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Written By स्मृति आदित्य

आज फिर सावन बरस रहा है

फाल्गुनी

फाल्गुनी
ND
आज फिर सावन बरस रहा है,
और मेरा मिट्टी जैसा मन
तुम्हारी यादों की झर-झर बूँदों से
सौंधा-सौंधा महक रहा है।
आज फिर सावन बरस रहा है,
मेरा बादल जैसा आँचल,
तुम्हारी पेशानी ो छू लेने को मचल रहा है।
आज फिर सावन बरस रहा है,
मेरा इन्द्रधनुष जैसा परिधान,
तुम्हारी एक नजर के लिए तरस रहा है।
आज फिर सावन बरस रहा है।
ND
तुम नहीं हो कहीं भी,
पर हो थोड़े-थोड़े यहीं भी,
मेरी पलकों की कोर पर
बारिश का आँसू बन कर,
तुम नहीं आ सकते लेकिन
तुम्हारे आने का संदेश लिए
ये कैसा मानसून
मेरे भीतर धड़क रहा है।
तुम्हें पता होगा फिर भी
सुन लो मुझसे
कि आज फिर सावन बरस रहा है।