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ईवीएम पर बावेला का सच

ईवीएम पर बावेला का सच - Bawela Says About EVM
अवधेश कुमार
जब बसपा प्रमुख मायावती ने चुनाव परिणाम में तस्वीर स्पष्ट होने के साथ अपनी पार्टी की पराजय और भाजपा की विजय के लिए ईवीएम यानी ईलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर सवाल उठाया, तो आम प्रतिक्रिया यही थी कि इसे कोई पार्टी गंभीरता से नहीं लेगी। इतने समय से ईवीएम से मतदान हो रहे हैं और उन परिणामों को भी देश ने स्वीकार किया है।

चुनाव आयोग की निष्पक्षता, निगरानी और सतर्कता पर पूरे देश को विश्वास है। इसे ध्यान में रखते हुए माना गया कि मायावती अपनी बुरी हार को सहन नहीं कर पा रहीं हैं, इसलिए वो ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगा रहीं हैं। किंतु कुछ समय के बाद अखिलेश यादव ने भी कह दिया कि अगर बसपा प्रमुख ऐसा कह रहीं हैं, तो कुछ सोच समझकर ही कह रही होंगी। इसलिए इसकी एक बार जाचं हो जानी चाहिए। उसके बाद कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस चुनाव परिणामों को तो स्वीकार कर रही हैं, लेकिन बसपा की नेता ने अगर कहा है तो उसका संज्ञान लिया जाना चाहिए।
 
हालांकि कांग्रेस ने बाद में इस पर जोर नहीं दिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसमें कूदे और साफ आरोप लगा दिया कि ईवीएम के माध्यम से उनकी पार्टी के वोट अकाली और कांग्रेस को स्थानांतरित करा दिए गए। उनके अनुसार ऐसा नहीं होता तो आप की विजय सुनिश्चित थी। उन्होंने निर्वाचन आयोग से दिल्ली की नगर निकायों का चुनाव मतदान पत्रों से कराने की मांग की। यह बात अलग है कि दिल्ली राज्य चुनाव आयोग ने दिल्ली सरकार को बता दिया है कि नगर निगम चुनाव ईवीएम से ही होंगे।
 
वास्तव में ईवीएम पर जब भी सवाल उठाए गए, चुनाव आयोग का यही मत रहा है कि ईवीएम से किसी तरह की छेड़छाड़ संभव नहीं। यह बिल्कुल सुरक्षित मतदान का यंत्र है। इस बार भी मयावती के पत्र के जवाब में आयोग ने साफ किया है कि आपके आरोप स्वीकार करने योग्य नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि ईवीएम को पहली बार कठघरे में खड़ा किया गया है। 2004 से इसका व्यापक प्रयोग आरंभ हुआ और तभी से इस पर प्रश्न उठाए जाते रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने अनेक बार कहा है कि जिसे आशंका है, वो आकर तकनीकी रुप से हमें बताएं कि इसमें छेड़छाड़ कैसे की जा सकती है। लेकिन कोई आयोग तक इसके लिए गया नहीं। हां, दावे जरुर किए जाते रहे। ईवीएम को खलनायक मानने वालों में भाजपा भी रही है। 2009 के लोक सभा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा ने इसके खिलाफ एक प्रकार का अभियान चलाया था। किरीट सौमैया ने कई शहरों में इसका प्रदर्शन किया था, जिसमें उनके साथ एक विशेषज्ञ कम्प्यूटर-लैपटॉप पर दिखाता था कि ईवीएम में कैसे गड़बड़ी की जा सकती है। 
 
भाजपा के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ईवीएम पर डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट अवर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन शीर्षक से एक किताब लिखी। इसकी भूमिका लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी थी। इस किताब में ईवीएम में की जाने वाली गड़बड़ियों का जिक्र है। तब कांग्रेस तथा अन्य कई पार्टियों ने इसे खारिज कर दिया था। आज वही पार्टियां अपनी पराजय के लिए इसमें गड़बड़ी किए जाने का आरोप लगा रहीं हैं। 
 
विरोधी तर्क देते हैं कि आखिर ऐसी कौन-सी मशीन है, जिसमें गड़बड़ियां नहीं की जा सकतीं? एक क्षण के लिए यह सही लग सकता है। किंतु ईवीएम की कार्यप्रणाली तथा मतदान के पूर्व और मतदान के दौरान तथा बाद में उसके रख-रखाव सहित सारी प्रक्रियाओं को समझने के बाद किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति का निष्कर्ष यही होगा कि इसमें छेड़छाड़ संभव नहीं है। मामला उच्चतम न्यायालय तक भी गया और वहां भी सारे मंथन के बाद निष्कर्ष यही आया कि ईवीएम में सेंध लगाना संभव नहीं है। ईवीएम के बारे में सबसे गलत धारणा यह है कि इसे ऑनलाइन हैक किया जा सकता है। जब इसमें इंटरनेट कनेक्शन होता नहीं, यह किसी दूसरी मशीन से भी जुड़ी नहीं होती तो फिर इसके हैकिंग या ऑनलाइन दूसरी गड़बड़ियों की कोई संभावना ही नहीं। इसमें वन टाइम प्रोग्रामेबल चिप होता है जो बगैर वाईफाई और किसी कनेक्शन के चलता है। 
 
वस्तुतः ईवीएम का सॉफ्टवेयर कोड वन टाइम प्रोग्रामेबल नॉन वोलेटाइल मेमोरी के आधार पर बना है। किसी से छेड़छाड़ करनी हो तो फिर निर्माता से कोड हासिल होगा। ईवीएम का सॉफ्टवेयर अलग से रक्षा मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा मंत्रालय के यूनिट बनाते हैं। बगैर पीठासीन अधिकारी के मतपत्र को कंट्रोल यूनिट के साथ जोड़े कोई वोट नहीं कर सकता है। ईवीएम मशीन को लगातार चेक किया जाता है ताकि मतदान के दौरान कोई गड़बड़ी न हो। 2006 के बाद से ईवीएम में तारीख और समय को लेकर नए फीचर जोड़े गए। इससे हर मतदाता का डेटा और उसका वोट सुरक्षित रहता है। इसमें एक कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट और पांच मीटर केबल होता है। कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होता है व बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कम्पार्टमेंट के अंदर रखा होता है। कंट्रोल यूनिट का प्रभारी मतदान अधिकारी बैलेट बटन दबाता है। यह मतदाता को बैलेटिंग यूनिट पर पसंद के अभ्यर्थी एवं चुनाव चिन्ह के सामने बटन को दबाकर मत डालने में सक्षम बनाता है। इसके साथ ही एक तीसरी तरह की यूनिट भी अब जोड़ दी गई है इसे वीवीपैट कहा जाता है। इसमें वोट देने के कुछ सेकेंड के अंदर मतदाता को पर्ची दिखाती है कि उसने किसको वोट दिया है। हालांकि चुनाव आयोग की तरफ से अभी तक इस तरह की मशीन का इस्तेमाल सभी मतदान केन्द्रो पर नहीं किया गया है। 
 
फिर प्रयोग की प्रणाली देखिए। कौन सी ईवीएम मशीन किस मतदान केन्द्र पर रहेगी इस बात का पता पहले से नहीं होता। मतदान कराने वाले दल को एक दिन पहले पता चलता है कि उनके पोलिंग बूथ पर कौन से सीरिज़ की ईवीएम आएगी। मतदान आरंभ होने से पहले ईवीएम  की जांच की जाती है कि यह ठीक है या नहीं। स्वाभाविक ही इस जांच में यह भी शामिल है कि कहीं किसी तरह की छेड़छाड़ तो नहीं की गई है। इस प्रक्रिया को मॉक पोलिंग भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ही मतदान शुरू करवाई जाती है। सभी पोलिंग ऐजेंट से मशीन में वोट डालने को कहा जाता है ताकि यह जांचा जा सके कि सभी उम्मीदवारों के पक्ष में वोट गिर रहा है कि नहीं। यानी किसी मशीन में टेंपरिंग या तकनीकि गड़बड़ी होगी तो मतदान के शुरू होने के पहले ही पकड़ ली जाएगी। मॉक पोल के बाद सभी उम्मीदवारों के पोलिंग एंजेट मतदान केन्द्र की पोलिंग पार्टी के प्रभारी को सही मॉक पोल का प्रमाण पत्र देते हैं। यह प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही संबंधित मतदान केन्द्र में मतदान शुरू की जाती है। मतदान आरंभ होने के बाद मतदान केन्द्र में मशीन के पास मतदाताओं के अलावा मतदान कर्मियों के जाने का निषेध है। वे ईवीएम के पास तभी जा सकते है जब मशीन की बैट्री डाउन हो या कोई अन्य तकनीकि समस्या उत्पन्न हो गई हो। हर मतदान केन्द्र में एक रजिस्टर बनाया जाता है जिसमें मतदान करने वाले मतदाताओं का विस्तृत विवरण अंकित रहता है। रजिस्टर में जितने मतदाताओं का विवरण होता है उतने ही मतदाताओं की संख्या ईवीएम में भी होती है। मतगणना वाले दिन इनका आपस मे मिलान मतदान केंद्र प्रभारी की रिपोर्ट के आधार पर होता है।
 
इतनी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद यदि कोई छेड़छाड़ का आरोप लगा रहा है तो फिर उसे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। यह भारतीय राजनीति के पतन को दर्शाता है। केजरीवाल कह रहे हैं कि सारे विशेषज्ञ बता रहे थे कि लोग अकाली और भाजपा को हराने के लिए मतदान कर रहे थे तो फिर उनको हमसे ज्यादा वोट कैसे आ गए? वे यह भी कह रहे हैं कि एक घर में जहां कई वोलंटियर हैं वहां उनसे भी कम मत निकले हैं। इसी तरह मायावती प्रश्न कर रहीं हैं कि मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्रों में भाजपा को कैसे ज्यादा मत पड़ गया? इनसे यह कहना होगा आपके प्रश्नों का उत्तर आपकी राजनीति में है, राजनीति की बदलती धारा में हैंतथा लोगों की आपके प्रति धारणा में है। इसका उत्तर ईवीएम में नहीं है। भारत में चुनाव की निष्पक्षता और विशिष्टता को स्वीकार कीजिए, जिसकी प्रशंसा दुनिया करती है। अगर ईवीएम में समस्या होती तो चुनाव आयोग इसे स्वीकार ही क्यों करता? उसकी भूमिका निष्पक्ष चुनाव कराने की है और इसे ध्यान में रखते हुए ही उसने इसका प्रस्ताव किया तथा इसे शत-प्रतिशत लागू कर दिया। कुछ देशों का उदाहरण दिया जाता है कि उनने इसे बंद किया या परीक्षण के बावजूद लागू नहीं किया। यह उनकी सोच है। हमारे यहां अभी तक इसमें समस्या नहीं दिखी है। भारत ने कई देशों को ईवीएम मशीनों को बेचा है जिनसे वहां मतदान हो रहा है। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह कि ईवीएम को खलनायक बनाना उचित नहीं। इसकी बजाए पार्टियां पराजय के असली कारणों, जो उनकी राजनीति में निहित है, पर आत्मचिंतन करें  ।
 
 
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