मंगलवार, 5 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. Four major strikes
Written By

मोदी सरकार के 4 साल में 4 बड़ी हड़तालें

मोदी सरकार के 4 साल में 4 बड़ी हड़तालें। Four major strikes - Four major strikes
- एमएम चन्द्रा 
 
मोदी सरकार के 4 साल पूरे होने के जश्न में जहां मोदी सरकार विज्ञापन और प्रचार पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, वहीं देश की एक बड़ी आबादी अपने हक हकूक के लिए आंदोलन कर रही है। सरकार की वित्तीय नाकामी अब किसी से छिपी नहीं रह गई है। जैसे ही सरकार देश की अर्थव्यवस्था के ठीक होने का नगाड़ा बजाती हैं, तुरंत उसी समय कोई न कोई ऐसी खबर आ जाती है, जो सरकार की पोल खोल देती है।
 
अभी ताजा उद्धरण देना ज्यादा मुफीद नजर आ रहा है। अभी देशभर में किसान आंदोलन थमा भी नहीं था कि 90 लाख ट्रक चालक हड़ताल पर चले गए हैं। जबसे मोदी सरकार देश में बनी है, यह कोई पहली हड़ताल नहीं है। पूरे 4 साल में ट्रक चालकों 4 बड़ी हड़तालें हो चुकी हैं। न सिर्फ सरकार बार-बार अपने वादे से पीछे हटी है, बल्कि निरंतर सरकार की विश्वसनीयता घटी है। 
 
वर्तमान सरकार द्वारा देश की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा बदलाव नोटबंदी के रूप में आया जिसका हमला आम जनता से लेकर व्यापार जगत तक देखा गया। अब उसके परिणाम भयानक रूप से हमारे सामने आ रहे हैं। जिन वजहों से नोटबंदी की गई थी, वे तमाम समस्याएं बड़े पैमाने पर पुन: होने लगी हैं। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि बैंक प्रणाली अपने सबसे बुरे दौर गुजर रही है। रही-सही कसर जीएसटी के लागू होने निकल गई।
 
नोटबंदी और जीएसटी के बाद सरकार की आर्थिक नाकामी एक के बाद एक सामने आ रही है। 2017 में भी माल एवं सेवाकर (जीएसटी), डीजल कीमतों में वृद्धि, सड़क पर उत्पीड़न को लेकर ट्रक परिचालकों की 2 दिवसीय हड़ताल को कौन भूल सकता है जिसमें देशभर के 93 लाख ट्रक ऑपरेटर और अन्य ट्रांसपोर्टर सरकार की नीतियों की वजह से हड़ताल कर चुके हैं। पिछले 9 महीने में ट्रक चालकों की यह दूसरी बड़ी हड़ताल है।
 
2017 में ट्रक चालकों की यह पहली हड़ताल नहीं थी। इससे पहले भी मार्च 2017 में भी 'पथ परिवहन एवं सुरक्षा विधेयक अधिनियम 2016' को वापस लेने को लेकर हड़ताल हो चुकी है। इसके बाद अप्रैल महीने में भी 'बीमा कंपनियों द्वारा थर्ड पार्टी इंश्योरेंस में 40 प्रतिशत की वृद्धि' के विरोध में भी ट्रक चालक हड़ताल कर चुके हैं।
 
इस संकट को समझने के लिए यह भी इंगित करने वाली बात है कि 2015 में भी ट्रक परिचालक मौजूदा टोल प्रणाली को खत्म करने और टैक्स के 'एकमुश्त' भुगतान समेत कई मांगों को लेकर आंदोलन कर चुके हैं। उस समय तो यहां तक कह दिया गया था कि 'हम हड़ताल पर जा रहे हैं। राजमार्ग मंत्री ने जिस इलेक्ट्रॉनिक टोल प्रणाली की पेशकश की है वह समाधान नहीं है, क्योंकि सरकार की ई-टोलिंग परियोजना एक विफल अवधारणा है। यहां तक कि प्रायोगिक परियोजना ही विफल रही।'
 
ट्रक चालकों की समस्याएं कोई नई नहीं हैं लेकिन लगातार उनकी मांगों को अनसुना किया जा रहा है। आग में घी डालने का काम जेटली ने यह कह कर किया कि डीजल-पेट्रोल में कोई रियायत नहीं मिलेगी।
 
यह सिर्फ भारत देश में ही संभव हो सकता है, जहां नेताओं की तुनकमिजाजी, अंधविश्वास और तानाशाही व लफ्फाजी सिर्फ आम जनता के खिलाफ चलती है और वह बड़े-बड़े पूंजीपतियों के सामने घुटने टेकती नजर आती है। वर्ना अभी पिछले महीने ब्राजील में हुए पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ आंदोलन के कारण ब्राजील सरकार को ट्रक चालकों के सामने झुकना पड़ा था और उसे डीजल के दाम घटाने पड़े थे। यही नहीं, ब्राजील के राष्ट्रपति मिशेल टेमर ने ट्रक चालकों की हड़ताल खत्म कराने के लिए न सिर्फ डीजल की कीमतों में कटौती का ऐलान किया कि बल्कि यह घोषणा भी की कि यह कटौती अगले 60 दिनों तक जारी रहेगी।
 
भारत सरकार जनता के साथ कम और अपने पूंजीपति आकाओं के साथ बड़ी मुस्तैदी और ईमानदारी से खड़ी है। वह कीमत ज्यादा बढ़ाती है और कीमत घटाने के नाम पर 1 पैसा या 10 पैसा घटाकर जनता के साथ भद्दा मजाक करने से भी नहीं चूकती है। जिस देश में रोजी-रोजगार को लेकर युवा सड़कों पर लाठी खा रहे हैं, जिस देश में जल, जंगल और जमीन के आंदोलन को सरकार दमन से कुचल रही हो, ऐसे देश में जनता की एकजुटता ही विकल्प बन सकती है, क्योंकि विपक्ष तो सड़कों से गायब ही है!
 
ये भी पढ़ें
शासकीय आदेश पर हस्ताक्षर के साथ ट्रंप की प्रवासी नीति में बदलाव