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Written By Author डॉ. अशोक कुमार भार्गव
Last Updated : शुक्रवार, 26 अगस्त 2022 (16:26 IST)

क्या सोशल मीडिया पूर्णत: निरापद है?

Blog on social media
सोशल मीडिया 21वीं सदी की नई ऊर्जा से भरपूर नया चेहरा है जिसने विश्वव्यापी चिंतन के आयामों में परिवर्तन किया है और समाज में बड़े बदलाव की नींव रखी है। नि:संदेह कोई भी परिवर्तन एकपक्षीय नहीं होता और वह हमेशा अपनी तमाम खूबियों व अच्छाइयों के बावजूद अनेक यक्षप्रश्न भी साथ में लेकर आता है।

सोशल मीडिया इसका अपवाद नहीं है। समाज की उन्नति, प्रगति और विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाने के बावजूद सोशल मीडिया पूर्णत: निरापद नहीं है। यद्यपि आज सोशल मीडिया का उपयोग समाज के सभी आयु वर्ग के लोगों द्वारा अपनी अपनी रुचि, जिज्ञासा व इच्छा आदि के उद्देश्यों से वशीभूत होकर घर बैठे ही आभासी दुनिया में सभी समूहों का आपस में संवाद करने, अपने विचारों को एक-दूसरे से साझा कर एक नई बौद्धिक दुनिया को सृजित करने के रूप में बहुलता से किया जा रहा है।
 
प्रसिद्ध संचार वैज्ञानिक मैगीनसन ने कहा था कि संचार समानुभूति की प्रक्रिया है, जो समाज में रहने वाले सदस्यों को आपस में जोड़ती है अर्थात समाज में एक-दूसरे को जानने-समझने और जोड़ने में संचार की अतिमहत्वपूर्ण भूमिका रही है। संचार की यह विकास यात्रा कबूतर से प्रारंभ होकर टेलीग्राफ, चिट्ठी, पोस्टकार्ड, एसटीडी, आईएसडी, प्रिंट मीडिया, रेडियो, टीवी आदि से होती हुई अपने विकास क्रम में आज यह फेसबुक, व्हॉट्सएप, टि्वटर, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम, मैसेंजर, यू ट्यूब, जी-मेल इत्यादि की उन्नत और आधुनिक तकनीक के एक ऐसे लोकप्रिय जनसंचार माध्यम के रूप में वर्तमान में हैं जिसे हम सोशल मीडिया के रूप में जानते हैं और जिसके बिना सहज और सामान्य जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
 
सोशल मीडिया परंपरागत मीडिया का ही आधुनिक संस्करण है जिसका स्वरूप अत्यंत विराट, बहुआयामी, सर्वशक्तिशाली, प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी और चरित्र से जनतांत्रिक है। सामाजिक समरसता, सामाजिक सरोकार, सामाजिक एकजुटता, सामूहिक चेतना और जन आंदोलनों आदि के लिए सोशल मीडिया की उपादेयता वैश्विक स्तर पर मान्य है इसीलिए मीडिया और समाज का रिश्ता अभिन्न है, अटूट है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में यह लोकतंत्र की आत्मा का रक्षा कवच है। जहां प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको मीडिया हाउस का मालिक समझकर अपनी अनुभूतियों, विचारों और भावनाओं को टेक्स्ट, वीडियो फोटो इत्यादि के माध्यम से अभिव्यक्त करता है।
 
वस्तुत: सोशल मीडिया एक मनोरंजक शब्द युग्म है। जनसंचार का यह माध्यम अभिव्यक्ति के विस्तार का एक ऐसा प्रभावी मंच है, जो न सिर्फ समाज के दर्पण होने का दावा मुखर करता है वरन प्रत्यक्षत: प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों को बिना किसी भेदभाव के सार्वजनिक रूप से उजागर करने के अवसर भी उपलब्ध कराता है। इसका नेटवर्क इतना विराट है कि समग्र विश्व को इसने अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया है।
 
संसार का कोई भी क्षेत्र सोशल मीडिया से न तो छूटा है न ही अछूता है। चाहे वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करने का प्रश्न हो या विश्वव्यापी कोरोना महामारी से जंग लड़ने की चुनौती। कला, संस्कृति, साहित्य और खेलकूद को नए आयाम देकर सुव्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने की पहल हो या छोटे से छोटे स्थानों से भी उभरती हुईं प्रतिभाओं, कलाकारों व खिलाडियों को प्रसिद्ध हस्तियां बनने के लिए सार्थक मंच उपलब्ध कराने का अवसर हो। रचनात्मक अभिव्यक्ति में क्रांतिकारी बदलाव नए सौंदर्य की रचना और शिल्प के गठन की समस्या हो अथवा चिंतन-मनन व विमर्श के दायरे को विस्तार देने की युक्ति हो। इस संदर्भ में सोशल मीडिया की उपादेयता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं है। सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी को नए आयाम दिए हैं। महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों और यौन-शोषण की घटनाओं के विरुद्ध 'हैश टेग मी टू' जैसे परिणाममूलक अभियानों के माध्यम से बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की पैरवी गंभीरता के साथ की है।
 
समाज के सतर्क जागरूक और मुस्तैद प्रहरी के रूप में सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका के कारण शासन-प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही, जनहित के मुद्दों पर संवेदनशीलता, प्रशासनिक सक्रियता, सूचनाओं के त्वरित आदान-प्रदान से सामाजिक न्याय और मौलिक अधिकारों को प्राप्त करने के संघर्ष के नए आयाम स्थापित हुए हैं। सोशल मीडिया ने सामाजिक विडंबनाओं, विषमताओं, विद्रूपताओं, अन्याय, शोषण, भ्रष्टाचार, अनीति और अनाचार के विरुद्ध प्रबल मुखरता के साथ आवाज उठाई है। कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पर सकारात्मक दबाव निर्मित कर जनहितैषी योजनाओं के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया है। इस प्रकार सोशल मीडिया ने लोकतंत्र की आत्मा के सुरक्षा कवच के रूप में कार्य कर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ होने की संज्ञा को भी साकार किया है। 'मीडियम इज द मैसेज' अर्थात माध्यम ही संदेश है। सोशल मीडिया ने भौगोलिक सीमाओं से परे रीयल टाइम में सूचनाओं और संवाद का मुक्त संसार निर्मित किया है, जहां सूचनाओं को विलक्षण आजादी के साथ जनतांत्रिक संस्पर्श प्राप्त हुआ है।
 
सोशल मीडिया ने जहां एक और संचार और सूचना साझा करने के अभूतपूर्व अवसर उपलब्ध कराए हैं, वहीं दूसरी ओर शिक्षा, ज्ञान एवं मनोरंजन के बहुआयामी विकल्प प्रस्तुत कर समाज के समय श्रम और धन की बचत के साथ रोजगार के अवसरों का विस्तार किया है। संवेदनशील, प्रासंगिक और ज्वलंत मुद्दों पर मित्रों की त्वरित टिप्पणियों और अपने सहयोगियों के विचारों को शीघ्रता से जानने-समझने और साझा करने का मंच दिया है।
 
पिछले दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका में एक अफ्रीकी-अमेरिकी युवक की मौत कारित होने पर प्रतिरोध के जनसैलाब को आंदोलित करने में सोशल मीडिया की केंद्रीय भूमिका रही है। सोशल मीडिया ने अरब देशों में क्रांति जिसे 'अरब स्प्रिंग' भी कहते हैं, जहां निरंकुश शासन व्यवस्था में जनता की आवाज को रौंदा जाता था, राजशाही और सैन्य शक्ति के प्रभाव में मुख्य मीडिया सामाजिक समस्याओं के मुद्दों को महत्व नहीं देता था, वहां नाइंसाफी के विरुद्ध क्रांति का जुनून सृजित कर लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त करने तथा इजिप्ट और ट्यूनीशिया में दशकों बाद चुनाव संपन्न कराने में सोशल मीडिया ने सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
 
वाक और अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र की आत्मा है। सोशल मीडिया ने समाज को सशक्त कर आजादी के इस अधिकार के उपयोग का विस्तार किया है जिसकी हम पूर्व में कल्पना भी नहीं कर सकते थे। लोगों का तीव्र गति से सामाजिकरण, जनमत निर्माण, ज्ञान का विस्तार, सूचनाओं का फैलाव, उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के लिए लाभकारी अवसरों की उपलब्धता, समाज के उपेक्षित, शोषित, पीड़ित, वंचित वर्गों की आवाज, जो कभी नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती थी। जो समाज की मुख्य धारा से जुड़ने का स्वप्न भी नहीं देख पाते थे, सोशल मीडिया ने उन पीड़ितों की आवाज को बुलंद किया है। उनके दर्द, उत्पीड़न और व्यथा को सार्वजनिक रूप से उजागर कर व्यवस्था और तंत्र पर सकारात्मक बदलाव के लिए दबाव समूह के रूप में कार्य किया है।
 
आज हालात ऐसे हैं कि दुनियाभर में अधिकांश लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कारोबार, कला संस्कृति, साहित्य, व्यवसाय, मौसम, पर्यटन, शॉपिंग इत्यादि की जानकारियां सोशल मीडिया के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं। आज हम एक ऐसी दुनिया में निवास कर रहे हैं, जहां हम सूचना के न केवल उपभोक्ता हैं, वरन उत्पादक भी हैं। नि:संदेह सोशल मीडिया ने शिक्षा के लोकव्यापीकरण, मार्केटिंग, सामाजिक विकास, समान विचारधारा के लोगों को आपस में संपर्क स्थापित करने, विज्ञापनों के प्रभावी संसार को सृजित करने, अपने विचारों, सामग्री और सूचना को तीव्र गति से साझा करने तथा बाजार की मानसिकता के अनुरूप परिवर्तन आदि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
 
सोशल मीडिया ने बदले हुए परिवेश में खबरों का लोकतांत्रीकरण किया है। खबरें और सूचनाएं अब किसी की बंधक नहीं हैं। गुलाम नहीं है। वे उन्मुक्त हो गई हैं। आजाद हो गई हैं और पक्षियों की तरह बुलंद आसमान में उड़ान भर रही हैं। किसी भी विषय विशेष और ज्वलंत मुद्दों आदि पर लोगों की प्रतिक्रिया जानने, रायशुमारी करने, आम राय कायम करने, ब्रांडिंग करने, किसी नेक कार्य के लिए कोष को एकत्रित करने, किसी खास मकसद के लिए त्वरित भीड़ (फ्लैश मोब) एकत्रित करने, अनेक जन आंदोलनों को कामयाब बनाने, राष्ट्रभक्ति, समाजसेवा के प्रति चेतना जागृत करने और समाज का नेतृत्व, मार्गदर्शन एवं प्रेरणा देने का कार्य भी सोशल मीडिया ने बड़ी जिम्मेदारी के साथ सफलतापूर्वक किया है।
 
जहां एक और सोशल मीडिया के पक्ष में उत्कृष्ट और सराहनीय कार्यों की एक लंबी श्रृंखला है तो वहीं दूसरी ओर सामाजिक सद्भाव के ताने-बाने को नफरत और हिंसा की आग में झुलसाने वाले कथित भड़काऊ संदेशों, घृणा और विद्वेष फैलाने वाले भाषणों, वीडियो, अफवाहों, फेक न्यूज़ व हेट स्पीच की बाढ़ ने सोशल मीडिया की विश्वसनीयता, निष्पक्षता और प्रामाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। सोशल मीडिया के कतिपय माध्यम ऐसे भी हैं, जो 'जिसकी देखें तवे परात, उसकी गावें सारी रात' की तर्ज पर कार्य कर राजनीतिक दलों के हितार्थ नैतिक मूल्यों और आदर्शों को तिरोहित कर अपने निजी स्वार्थों के लिए किसी की भी छवि विकृत कर उनका चरित्रहनन अथवा चरित्र हत्या कर रहे हैं।
 
दुनिया के अनेक लोकतांत्रिक देशों की सम्प्रभुता के लिए ट्रोल आर्मी और टुकड़े-टुकड़े गैंग के उत्पातों ने गंभीर खतरा पैदा किया है। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए मॉब लिंचिंग की दहलाने वाली घटनाएं भी चिंता का विषय हैं। जहां आभासी दुनिया में किसी व्यक्ति के बारे में मनगढ़ंत झूठी, भ्रामक अफवाहें, जानकारियां व सूचनाएं इत्यादि फैलाकर अपराधी सिद्ध किया जाता है। फलस्वरूप अनियंत्रित हिंसात्मक भीड़ उस व्यक्ति की सरेआम मार-मारकर हत्या कर देती है।
 
इस तरह की देश में बढ़ रहीं घटनाओं को संज्ञान में लेते हुए जनहित याचिका में देश की सर्वोच्च अदालत ने सरकार को यह निर्देशित किया है कि सोशल मीडिया पर इस तरह की गैरकानूनी व गैरजिम्मेदाराना हरकतों को नियंत्रित करने के लिए कठोर कानूनों का निर्माण करना चाहिए जिसमें भीड़तंत्र को नियंत्रित करने के लिए कारगर और प्रभावी उपचार तथा आवश्यकतानुसार सख्त दंडात्मक उपायों का प्रावधान होना चाहिए। अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह भी निर्देशित किया कि इस संबंध में वे जवाबदेह नोडल अधिकारी को नियुक्त करें और की गई कार्यवाही का व्यापक प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया के माध्यम से करना सुनिश्चित करें।
 
सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग नशे से भी ज्यादा घातक और दुष्प्रभावी है। यह व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, वहीं उसके मस्तिष्क को अवसाद, तनाव, बेचैनी, व्याकुलता और नकारात्मक सोच से ग्रसित करता है। यूजर्स को सोशल मीडिया एक तरह से 'प्रोग्राम्ड' कर उनमें हर चीज पर सामाजिक प्रतिक्रिया की इच्छा में वृद्धि कर कुंठा से भरता है अर्थात उसकी पोस्ट को कितने लोगों ने देखा, कितनों ने कमेंट किया, कितनों ने लाइक किया? यह मानसिक दबाव मोबाइल को ही घर बना देता है और जिसका स्मरण शक्ति, चिंतन शक्ति और आत्मविश्वास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सामाजिक संबंधों में दरार, रिश्तों में धोखाधड़ी, मनमुटाव और दूरियां बढ़ाता है।
 
सोशल मीडिया ने अश्लीलता, अभद्रता, पोर्नोग्राफी, विकृत नग्नता, उन्मुक्त और अमर्यादित अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित किया है। उपभोक्ताओं की सूचना का अनधिकृत उपयोग भी किया है। यह मीडिया साइबर अपराध के रूप में नए-नए छल-प्रपंच जैसे हैकिंग और फिशिंग, साइबर बुलिंग, फेक न्यूज़, हेट स्पीच, निजी डेटा चोरी, गोपनीयता भंग करने और निजता के अधिकार का उल्लंघन करने के लिए भी उत्तरदायी है।
 
नि:संदेह खबरों की दुनिया में सोशल मीडिया की अहमियत बढ़ी है और उसका कद आदमकद हुआ है। अत: सोशल मीडिया की बेपनाह मकबूलियत को देखते हुए न तो इसे सिरे से खारिज किया जा सकता है और न ही पूर्णत: निरापद माना जा सकता है। वस्तुत: इसके उपयोग के लिए एक संतुलित मानक प्रचालन प्रक्रिया और आदर्श आचरण संहिता की आवश्यकता है जिसके पालन का दायित्व एकांगी न होकर सामूहिक होना चाहिए। यद्यपि इस दिशा में सोशल मीडिया की स्वेच्छाचारिता और उसके क्रियाकलापों पर विनिमयन के लिए देश में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 तार (टेलीग्राफ) अधिनियम 1885 जैसे कानून उपलब्ध हैं जिनका सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है। यद्यपि इन कानूनों में समुचित और पर्याप्त निवारक तंत्र उपलब्ध नहीं है।
 
अत: सरकार, समाज और प्रौद्योगिकी कंपनियों को मिलकर ऐसे कारगर और परिणाममूलक उपायों को विकसित करना चाहिए ताकि अवांछित और अराजक तत्वों को हतोत्साहित किया जा सके, सोशल मीडिया कंपनियों की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके, सोशल मीडिया को संवैधानिक मूल्यों और आदर्शों के प्रति प्रतिबद्ध बनाया जा सके और यह अपने पवित्र स्वरूप में सामाजिक सरोकारों से संबद्ध रहकर भविष्य में भस्मासुर बनने की हिमाकत न कर सके। इसलिए सोशल मीडिया पर सेंसरशिप के लागू करने के स्थान पर निजता के अधिकार का उल्लंघन किए बिना नए विकल्पों की खोज आवश्यक है।
 
हाल ही में देश के केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने फेसबुक व व्हॉट्सएप को नोटिस भेजकर फर्जी खबरों को रोकने के लिए कानूनी कार्यवाही प्रारंभ की है। फेसबुक से भारतीयों के निजी डाटा चुराने के आरोप में कैंब्रिज एनालिटिका और ग्लोबस साइंस के खिलाफ खुफिया एजेंसी द्वारा प्रारंभिक जांच शुरू की गई है। व्हॉट्सएप ने फर्जी खबरों की पहचान के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम को महत्व दिया है। यह सही है कि सूचनाओं की सत्यता व स्तरीयता जानने-समझने की कोई छलनी या सार्थक युक्ति अथवा सटीक पैमाना या मापदंड हमारे पास उपलब्ध नहीं है। इसलिए अहितकर, विवादास्पद, धार्मिक उन्माद, जातिगत भेदभाव, घृणा और नफरत फैलाने वाली झूठी खबरें लोगों तक पहुंच रही हैं।
 
अत: सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं से यह अपेक्षा है कि सप्ताह में कम से कम 1 दिन सोशल मीडिया से दूरी बनाने का संकल्प लें। समाज में शांति, सौहार्द, सौजन्य, सद्भाव, मैत्री व बंधुता की भावना विकसित करने के लिए संवेदनशील, जवाबदेह, सावधान और जागरूक रहें। खासतौर से सामाजिक तनाव, संघर्ष, मतभेद, युद्ध व दंगों आदि के समय अत्यंत मर्यादित और संयमित तरीके से काम करने की महती आवश्यकता होती है, क्योंकि समाज पर सोशल मीडिया का प्रभाव अत्यंत गहरा और व्यापक होता है।
 
उम्मीद है कि भविष्य में इसके परिणाम सुखद और सकारात्मक होंगे!
 
(लेखक डॉ. अशोक कुमार भार्गव, आईएएस (पूर्व सचिव मप्र शासन), प्रशासकीय (सदस्य) जीआरए नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, भोपाल हैं।)
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)
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