिर सीधे गंगा नदी से जुड़ेगा। इस मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने वर्ष 1780 में कराया था, तब से समग्र व्यापक और दूरगामी योजना से कुछ किया ही नहीं गया।

 
वाराणसी की संकीर्ण गलियों की चर्चा अनेक रिपोर्टों में है। वर्तमान परियोजना का कुल क्षेत्रफल 39,310.00 वर्ग मीटर है जिसके अंतर्गत कुल 296 आवासीय/ व्यावसायिक/ सेवईत/ न्यास भवन हैं। अब तक करीब 240 भवन खरीदे गए जिनको गिराने के बाद लगभग 21,505.92 वर्गमीटर जमीन उपलब्ध हुई है। 500 से ज्यादा परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है।

 
एक प्राचीन शहर में ऐसे भवनों को खरीदना और खाली कराना आसान नहीं होता। बहुत सारे भवनों के तो मूल मालिक तक का पता नहीं चलता और कभी किराये पर रहने वाले कब्जा जमाए रहते हैं। वाराणसी में विदेशी पर्यटकों के लिए भी इन पुराने भवनों में व्यवस्था थी।
 
इन सारे भवनों के दस्तावेजों को खंगालना, फिर मालिकों और वहां रहने वाले, किराये पर उपयोग करने वालों को खाली करने के लिए तैयार करना- यह सब संभव हुआ तो केवल इस कारण कि एक बार पुनर्निर्माण का लक्ष्य तय हो गया। उत्तरप्रदेश में सरकार भी भाजपा की आ गई। इसके लिए योगी सरकार ने कुछ उपयुक्त अधिकारियों को वहां नियुक्त किया। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर निर्माण के लिए उत्तरप्रदेश सरकार ने 600 करोड़ रुपए मंजूर किए।

 
यहां प्रश्न इन भवनों में स्थित मंदिरों का है। पुराने मकानों को ढहाने के बाद अनेक प्राचीन मंदिर आसानी से दिखाई देने लगे हैं। सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि भवनों को गिराने के दौरान 41 प्राचीन मंदिर पाए गए हैं जिनका उल्लेख धार्मिक पुस्तकों में है। ये सभी मंदिर काशी के प्राचीन धरोहर हैं। यह कहना गलत है कि इनको नष्ट कर दिया गया। इन मंदिरों को भी जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यीकरण योजना का अंग बनाया गया है। ये सारे मंदिर लोगों के दर्शन के लिए उनके पुराने नामों से उपलब्ध रहेंगे। ये सब पूरी परियोजनाओं के अंग हैं।

 
आलोचक जो भी कहें, अब वे मंदिर श्रद्धालुओं के लिए ज्यादा आकर्षक ढंग से सुलभ होंगे। परियोजना में मंदिर प्रांगण का विस्तार कर इसमें विशाल द्वार बनाए जाएंगे तथा एक मंदिर चौक का निर्माण किया जाएगा। इसके दोनों ओर विश्रामालय, संग्रहालय, वैदिक केंद्र, वाचनालय, दर्शनार्थी सुविधा केंद्र, व्यावसायिक केंद्र, पुलिस एवं प्रशासनिक भवन, वृद्ध एवं दिव्यांग हेतु एस्केलेटर एवं मोक्ष भवन इत्यादि निर्मित किए जाएंगे। 330 मीटर लंबाई एवं 50 मीटर चौड़ाई एवं घाट से एलिवेशन 30 मीटर क्षेत्र में निर्माण कराया जाएगा।

 
कहने का तात्पर्य यह कि कॉरिडोर निर्माण के बाद श्री काशी विश्वनाथ मंदिर जकड़न से मुक्त होगा तथा वहां आने वाले करोड़ों देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का आवागमन, वास एवं दर्शन-पूजन पहले की अपेक्षा सुगम होगा। यह एक उदाहरण होगा कि हम अपने धार्मिक स्थलों के सांस्कृतिक स्वरूप को बनाए रखते हुए किस तरह उसका आवश्यकता के अनुरूप समय के सापेक्ष कायाकल्प कर सकते हैं।

 
मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद जापान के आध्यात्मिक शहर क्योटो की यात्रा कर समझने की कोशिश की थी कि एक समय तंग गलियों सहित अनेक नागरिक समस्याओं से ग्रस्त यह शहर कैसे विश्व के लिए आकर्षक तथा नागरिकों-पर्यटकों के लिए निवास व आध्यात्मिक साधना का श्रेष्ठ स्थल बना। वहां के विशेषज्ञों की वाराणसी यात्रा हुई, यहां के लोग वहां गए।

 
वाराणसी की उपग्रह तस्वीरों से एक-एक स्थान का अध्ययन कर पूरे शहर और आसपास के लिए योजनाएं बनीं, उनमें ही काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना भी शामिल है। विरोधों और आलोचनाओं के राजनीतिक जोखिम को समझते हुए भी उसे साकार करने के लिए काम करते रहना साहस का विषय है।
 
शिलान्यास करते हए उन्होंने कहा कि अगर 3 साल के उनके कार्यकाल में राज्य की पिछली सरकार ने सहयोग किया होता तो आज धाम का शुभारंभ होता, शिलान्यास नहीं। विरोध तो हर बदलाव का होता है किंतु बदलाव आवश्यक हो तो उसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होती है। काशी विश्वनाथ परियोजना साकार हो जाने के बाद भारत के साथ दुनिया के लिए भी एक मॉडल बन सकता है। उम्मीद है लोग इसका स्वागत करेंगे।
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