गुरुवार, 23 जनवरी 2025
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. Hindi Blog On Ana hazare Lokpal Bill

2019 और भ्रष्टाचार, दो जादूगरों में होगी आर-पार

2019 और भ्रष्टाचार, दो जादूगरों में होगी आर-पार - Hindi Blog On Ana hazare Lokpal Bill
तो क्या देश में फिर एक बड़े आंदोलन की तैयारी हो चुकी है? राजनीतिक गलियारों में इस गुफ्तगू ने 2 अक्टूबर से खासा जोर पकड़ रखा है जब अन्ना हजारे महात्मा गांधी की समाधि स्थल पर आए और घंटों मौन व्रत पर रहे। हालांकि यह पहला मौका भी नहीं है जब अन्ना के फिर से आंदोलन के कयास लगाए जा रहे हों। हां, अन्ना ने जहां संकेतों में आंदोलन से इंकार नहीं किया वहीं इस बार कौन साथ होगा इसको लेकर फिलाहाल कयास ही लगाए जा सकते हैं। पुराने साथियों पर भरोसा नहीं और नए अभी तक जोड़े नहीं।
 
दरअसल लोकपाल को अमल में ना लाने से नाराज अन्ना ने प्रधानमंत्री मोदी को कई चिट्ठियां लिखीं। संतोषजनक जवाब भले ही एक न मिला हो लेकिन 2011 में आंदोलन के दौरान कांग्रेस सरकार को झुकते देखने वाले अन्ना के दिमाग में 27 अगस्त 2011 का दिन हमेशा कौंधता होगा क्योंकि केन्द्र और राज्यों में लोकपाल के साथ ही सिटीजन चार्टर जैसे जरूरी मुद्दों पर कानून बनाने का संसद में प्रस्ताव जो पारित हुआ था। लेकिन मामला आगे बढ़ पाता कि 2014 आ धमका और मोदी लहर ने कांग्रेस को विदा ही नहीं किया बल्कि पूरा लोकपाल ठंडे बस्ते में भेज दिया। अन्ना बखूबी समझते हैं कि लोकपाल पर मौजूदा सरकार गंभीर नहीं है, क्योंकि खुद के एजेंडे पर चलने वाले प्रधानमंत्री ने लोकपाल को वो तरजीह नहीं दी जैसा अन्ना चाहते थे। सबको पता है कि चौंकाने वाली कार्यशैली और नित नए सूत्रों को ईजाद करना मोदीजी की खासियत है। ऐसे में भला अन्ना और उनका लोकपाल मोदी सरकार की सूची में क्यों होंगे! करिश्माई अंदाज में नोटबंदी और देश की बिगड़ी हुई तसवीर को जीएसटी की तदबीर से बदलने के जादुई दावों के उलट मौजूदा असल आंकड़ों ने अब जरूर सरकार को चिंता में डाल दिया होगा। ऐन गुजरात चुनाव के पहले लगातार आर्थिक मंदी की सुर्खियां, रिजर्व बैंक का वित्तीय वर्ष 2018 के लिए आर्थिक विकास का अनुमान पहले के मुकाबले घटाकर 6.7 लगाना, जीएसटी पर मजबूरन नरमाई और कुछ राहत पैकेजों की सौगात से क्या मिलेगा क्या नहीं, इसकी चीरफाड़ जारी है। साथ ही हालिया राज्यसभा चुनाव में, गुजरात में लाख कोशिशों के बाद भी अहमद पटेल की जीत ने भाजपा को तगड़ा झटका दिया। उधर गुजरात में पाटीदार आरक्षण का सुलगता मसला, हार्दिक पटेल की बढ़ती सक्रियता, राहुल के लगातार दौरे के बीच अब करिश्माई जादूगर नरेन्द्र मोदी को अन्ना का भावी आन्दोलन उनसे भी बड़ी बाजीगरी और चुनौती लग रहा होगा। 
 
निश्चित रूप से दो जादूगरों के पेंच में 2019 के चुनाव का परिदृश्य भी कुछ अलग-थलग सा होता दिख रहा है। इधर अन्ना भी बड़ी साफगोई से कहते हैं कि वो तब राजनीतिज्ञों की भूख को समझ नहीं पाए थे। लेकिन अब काफी कुछ देखा, सीखा जरूर है। अन्ना का इशारा ही काफी है कि इस बार ऐसी चूक नहीं होगी। मतलब यह तय है कि केजरीवाल एण्ड कंपनी की टीम उनके साथ नहीं होगी। तो सवाल यही कि साथ होगा कौन?
 
नए साथियों की जरूरत तो अन्ना को भी होगी पर वो कौन होंगे? कहीं ये कांग्रेस और वामदल तो नहीं? राजनीति में सब कुछ संभव है। अन्ना भी भरोसा के सिवा कर ही क्या सकते हैं क्योंकि बदले हालात में उनके लिए पहले की अछूत कांग्रेस ही अब मुफीद दिख रही है जिसने दबाव में सही संसद में लोकपाल पर कुछ तो किया। हाल ही में कई कांग्रेसी नेताओं की उनसे मुलाकात यही इशारा है। लेकिन क्या केन्द्र सरकार, वह भी मोदी सरकार इतनी आसानी से अन्ना के जादू को देखने तैयार होगी? शायद नहीं, क्योंकि दो जादूगर एक दूसरे के लिए चुनौती होते हैं पर्याय नहीं। हां, माकूल रणनीति और दूर की कौड़ी फेंकने में भाजपा का फिलाहाल कोई सानी नहीं है। विरोधियों से रणनीतिक तौर पर निपटना मोदी और अमित शाह को टीम को बखूबी आता है। गोवा विधानसभा चुनाव, केरल में वामपंथी सरकार को उसी के गढ़ में ताजा चुनौती, प.बंगाल में ममता से सीधी टक्कर जैसे कई मुद्दों पर मोदी सरकार की विरोधियों पर आक्रामक कार्यशैली से अन्ना हजारे चिंतित जरूर होंगे। साथ भी यह भी कि 2011 से अब तक यानी बीते 6 सालों से लटका लोकपाल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपनी लगातार भृष्टाचार विरोधी
मुहिम का अंर्तद्वन्द कहीं न कहीं अन्ना के मन में जरूर होगा। देश में लोकप्रियता का रिकॉर्ड और विश्व में तेजी से अपना स्थान बनाए प्रधानमंत्री मोदी की आकर्षक और वाकपटु कार्यशैली फिलाहाल तो भारी है। फिर भी गुजरात विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद ही यह तय हो पाएगा कि अन्ना के जादू का रूप क्या होगा और ऊंट किस करवट बैठेगा?