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Last Updated : गुरुवार, 10 जून 2021 (18:05 IST)

Motivational Stories : इसे कहते हैं 99वें के फेर में फंसना

Motivational Stories : इसे कहते हैं 99वें के फेर में फंसना - Motivational Story
ओशो रजनीश ने एक बार 99वें के फेर में फंसने की 2 मजेदार कहानी अपने किसी प्रवचन में सुनाई थी। उन्हीं में से एक कहानी आप यहां पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि आखिर क्या होता है 99वें के फेर में फंसने का मतलब। कम-से-कम एक मतलब तो आप जान ही जाएंगे। दूसरी कहानी हम बाद में फिर कभी बताएंगे।
 
प्राचीनकाल में एक नाई राजा के यहां उनकी हजामत बनाने और मालिश करने जाता था। राजा इसके बदले नाई को 1 रुपया देता था। उस जमाने में 1 रुपया बहुत बड़ी बात होती थी। एक आना तो लोगों को मजदूरी मिलती थी लेकिन नाई को 1 रुपया मिलता था। नाई बड़ा प्रसन्न रहता था। वह उस एक रुपए से खूब मजे करता, परिवार और दोस्तों को भी खूब मजे करवा देता। खूब पीता और खाता और पूरा रुपया खर्च कर देता। नाई रुपए जमा नहीं करता था। रात को निश्चिंतता से चादर ओड़ कर सोता क्योंकि उसे पता था कि कल फिर राजा के यहां जाना है हजामत नहीं तो मालिश तो करना ही है, क्योंकि राजा तो रोज मालिश करवाता था। 
 
सुबह उठकर वह बड़ा ही प्रसन्न रहता। अपने नित्यकार्य करके के बाद राजमहल जाता और राजा की मालिश करते वक्त उन्हें कई मजेदार किस्से-कहानियां भी सुनाता। उसके चेहरे पर सदा प्रसन्नता बनी रहती थी। एक दिन राजा को उससे ईर्ष्या होने लगी कि आखिर ये नाई इतना खुश और निश्‍चिंत कैसे है? मैं अपनी जिंदगी में ऐसा खुश कभी नहीं रहा।... अब राजा को खुशी कहां? उदासी, चिंता और थकान के साथ अनिद्रा घेरे रहती थी।
 
एक दिन राजा ने पूछा- भाई तू इतना प्रसन्न क्यों है और क्या है इसका राज? नाई ये सुनकर थोड़ा चौंक गया, क्योंकि उसे तो पता ही नहीं था कि मैं प्रसन्न या खुश हूं। उसने कहा- महाराज! मैं तो कुछ जानता नहीं, मैं कोई बड़ा ज्ञानी-ध्यानी व्यक्ति नहीं। परंतु जैसे आप मुझे प्रसन्न देखकर चकित होते हो, मैं आपको देखकर चकित होता हूं कि आपके दु:खी होने का कारण क्या है? मेरे पास तो कुछ भी नहीं है और मैं प्रसन्न हूं, परंतु आपके पास सबकुछ है, और आप सुखी क्यों नहीं है? यह बात मुझे भी चकित करती है।
 
राजा उसकी बात सुनकर उदास हो गया। उस नाई के चले जाने के बाद राजा ने अपने मंत्री को बुलाया और कहा कि इस नाई की प्रसन्नता और सुखी होने का राज पता लगाओ। यह नाई इतना प्रसन्न है कि मेरे मन में ईर्ष्या की आग जलती है कि राजाओं से बेहतर तो नाई ही होते हैं। राजाओं को तो न रात नींद आती, न दिन चैन है; और रोज चिंताएं बढ़ती ही चली जाती हैं।
 
मंत्री ने कहा- महाराज! आप गलत सोच रहे हैं। आप पर ढेरों जिम्मेदारियां हैं और उस पर नहीं। उसे जिम्मेदारियों का अहसास ही नहीं है। फिर भी आप चिंता ना करें में इस नाई को ठीक कर दूंगा। तब आप समझ लेना कि राज क्या है?
 
मंत्री बड़ा चतुर और गणित में कुशल था। राजा ने कहा- क्या करोगे? उसने कहा, कुछ नहीं। आप एक-दो-चार दिन में देखेंगे। 
 
फिर एक दिन मं‍त्री निन्यानबे रुपए की एक थैली को चुपचाप से रात में नाई के घर में फेंक आया। जब सुबह नाई उठा, तो उसने अपने घर में निन्यानबे रुपए की थैली देखी और उस थैली के रुपए गिने तो निन्यानबे निकले, बस वह चिंतित हो गया और सोचने लगा इसमें एक ही रुपया कम है। यदि एक रुपया होता तो पूरे सौ हो जाते। उसने कहा, बस एक रुपया आज मिल जाए, तो आज उपवास ही रखेंगे, सौ पूरे कर लेंगे।
 
इससे पहले नाई ने कभी भी रुपए जमा करने के बारे में नहीं सोचा था। उसे रोज एक रुपया मिलता था जो कि उसकी जरूरतों से कहीं ज्यादा था और वह उसे पूरा खर्च करके खूब मजे से दिन गुजार रहा था। कल की तो उसे चिंता जरा भी नहीं थी। वह वर्तमान का खूब मजा लेता था। परंतु अब जब उसे निन्यानबे रुपए मिले तो वह चिंतित हो गया। आज पहली दफा उसे कल की चिंता हुई।
 
निन्यानबे पास में थे, सौ करने में देर ही क्या थी। उसने सोचा सिर्फ एक दिन दु:ख उठाना है। अब कोई खाना-पीना या मोज-मस्ती नहीं। उसने दूसरे दिन खुद भी उपवास किया और परिवार के लोगों को भी करवा दिया। मित्रों को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ा। परंतु जब दूसरे दिन वह गया सम्राट के पैर दबाने, मालिश करने तो उसके चेहरे पर वो प्रसन्नता नहीं थी। वह मस्ती न थी, उदास था, चिंता में पड़ा था, दिमाग में कोई गणित चल रहा था। सम्राट ने पूछा, आज बड़े चिंतित मालूम होते हो? मामला क्या है?
 
उसने कहा- नहीं महाराज, कुछ भी नहीं, कुछ नहीं सब ठीक है। उसके कहने से ही औपचारिकता झलक रही थी। सब ठीक है ऐसे कह रहा था जैसे कि सभी कहते हैं- हां ठीक है।
 
राजा ने कहा कि नहीं मैं नहीं मानता। तुम उदास दिखाई दे रहे हो। आज तुम्हारी आंखों में चमक नहीं है। शायद रात को ठीक से सोए नहीं हो। यह सुनकर नाई ने कहा कि अब आप पूछ रहे हो तो सही है कि कुछ भी ठीक नहीं है महाराज। परंतु आप घबराएं नहीं, बस एक दिन की ही बात है सब ठीक हो जाएगा। 
 
फिर एक दिन बाद उसकी थैली में 100 रुपए पूरे हो गए। लेकिन अब वह सोचने लगा कि कम-से-कम 101 या 108 होना चाहिए ये 100 का आंकड़ा ठीक नहीं लगता। बस फिर क्या था वह 101 और 108 के चक्कर में फंस गया। फिर सोचने लगा धीरे-धीरे कम-से-कम 5 सौ रुपए जमा कर लूंगा तो अमीर बन जाऊंगा। हजार रुपए में हजारपति, लाख रुपए में लखपति। यह सोचकर वह परेशान हो गया। अब वह अपने और परिवार के खर्चों के कटोती करने लगा। अब एक-एक कदम फूंक-फूंक कर उठने लगा। वह पंद्रह दिन में बिलकुल ही ढीला-ढाला हो गया, उसकी सब खुशी चली गई। उसके साथ उसका परिवार भी बहुत दु:खी रहने लगा। 
 
फिर एक दिन राजा ने कहा, अब तू बता ही दे सच-सच, मामला क्या है? क्योंकि मेरे मंत्री ने कुछ किया था जिसकी मुझे भी जानकारी नहीं है। उसके बाद से ही तेरे चेहरे की खुशी गायब हो गई है।
 
यह सुनकर वह नाई चौंका। नाई बोला, क्या मतलब महराज? आपका मंत्री...? अच्छा, तो अब मैं समझा। अचानक मेरे घर में एक थैली पड़ी मिली मुझे, निन्यानबे रुपए थे जिसमें। बस, उसी दिन से मैं मुश्किल में पड़ गया हूं महाराज। इस निन्यानबे के फेर ने मेरी सारी खुशियां मुझसे छीन ली।
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