गुरुवार, 7 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मोटिवेशनल
  4. Two leaves
Written By

Motivation Story: पीपल के आड़े पत्ते की तरह मत बनना

Motivation Story: पीपल के आड़े पत्ते की तरह मत बनना - Two leaves
ओशो रजनीश ने एक बहुत ही प्यारी कहानी सुनाई थी। यह कहानी बहुत ही प्रेरक है। आपको भी यह कहानी पढ़ना चाहिए। यह कहानी दरअसल उस स्वतंत्रता की ओर इंगित करती है जिसे आप अपने तरीके से उपयोग करते हैं या अपने तरीके से समझते हैं। आओ जानते हैं कि किस तरह दो पत्तों ने समझा अपनी स्वतंत्रता को।
 
 
प्राचीन समय कि बात है कि हरिद्वार स्थित पवित्र गंगा नदी के किनारे पीपल का एक पेड़ खड़ा था। पहाड़ों से उतरती गंगा पूरे वेग से बह रही थी कि अचानक पेड़ से दो पत्ते नदी में आकर गिरे। पहला पत्ता आड़ा गिरा और दूसरा सीधा।
 
अब यह बड़ी मजेदार बात है कि जो आड़ा गिरा था वह अड़ गया, कहने लगा, 'आज चाहे जो हो जाए मैं इस नदी को रोक कर ही रहूंगा…चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए मैं इसे आगे नहीं बढ़ने दूंगा।'
 
वह जोर-जोर से चीखने लगा, रुक जा गंगा। अब तू और आगे नहीं बढ़ सकती। मैं तुझे आगे नहीं बढ़ने दूंगा और यहीं रोक दूंगा।
 
अब इस बैचारे पत्ते को क्या मालूम की नदी को आखिर कौन रोक पाया है। नदी तो बस बहती ही जा रही थी। उसे तो पता ही नहीं था कि कोई पत्ता उसे रोकने का प्रयास कर रहा है। लेकिन पत्ता का प्रयास ऐसा हुआ कि पत्ते की तो जान पर बन आई थी। फिर भी वो लगातार संघर्ष कर रहा था और वह नहीं जान पा रहा था कि बिना लड़े भी वहीं पहुंचेगा जहां लड़कर..थककर..हारकर पहुंचेगा। पर अब और तब के बीच का समय उसकी पीड़ा का उसके संताप का काल बन जाएगा।
 
वहीँ दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था, वह तो नदी के प्रवाह के साथ ही बड़े मजे से बहता चला जा रहा था। वह कह रहा था, 'चल गंगा, आज मैं तुझे तेरे गंतव्य तक पहुंचा के ही दम लूंगा…चाहे जो हो जाए मैं तेरे मार्ग में कोई अवरोध नहीं आने दूंगा और तू चिंता मत कर तुझे सागर तक पहुंचा ही दूंगा।'
 
नदी को इस पत्ते का भी कुछ पता नहीं…वह तो अपनी ही मस्ती में सागर की ओर दौड़ती जा रही है। पर पत्ता तो आनंदित है, वह तो यही समझ रहा है कि वही नदी को अपने साथ बहाए ले जा रहा है। आड़े पत्ते की तरह सीधा पत्ता भी नहीं जानता था कि चाहे वो नदी का साथ दे या नहीं, नदी तो वहीं पहुंचेगी जहां उसे पहुंचना है। पर अब और तब के बीच का समय उसके सुख का...उसके आनंद का काल बन जाएगा।
 
जो पत्ता नदी से लड़ रहा है। उसे रोक रहा है, उसकी जीत का कोई उपाय संभव नहीं है और जो पत्ता नदी को बहाए जा रहा है उसकी हार को कोई उपाय संभव नहीं है।
 
यह कहानी कहने के बाद ओशो कहते हैं: व्यक्ति ब्रह्म की इच्छा के अतिरिक्त कुछ कभी कर नहीं पाता है, लेकिन लड़ सकता है, इतनी स्वतंत्रता है। और लड़कर अपने को चिंतित कर सकता है, इतनी स्वतंत्रता है…इतना फ्रीडम है। इस फ्रीडम का प्रयोग आप सर्वशक्तिमान की इच्छा से लड़ने में कर सकते हैं और तब जीवन उस आड़े पत्ते के जीवन की तरह दुःख और संताप के अलावा और कुछ नहीं होगा…या फिर आप उस फ्रीडम को ईश्वर के प्रति समर्पण बना सकते हैं और सीधे पत्ते की तरह आनंद विभोर हो सकते हैं।
 
ये भी पढ़ें
अभूतपूर्व Global सहायता भारत के वैश्विक साख और सम्मान का प्रमाण