पिछले तीस वर्षों से जीवन बीमा और साधारण बीमा कंपनियों में बीमा सलाहकार के रूप में कार्य कर रहा हूँ, और इन तीस वर्षों में मुख्य रूप से यही सीखा है कि हर इंसान को जीवन में हर परिस्थिति में सकारात्मक सोच के साथ रहना चाहिए। सकारात्मक विचारधारा वाले लोगों से ही मेलजोल रखना चाहिए और नकारात्मक विचारधारा वाले लोगों से हमेशा दूर रहना चाहिए....
क्योंकि एक सकारात्मक विचार वाला व्यक्ति दस लोगों को हिम्मत दिला सकता है परंतु एक नकारात्मक विचार वाला व्यक्ति अपने साथ अनेक लोगों के मन में डर पैदा कर सकता है।
इसी वजह से मैने जब से होश संभाला तब से ही अपने आप को सकारात्मक राह पर चलाने का प्रयास करता रहा हूँ, और एक ऐसे प्रोफेशन में अपने आप को सफल कर पाया हूँ जिसमें सफलता का आंकड़ा बहुत कम है वह इसलिए इस कार्य में सफलता बहुत धीमी गति से मिलती है, और व्यक्ति को लंबे समय तक संयम और एकाग्रता से साथ काम करना होता है ।
मेरे इसी स्वभाव की वजह से मुझे 2020 के आखरी महीने में एक लड़ाई में विजय मिली, और वह लड़ाई थी कोरोना वायरस के साथ। मैंने कोरोना से जीवन की जंग जीती।
एक दिन जब मैं ऑफिस से आने के बाद बाथरूम से नहा कर निकला तो जीवनसंगिनी ने छूकर पूछा आपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या पूरा शरीर तप रहा है और तुरंत थर्मामीटर से चेक किया तो बुखार करीब 101 के आसपास आया। उन्होंने मुझे तुरन्त आइसोलेट किया । समय ज्यादा होने की वजह से सवेरे डॉ साहब को दिखाने का निर्णय लिया और मैं भोजन कर दवाई लेकर सो गया। सुबह जाकर डॉक्टर साहब को दिखाया तो उन्होंने वायरल फीवर बताकर तीन दिन की दवाई दी, दवाई पूरी ली पर फिर भी बुखार 99 से कम नहीं हो रहा था। दवाई बदली पर बुखार ज्यो का त्यों । हमने कोविड टेस्ट करवाने का निर्णय लिया । शाम को कोविड टेस्ट करवाया और सुबह मोबाइल पर पॉजिटिव रिपोर्ट प्राप्त हुई ।
मैंने जीवनसंगिनी से कहा अब चौदह दिन तुम सब लोगों से अलग कमरे में एकांत रहने का संदेश आया है मोबाइल पर तो जीवनसंगिनी और मेरी बेटी ने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है जाओ चौदह दिन का समय दिया आपको पर पन्द्रहवें वे दिन डायनिंग टेबल पर साथ में बैठकर खाना खाएंगे।
दिनभर आराम से गुजरा भोजन किया दवाई ली सब कुछ ठीक था रात के भोजन के बाद किसी दवाई का कुछ ऐसा असर हुआ कि सारा भोजन बाहर आ गया। डॉक्टर साहब को फोन किया तो उन्होंने कहा इनको भर्ती करवा दो।
कुछ देर में मेरे साले साहब और उनकी धर्मपत्नी हमारे घर आए और मुझे अस्पताल ले जाने की तैयारी करने लगे, मेरा मन अस्पताल जाने का बिलकुल नहीं था परंतु सभी का यह विचार हुआ कि रात के समय घर पर रहने के बजाय अस्पताल में रहना बेहतर होगा और हम लोग अस्पताल पहुँचे ।
मैने कहा एडमिट होना है तो रिसेप्शन वाले का सवाल था पेशेंट कहाँ है, मैंने कहा में खुद पेशेंट हूँ , उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था बोला आप पेशेंट हो तो आप गाड़ी से क्यों उतरे, मैंने कहा मुझे ऐसी कोई परेशानी महसूस नहीं हो रही है, उन्होंने ड्यूटी डॉक्टर को बुलाया और मेरा ऑक्सीजन लेवल चेक किया जो 97 आ रहा था ड्यूटी डॉ . बोले आप की स्थिति भर्ती होने वाली नहीं है घर पर ही आराम करें मैंने कहा नहीं हमारे डॉ साहब ने भर्ती होने की सलाह दी है ।
उसके बाद उन्होंने हमारे सामने रेट लिस्ट रख दी कि यह प्रतिदिन का खर्च रहेगा देख लीजिये, मैंने कहा प्रायवेट रूम दे दीजिये । प्रायवेट रूम इसलिए लिया कि अन्य कोविड मरीजों से संक्रमण न लग सके ।
उसके बाद वार्ड बाय व्हील चेयर लेकर आया और बोला बैठिये मैंने कहा मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है में स्वयं चलकर जा सकता हूँ और मैंने अपने कक्ष की ओर कदम बढ़ाए।
उसके कुछ देर बाद जब सिस्टर आई और चेकअप किया तो उनके सवालों से मैं आश्चर्यचकित रह गया, उन्होंने पूछा आपको शुगर कब से है, मैंने कहा सिस्टर मुझे किसी भी प्रकार की कोई बीमारी नहीं है और मेरे जन्म के 50 वर्षों बाद सिर्फ 1 दिन के लिए आज पहली बार अस्पताल आया हूँ ।
जब मेरे अंदर इतना आत्मविश्वास देखा तो जो स्टाफ मुझे पहले डराने का प्रयास कर रहा था वही स्टाफ अगले दिन से मुझे यह कहने लगा कि सर आप तो फिट लग रहे है आप क्यों भर्ती हो गए हैं।
इसी तरह मैंने वहाँ 24 घंटे का समय आराम के साथ गुजारा और अगले दिन सुबह ड्यूटी डॉ से कहा कि मैं घर जाना चाहता हूं पहले नहीं माने पर मेरे दबाव देने पर बोले आपके घर मे अटैच लेटबाथ वाला अलग से कमरा है जहाँ आप परिवार से अलग रह सकते हैं, मेरे हॉं कहने पर डॉ साहब ने मेरी छुट्टी करने का आदेश दे दिया। ये जो भी घटित हो रहा था उससे मैंने एक बात तो सीख ही ली थी कि अगर वायरस से जीतना है तो लड़ना होगा।
मैं अस्पताल से घर आ गया और आइसोलेट हो गया। खुद को जीत की और अग्रसर किया ।
मैं रोज जैसे ऑफिस के लिए तैयार होता था वैसे ही तैयार हो कर अपना लेपटॉप खोलकर घर में ही ऑफिस चालू कर लिया, ऑनलाइन पूरा काम किया, समय अनुसार भोजन व अपनी दवाइयां टाइम टू टाइम लेता रहा, और अपने आप को कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि मैं बीमार हूँ, मैंने सिर्फ यह सोचा कि यह मेरे जीवन की एक परीक्षा है कि मुझे इस कमरे में रहकर ही अपनी सभी जिम्मेदारियां निभाना है, मेरा और मेरे व्यसाय से जुड़े सभी लोगों के काम मुझे इसी कमरे में रहकर पूर्ण करवाना है जो भलीभांति करके में 14 दिन बाद स्वस्थ होकर फिर अपनी नियमित दिनचर्या में आ गया ।
इन चौदह दिनों में मैने पहली बार महसूस किया कि ईश्वर ने मुझे यह समय चिंतन के लिए दिया है, जब से मैंने होश संभाला तब से लेकर उस समय तक जीवन में मैंने क्या अच्छा किया और क्या मुझसे गलती हुई इस विषय पर चिंतन किया और निर्णय लिया कि अच्छा करता आया हूँ उसे इसी प्रकार करता रहूंगा और गलतियां की है उन्हें दोबारा अब कभी नहीं करूंगा ।
सच कहूँ तो इस वायरस ने मुझमें आत्मबल , दृढ़ इच्छाशक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया। मेरा परिवार मेरी ताकत बना। मैंने नकारात्मक खबरों से खुद को दूर रखा। मैं फिर कहना चाहता हूँ कि अगर जीतना है तो लड़ना होगा। हार मानकर बैठना नहीं है, डरना नहीं है , घबराना नहीं है बस हिम्मत दिखाइए और वायरस को मार भगाइए।