Motivational story : तुम अपने कार्य को किस तरह करते हो?
कहते हैं कि जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि और वैसा भविष्य। हर व्यक्ति कार्य करते हैं परंतु कुछ अपने कार्य को आनंदित होकर नहीं करते हैं और कुछ करते हैं। हालांकि कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें आनंद या निराशा से मतलब नहीं रहता है। वे तो बस कार्य इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें यह कार्य सौंपा गया है और करना है इसीलिए करते हैं। या कहें कि उनका कोई लक्ष्य नहीं होता है और कार्य को करने का कोई प्लान नहीं होता है। बस 8 या 9 घंटे की नौकरी बजाना है और माह की 1 या 7 तारीख को सैलरी लेना है, यही उनका लक्ष्य है। आओ हम जानते हैं कि किस तरह कुछ लोग छोटा कार्य करके भी ऊंचे लक्ष्य प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त कर सकते हैं।
हम जानते हैं कि संत रविदास, कबीरदास, संत सेन आदि कई ऐसे संत हैं जो अपना कार्य यह सोचकर नहीं करते थे कि हमें इससे पैसे कमाना है वह ये बहुत ही आनंद से और मानव सेवा समझकर करते थे। आप एक कहानी से यह बात समझ सकते हैं। यह कहानी हमने कई जगह पढ़ी है।
एक बार की बात है कुछ मजदूर एक भव्य राम मंदिर के निर्माण कार्य में लगे थे। निर्माण कार्य देखने के लिए वहां एक संत पहुंचे। संत ने कुछ मजदूरों में से एक से पूछा भाई तुम क्या कार्य कर रहे हो?
मजदूर बोला, बाबाजी में तगारी ढो रहा हूं।
संत ने दूसरे मजदूर से पूछा भाई तुम क्या कार्य कर रहे हो?
दूसरा मजदूर बोला, बाबाजी अपने परिवार का पेट पालने के लिए मजदूरी कर रहा हूं? क्या करो यही कार्य कर सकता हूं। इसलिए यही कर रहा हूं।
इसके बाद संत ने तीसरे मजदूर से पूछा, भाई तुम क्या कार्य कर रहे हो?
तीसरा मजदूर बोला, बाबाजी राम का ही कार्य कर रहा हूं, देख नहीं रहे हो श्रीराम का भव्य मंदिर बना रहूं। इससे बढ़कर कौनसा कार्य होगा?
अब आप ही सोचिये, तीनों मजदूरों के कार्य एक ही थे परंतु उत्तर अलग-अलग थे। इससे तीनों की भावना समझ में आ रही थी। अब आप इससे ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इन तीनों में से कौन सबसे सही कार्य कर रहा है और क्यों कर रहा है।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जो व्यक्ति अपने कार्य को किसी बड़े उद्देश्य से जोड़ देता है तो उसका लक्ष्य भी बड़ा हो जाता है। बस जीवन में सफलता के लिए और क्या चाहिए। दृष्टि बदलो तो सृष्टि भी बदल जाएगी।