• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. lazy indian
Written By
Last Updated : मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021 (12:10 IST)

Lazy Indians: भारत में 125 करोड़ में से 42 करोड़ लोग आलस्य के कारण हो रहे बीमार

Lazy Indians: भारत में 125 करोड़ में से 42 करोड़ लोग आलस्य के कारण हो रहे बीमार - lazy indian
डॉ. मोनिका शर्मा,
हर आयु वर्ग और कमोबेश दुनिया के हर हिस्से में, निष्क्रिय जीवनशैली बीते कई बरसों से चिंता का विषय बनी हुई है। पर इन दिनों घटती शारीरिक सक्रियता पर सोचना और जरूरी हो गया है, क्योंकि कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही सबसे अहम है।

वैसे तो किसी भी व्याधि से जूझने और उससे उबरने में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ही सबसे अहम होती है पर इस सेहत से जुड़ी इस वैश्विक आपदा ने फिर इस विषय पर सोचने के हालात बना दिए हैं, जो सीधे-सीधे इन्सान की शारीरिक सक्रियता से जुड़ी है। यही वजह है कि व्यायाम से बढ़ती दूरी और रोज़मर्रा की जिंदगी में निष्क्रिय होते रहन-सहन के बारे में गंभीरता से सोचा जाना जरूरी हो गया है।

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने दिशा-निर्देशों 'डब्ल्यूएचओ गाइडलाइन ऑन फिजिकल एक्टिविटी एंड सेडेंटरी विहेबियर' में हर उम्र के लोगों को नियमित व्यायाम करने के लिए चेताया है।

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर उम्र के लोगों के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय रहना बेहद जरूरी है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताज़ा दिशा निर्देशों के अनुसार सभी वयस्कों को प्रत्येक सप्ताह कम से कम 150 से 300 मिनट का वक्त कसरत के लिए निकालना चाहिए। यानी सभी के लिए प्रतिदिन औसतन 60 मिनट तक व्यायाम जरूरी है।
स्वास्थ्य से जुड़े इस वैश्विक संकट के समय आये इन दिशा-निर्देशों में उन लोगों को भी हल्के-फुल्के व्यायाम करने की सलाह दी गई है, जो किसी गंभीर रोग से जूझ रहे हैं। शारीरिक सक्रियता की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि इन सलाहों में दिव्यांगों और महिलाओं को भी शारीरिक गतिविधियों व व्यायाम के लिए प्रोत्साहित किया गया है। महिलाओं को गर्भावस्था और प्रसव के बाद के समय में नियमित रूप से हल्के व्यायाम करने की सलाह देते हुए दिव्यांगों को व्यायाम से होने वाले फ़ायदों के बारे में बताया है।

डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि अपनी जीवनशैली में व्यायाम को शामिल करने का सकारात्मक प्रभाव लोगों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ेगा। इसीलिए लोग शारीरिक गतिविधियों में कमी नहीं लाएं। संगठन के मुताबिक़ कोविड-19 के कारण के कारण घर तक सिमटी जिंदगी के कारण बहुत से लोग शारीरिक सक्रियता से दूर हो रहे हैं। जबकि व्यायाम न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है बल्कि शारीरिक रूप से सक्रिय रहने का असर रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है। यानी दुनिया के हर हिस्से में बसे लोगों को डब्ल्यूएचओ द्वारा यह सलाह दी गई है कि शारीरिक रूप से सक्रिय रहकर कोरोना ही नहीं दूसरी बीमारियों को भी हराया जा सकता है।

दरअसल, परंपरागत रूप से श्रमशील जीवनशैली वाले हमारे देश में अब बड़ी आबादी शारीरिक निष्क्रियता की शिकार है। मौजूदा दौर में यह निष्क्रियता अनगिनत शारीरिक और मानसिक व्याधियों को न्योता देने वाली साबित हो रही है। एक ओर कुपोषण और चिकित्सा सुविधाओं की पहुंच न होना आमजन की सेहत के लिए ख़तरा है,तो दूसरी ओर सुविधा संपन्न जीवनशैली भी लोगों का स्वास्थ्य बिगाड़ रही है।

गांवों से लेकर शहरों तक आम लोगों की जिंदगी में भागमभाग तो बहुत है, पर शारीरिक श्रम कम हुआ है। साथ ही इन्टरनेट और स्मार्ट गैजेट्स की दखल ने भी शारीरिक निष्क्रियता में इजाफा किया है। साल 2018 में आई विश्व स्वास्थ्य संगठन की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की बड़ी आबादी आलस्य की वजह से कई गंभीर बीमारियों की जद में आ रही है।

डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक़ 125 करोड़ की जनसंख्या में करीब 42 करोड़ लोग आलस्य के कारण बीमार हो रहे हैं। यानी शारीरिक निष्क्रियता की चपेट में आने वाली आबादी, कुल आबादी का 34 फीसदी है। जिसका सीध सा अर्थ है कि भारत में ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं, जो शारीरिक श्रम करने में सुस्ती अपनाते हैं। डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट में सामने आया था कि शारीरिक गतिविधियों में सक्रियता की कमी के कारण ऐसे लोगों पर ह्रदयघात, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों के साथ ही मानसिक रोगों के चपेट में आने का भी खतरा बढ़ा है।

कहना गलत नहीं होगा कि इन दो सालों में स्मार्ट गैजेट्स पर बीत रहा समय और जीवन की आपाधापी और बढ़ी ही है। नतीजतन, इस जरूरी-गैर जरूरी व्यस्तता के कारण लोग शारीरिक श्रम से भी दूर हुए हैं। हालिया महीनों कोरोना संक्रमण के कारण घरबंदी की जिन्दगी ने इस निष्क्रियता को और बढ़ा दिया है।

बीते कुछ वर्षों में डिजिटल होती जीवनशैली और सुविधा सम्पन्न रहन-सहन के चलते इंसानी शरीर की सक्रियता तेज़ी से कम हुई है। महानगरीय जीवनशैली में तो मशीनों की दस्तक ने रोज़मर्रा के कामकाज से जुड़ी क्रियाशीलता को और भी कम कर दिया है। हालिया बरसों में लोगों की जीवनशैली और आर्थिक स्थिति में भी बड़ा बदलाव आया है। जिसके चलते हर सुख-सुविधा जुटा लेन लोगों की प्राथमिकता बन गयी है। नतीजतन, सुविधा सम्पन्न जीवनशैली और कसरत से दूरी  के चलते अब सेहत से जुड़े अनगिनत दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। बदलते सामाजिक-पारिवारिक ढांचे में महिलाओं की शारीरिक सक्रियता तो और भी कम हो गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का ही अध्ययन बताता है कि भारतीय महिलाओं में शारीरिक श्रम ना करने की समस्या पुरुषों की तुलना में दोगुनी है। देश की तकरीबन 47.7 प्रतिशत महिलायें पर्याप्त कसरत नहीं करती हैं। गौर करने वाली बात है कि हमारे यहां बच्चों और युवाओं में भी जंक फ़ूड के सेवन और निष्क्रिय जीवनशैली के कारण मोटापे के आंकड़े बढ़ रहे हैं।

यह वाकई चिंतनीय है कि महिलाएं हों या पुरुष, हालिया बरसों में शहरों में ही नहीं गांवों-कस्बों में शारीरिक सक्रियता में कमी आई है। यही वजह है कि शारीरिक बीमारियां ही नहीं मानसिक और मनोवैज्ञानिक उलझनें भी कई गुना बढ़ी हैं। जीवनशैली जनित बीमारियां हर आयु वर्ग को घेर रही हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी बड़ी संख्या में मोटापे, अवसाद और तनाव का शिकार बन रहे हैं। ग़ौरतलब है कि मोटापा दूसरी सह-बीमारियों की भी बड़ी वजह है। असल में देखा जाय तो दुनियाभर में  ऐसे लोग बड़ी तादाद में हैं जिनके बीमार रहने का कारण कसरत ना करना ही है। दुनियाभर में 80 फीसदी से भी ज्यादा किशोर आबादी शारीरिक रूप से पर्याप्त सक्रिय नहीं हैं। 

आंकड़े बताते हैं कि हर वर्ष  वैश्विक स्तर पर 50 लाख मौतें लोगों को वर्तमान की तुलना में शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय बनाकर ही रोकी जा सकती हैं। ऐसे में बेहद जरूरी है कि लोग सक्रिय दिनचर्या अपनायें ताकि आलस्य और सहूलियतों का मेल स्वास्थ्य पर भारी ना पड़े। पहले से ही सामुदायिक स्वास्थ्य के मोर्चे पर कई परेशानियों से जूझ रहे भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश के नागरिकों लिए तो यह वाकई विचारणीय है कि कम से कम शारीरिक श्रम की कमी तो बीमारियों को बढ़ावा ना दे।

व्यापक रूप से देखा जाय तो डिजिटल जीवनशैली ने बेवजह ही व्यस्तता को बढाकर भी लोगों को शारीरिक सक्रियता से दूर किया है। जिसके चलते शारीरिक बीमारियां ही नहीं मानसिक व्याधियों के शिकार लोगों के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं। सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर बीत रहा समय व्यावहारिक जिंदगी की जरूरतों और जिम्मेदारियों से ही चुराया जा रहा है।

व्यायाम के लिए समय ना निकाल पाने वाले लोग भी ऐसे मंचों पर काफी समय बिता रहे हैं। इनमें नई पीढ़ी के लोग बड़ी संख्या में हैं। हालात ऐसे हो चले हैं कि आज देश में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का बोझ 61.3 फीसदी है। भारत में मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा, उच्च रक्तचाप जैस व्याधियों के रोगियों की संख्या तेज़ी बढ़ रही है।  युवा और बच्चे भी इन बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। हर उम्र, हर वर्ग के लोगों में बढ़ रही आरामतलब जीवनशैली की आदत और आलस्य सिर्फ शारीरिक सक्रियता ही कम नहीं कर रहे बल्कि ऐसी जीवनशैली की वजह से पैदा हो रहीं व्याधियां जन-धन की बड़ी क्षति के लिए भी जिम्मेदार हैं।

जबकि ऐसी सभी बीमारियों से बचने का सबसे कारगर उपाय संतुलित भोजन और सक्रिय-सकारात्मक जीवनशैली अपनाना ही है।  ऐसे में शारीरिक व्यायाम को प्राथमिकता दिया जाना आवश्यक है। कोरोना काल में भी एहतियात बरतते हुए श्रमशील जीवनशैली की ओर फिर लौटने की कोशिश भी जरूरी है। नागरिकों का अपनी सेहत से जुड़ी गतिविधियों को लेकर सजग और सक्रिय होना अच्छे स्वास्थ्य के लिए ही नहीं बल्कि  देश की बेहतरी के लिए भी जरूरी है।

यह समझना मुश्किल नहीं कि आमजन के स्वास्थ्य का सीधा असर उनकी कार्य-शक्ति पर पड़ता है। जिस तरह सरकार का बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने हेतु प्रयत्नशील रहना आवश्यक है, उसी तरह  आम नागरिकों का भी अपनी जीवनशैली का चुनाव करते हुए  चिंतनशील रहना जरूरी है।

(इस आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक की निजी राय है, वेबदुनिया से इसका संबंध नहीं है)
ये भी पढ़ें
जन्मदिन विशेष : जनक पलटा मगिलिगन, सोलर ऊर्जा से रोशन कर रही हैं कई जिंदगियां