मकर संक्रांति का पावन पर्व आ गया आपने इस पर्व को मनाने की तैयारी काफी पहले से शुरू कर दी होगी।
पर्व कोई भी हो, इसे मनाने के पीछे कोई न कोई कारण जुड़ा होता है और उन्हीं बातों को याद करते हुए उनसे कुछ सीख लेने के लिए हम त्योहारों को उमंग-उत्साह से मनाते हैं।
मकर संक्रांति का महत्व इसलिए ज्यादा है, क्योंकि इस दिन सूर्य दक्षिणायन (साउथ हेमीस्फीयर) से उत्तरायन (नार्थ हेमीस्कीयर) में आ जाता है अर्थात् सूर्य यात्रा नार्थ हेमीस्फीयर में शुरू हो जाती है जो कि शुभ माना जाता है।
कहते हैं मकर संक्रांति से दिन तिल-तिल बढ़ता है। इस दिन से महिलाएँ पति की दीर्घायु की कामना के लिए व परिवार की सुख-शांति के लिए मकर संक्रांति से वसंत पंचमी व चैत्र माह के पूरे महीने हल्दी कंकु का आयोजन करती है।
इस दिन बच्चों में भी विशेष उत्साह देखा जा सकता है। बच्चे हो या बड़े सभी मकर संक्रांति पर पतंगबाजी का आनंद लेते हैं। पूरा आकाश नीले-पीले, लाल, हरे, पतंगों से सराबोर दिखाई देता है।
मकर संक्रांति के दिन विवाहित महिलाएँ आपस में एक-दूसरे को हल्दी कंकु का टीका लगाती है, तिल से बनी मिठाई खिलाती है और मेहमान महिलाओं को सुहाग की चीजें उपहार में देती है।
जैसे - बिछिया, पायजब, कंगन, कुंकुम, बिन्दी आदि।
इस दिन सुबह तिल, मलाई, हल्दी को मिलाकर उबटन करने को अपना अलग ही मजा है।
यह उबटन त्वचा को सुन्दर व कांतिमय बना देता है।
आज के दिन दान का विशेष महत्व माना गया है। ब्राह्मणों को भोजन करवाना, दक्षिणा देना, गाय को घास देना, इस पर्व पर विशेष रूप से किए जाते हैं।
महाराष्ट्रीयन समाज में इस पर्व का विशेष महत्व है। इस पर्व पर महिलाएँ एक दूसरे को मिट्टी के छोटे से मटकेनुमाबर्तन में चने के होले, तिल-गुड़ के लड्डू, मूँग, चावल, गाजर व बोर मिला कर भर कर देती हैं।
संक्रांति के दिन नई बहू व नवागंतुक शिशु को तिल के सुंदर गहने पहनाए जाते हैं।
वहीं गुजरात में इस दिनबाजरे के रोटले के साथ उन्घिया छत पर बैठकर चटखारे ले-लेकर खाया जाता है।
इस दिन बच्चों में भी विशेष उत्साह देखा जा सकता है। बच्चे हो या बड़े सभी मकर संक्रांति पर पतंगबाजी का आनंद लेते हैं। पूरा आकाश नीले-पीले, लाल, हरे, पतंगों से सराबोर दिखाई देता है।
इस प्रकार यह त्योहार मिलने मिलाने तिल-गुड़ खाने का एक विशिष्ट त्योहार है।