ओशो रजनीश अपनी कहानियों के माध्यम से लोगों को अपनी बातें समझाते हैं। उनकी कहानियों बड़ी ही रोचक और अपने तरीके से गढ़ी गई होती है। उनकी कहानियों के खजाने में से एक कहानी सोलन की पढ़ते हैं जो आपको प्रेरित करेगी।
यूनान में एक बहुत ही प्रसिद्ध दार्शनिक था जिसका नाम था सोलन। उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक थी। वह सुकरात जैसा मनीषी था। सम्राट ने बुलाया सिर्फ इसलिए कि सोलन की बड़ी ख्याति थी। उसके एक-एक शब्द का मूल्य अकूत था। तो कुछ उससे ज्ञान लेने नहीं बुलाया था। कुछ उससे सीखने नहीं बुलाया था। सिर्फ सोलन को बुलाया था कि देख मेरे महल को, मेरे साम्राज्य को, मेरी धन-संपदा को और सम्राट चाहता था कि सोलन प्रशंसा करे कि आप जैसा सुखी और कोई भी नहीं है, तो इस वचन का मूल्य होगा।
सारा यूनान, यूनान के बाहर भी लोग समझेंगे कि सोलन ने कहा है। सोलन आया, महल घुमाकर दिखाया गया। अकूत संपदा थी सम्राट के पास, न मालूम कितना उसने लूटा था। बहुमूल्य पत्थरों के ढेर थे, स्वर्ण के खजाने थे, महल ऐसा सजा था, जैसे दुल्हन हो। फिर सम्राट उसे दिखा—दिखाकर प्रतीक्षा करने लगा कि वह कुछ कहे। लेकिन सोलन चुप ही रहा। न केवल चुप रहा, बल्कि गंभीर होता गया। न केवल गंभीर हुआ, बल्कि ऐसे उदास हो गया, जैसे सम्राट मरने को पड़ा हो और वह सम्राट को देखने आया हो।
आखिर सम्राट ने कहा कि तुम्हारी समझ में आ रहा है कि नहीं? मैंने तो सुना है कि तुम बड़े बुद्धिमान हो। मुझ जैसा सुखी तुमने कहीं कोई और मनुष्य देखा है? मैं परम सुख को उपलब्ध हुआ हूं। सोलन, कुछ बोलो इस पर।
सोलन ने कहा कि मैं चुप ही रहूं वही अच्छा है, क्योंकि क्षणभंगुर को मैं सुख नहीं कह सकता। और जो शाश्वत नहीं है, उसमें सुख हो भी नहीं सकता। सम्राट, यह सब दुख है। बड़ा चमकदार है, लेकिन दुख है। तुम इसे सुख समझे हो, तो तुम मूढ़ हो।
यह सुनकर सम्राट को धक्का लगा। जो होना था, वह हुआ। सोलन चुप ही रहता, तो अच्छा था। सोलन को उसी वक्त गोली मार दी गई। सामने महल के एक खंभे से लटकाकर, बंधवाकर सम्राट ने कहा, अभी भी माफी मांग लो। तुम गलती पर हो। अभी भी कह दो कि सम्राट, तुम सुखी हो। सोलन ने कहा, झूठ मैं न कह सकूंगा। मृत्यु में कुछ हर्जा नहीं है, क्योंकि मरना मुझे होगा ही; किस निमित्त मरता हूं यह गौण है। तुमने मारा, कि बीमारी ने मारा, कि अपने आप मरा, यह सब गौण है। मौत निश्चित है। झूठ मैं न कहूंगा सम्राट।.. तुम भूल में हो। फिर सोलन को गोली मार दी गई।
फिर दस वर्षों बाद, यह सम्राट पराजित हुआ। विजेता ने इसे अपने महल के सामने एक खंभे पर बांधा। जब वह खंभे पर लटका था और गोली मारे जाने को थी, तब उसे अचानक सोलन की याद आई। ठीक दस वर्ष पहले ऐसा ही सोलन खंभे पर लटका था। अब उसे उसके शब्द भी सुनाई पड़े, कि जो शाश्वत नहीं, वह सुख नहीं। जो क्षणभंगुर है, उसका कोई मूल्य नहीं। यह चमकदार दुख है सम्राट।
उसी चमकदार दुख को सुख मानकर यह सम्राट इस खंभे पर लटक गया। सम्राट की आंखें बंद हो गईं। वह अपने को भूल ही गया, सोलन को देखने लगा। और जब उसे गोली मारी जा रही थी, तब उसके होंठों पर मुस्कुराहट थी।
और आखिरी शब्द जो उसके मुंह से निकले, वे यह थे- सोलन, सोलन, मुझे क्षमा कर दो। तुम ही सही थे।
विजेता सम्राट सुनकर चकित हुआ; कौन सोलन? किसके वचन सही? और इस मरते सम्राट के होंठों पर मुस्कुराहट कैसी? उसने सारी खोज—बीन करवाई, तब यह पूरी कथा पता चली। वह जो हमें सुख जैसा मालूम होता है, वह सुख नहीं है। और वह जो हमें सुख जैसा मालूम होता है, उसके लिए हम सबको दुख देते हैं।
गीता दर्शन- ओशो